
विज्ञान
विद्युत धारा दो प्रकार की होती है:
- प्रत्यक्ष धारा (Direct Current - DC): इस प्रकार की धारा में आवेश एक ही दिशा में बहते हैं। बैटरी और सौर पैनल DC धारा के सामान्य स्रोत हैं।
- प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current - AC): इस प्रकार की धारा में आवेश समय के साथ अपनी दिशा बदलते रहते हैं। घरों और व्यवसायों में उपयोग होने वाली बिजली AC धारा का एक सामान्य उदाहरण है।
विद्युत धारा के कुछ सामान्य उपयोग:
- घरों और व्यवसायों में बिजली प्रदान करना।
- इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को चलाना।
- मोटरों और अन्य उपकरणों को चलाना।
- प्रकाश और ऊष्मा उत्पन्न करना।
विद्युत धारा एक महत्वपूर्ण भौतिक राशि है जिसका उपयोग कई अलग-अलग अनुप्रयोगों में किया जाता है।
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अतिरिक्त परमाणु सेल ऑर्गेनेल जैसे राइबोसोम, लाइसोसोम, पेरोक्सिसोम और माइटोकॉन्ड्रिया, कोशिका के भीतर महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। यहां उनकी मूल बातें, संरचना और कार्य दिए गए हैं:
1. राइबोसोम:
- मूल: राइबोसोम सभी जीवित कोशिकाओं में पाए जाते हैं और प्रोटीन संश्लेषण के लिए जिम्मेदार होते हैं।
- संरचना: वे दो सबयूनिट से बने होते हैं, एक बड़ी और एक छोटी, जो आरएनए (आरआरएनए) और प्रोटीन से बनी होती हैं।
- कार्य: राइबोसोम मैसेंजर आरएनए (एमआरएनए) अणुओं से आनुवंशिक कोड को डीकोड करते हैं और अमीनो एसिड से प्रोटीन बनाने के लिए इसे अनुवादित करते हैं। वे या तो मुक्त तैर सकते हैं या एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम (ईआर) से बंधे हो सकते हैं।
2. लाइसोसोम:
- मूल: लाइसोसोम जानवरों की कोशिकाओं में पाए जाने वाले झिल्ली-बाध्य ऑर्गेनेल हैं।
- संरचना: वे हाइड्रोलाइटिक एंजाइम से भरे हुए गोलाकार पुटिका होते हैं, जो विभिन्न सेलुलर मैक्रोमोलेक्यूल्स को तोड़ने में सक्षम होते हैं।
- कार्य: लाइसोसोम सेलुलर अपशिष्ट निपटान में शामिल होते हैं, पुराने या क्षतिग्रस्त ऑर्गेनेल को पचाते हैं, और सेलुलर मलबे और रोगजनकों को तोड़ते हैं।
3. पेरोक्सिसोम:
- मूल: पेरोक्सिसोम यूकेरियोटिक कोशिकाओं में पाए जाने वाले छोटे, झिल्ली-बाध्य ऑर्गेनेल हैं।
- संरचना: वे एंजाइम से भरे होते हैं जो विभिन्न मेटाबॉलिक प्रतिक्रियाओं में शामिल होते हैं, विशेष रूप से फैटी एसिड और एमिनो एसिड का ऑक्सीकरण।
- कार्य: पेरोक्सिसोम डिटॉक्सिफिकेशन में भूमिका निभाते हैं, जैसे कि हाइड्रोजन पेरोक्साइड (एच2ओ2) को पानी और ऑक्सीजन में परिवर्तित करना, और लिपिड मेटाबॉलिज्म।
4. माइटोकॉन्ड्रिया:
- मूल: माइटोकॉन्ड्रिया यूकेरियोटिक कोशिकाओं का पावरहाउस हैं, जो एटीपी (एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट) के रूप में ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।
- संरचना: वे दोहरी झिल्ली वाले ऑर्गेनेल होते हैं, बाहरी झिल्ली और एक आंतरिक झिल्ली जिसमें क्रिस्टे नामक सिलवटें होती हैं। आंतरिक झिल्ली में मैट्रिक्स होता है, जिसमें डीएनए, राइबोसोम और एंजाइम होते हैं।
- कार्य: माइटोकॉन्ड्रिया सेलुलर श्वसन के लिए जिम्मेदार होते हैं, ग्लूकोज और अन्य अणुओं को एटीपी में परिवर्तित करते हैं। वे सेलुलर सिग्नलिंग, कैल्शियम होमियोस्टेसिस और एपोप्टोसिस में भी शामिल होते हैं।
परियोजना: चने के बीज का अंकुरण
उद्देश्य: चने के बीज के अंकुरण की प्रक्रिया का अवलोकन करना और उसका सचित्र वर्णन करना।
सामग्री:
- मिट्टी से भरा हुआ गमला
- 3-4 भीगे हुए चने के बीज
- पानी
- कैमरा या ड्राइंग सामग्री
- चार्ट पेपर
विधि:
- गमले में मिट्टी भरें।
- 3-4 भीगे हुए चने के बीज मिट्टी में थोड़ा अंदर डालें।
- गमले को छत पर या बालकनी में रखें।
- प्रत्येक दिन थोड़ा-थोड़ा पानी दें।
- गमले में बोए हुए चने में प्रतिदिन होने वाले परिवर्तन का 10 दिनों तक अवलोकन करें।
- अपने परियोजना चार्ट पेपर में उन परिवर्तनों का सचित्र वर्णन करें।
अवलोकन:
दिन 1: चने के बीज मिट्टी में दबे हुए हैं। कोई स्पष्ट परिवर्तन नहीं दिखता।

दिन 2: बीज थोड़े फूल गए हैं क्योंकि उन्होंने पानी सोख लिया है।

दिन 3: कुछ बीजों में से छोटी सफेद जड़ें निकलनी शुरू हो गई हैं।

दिन 4: जड़ें लंबी हो गई हैं और मिट्टी में फैल रही हैं। कुछ बीजों में से छोटा अंकुर निकलना शुरू हो गया है।

दिन 5: अंकुर थोड़े बड़े हो गए हैं और ऊपर की ओर बढ़ रहे हैं।

दिन 6: अंकुरों में छोटे-छोटे पत्ते निकलने शुरू हो गए हैं।

दिन 7: पौधे थोड़े बड़े हो गए हैं और उनमें और पत्ते निकल रहे हैं।

दिन 8: पौधे और भी बड़े हो गए हैं और उनमें कई पत्ते हैं।

दिन 9: पौधे तेजी से बढ़ रहे हैं और मजबूत हो रहे हैं।

दिन 10: पौधे अब छोटे चने के पौधे बन गए हैं।

निष्कर्ष:
इस परियोजना से हमने सीखा कि चने के बीज को अंकुरित होने के लिए पानी, हवा और धूप की आवश्यकता होती है। हमने यह भी सीखा कि पौधे धीरे-धीरे बढ़ते हैं और उनमें कई परिवर्तन होते हैं।
मानव पाचन तंत्र का चित्र और उसके विभिन्न हिस्सों के नाम इस प्रकार हैं:

विभिन्न हिस्सों के नाम:
- मुख (Mouth): यह पाचन तंत्र का पहला भाग है, जहाँ भोजन को चबाकर छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है।
- ग्रासनली (Esophagus): यह मुख से भोजन को आमाशय तक ले जाती है।
- आमाशय (Stomach): यहाँ भोजन गैस्ट्रिक रस के साथ मिलकर और छोटे टुकड़ों में टूटता है।
- छोटी आंत (Small Intestine): यह पाचन तंत्र का सबसे लंबा भाग है, जहाँ पोषक तत्वों का अवशोषण होता है।
- बड़ी आंत (Large Intestine): यह जल और इलेक्ट्रोलाइट्स का अवशोषण करती है और अपशिष्ट पदार्थों को मल के रूप में बाहर निकालती है।
- मलाशय (Rectum): यह मल को जमा करता है जब तक कि उसे गुदा के माध्यम से बाहर नहीं निकाल दिया जाता।
- गुदा (Anus): यह पाचन तंत्र का अंतिम भाग है, जहाँ से मल शरीर से बाहर निकलता है।
- लार ग्रंथियाँ (Salivary Glands): ये लार का उत्पादन करती हैं, जो भोजन को नरम करने और पचाने में मदद करती है।
- यकृत (Liver): यह पित्त का उत्पादन करता है, जो वसा को पचाने में मदद करता है।
- अग्न्याशय (Pancreas): यह एंजाइमों का उत्पादन करता है, जो प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा को पचाने में मदद करते हैं।
- पित्ताशय (Gallbladder): यह पित्त को संग्रहीत करता है और उसे छोटी आंत में छोड़ता है।
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यहाँ स्वपोषी, परपोषी, मृतजीवी और सहजीवी पादपों के उदाहरण उनके चित्रों के साथ दिए गए हैं:
स्वपोषी पादप वे होते हैं जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। ये प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) की प्रक्रिया द्वारा सूर्य के प्रकाश, पानी और कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करके अपना भोजन (ग्लूकोज) बनाते हैं।
उदाहरण: आम का पेड़

परपोषी पादप वे होते हैं जो अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते और भोजन के लिए अन्य पौधों या जीवों पर निर्भर रहते हैं।
उदाहरण: अमरबेल (Dodder)

मृतजीवी पादप वे होते हैं जो मृत और सड़े हुए कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
उदाहरण: मशरूम (Mushroom)

सहजीवी पादप वे होते हैं जो अन्य जीवों के साथ सहजीवी संबंध में रहते हैं और एक-दूसरे को लाभ पहुँचाते हैं।
उदाहरण: लाइकेन (Lichen)

प्रकाश संश्लेषण: पौधे सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके अपना भोजन बनाते हैं, जिसे प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है। इस प्रक्रिया में, पौधे कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को ग्लूकोज (एक प्रकार की चीनी) और ऑक्सीजन में बदलते हैं। प्रकाश संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल नामक एक हरा वर्णक आवश्यक है, जो पत्तियों में पाया जाता है।
जब पत्तियों को कागज से ढक दिया जाता है, तो उन्हें सूर्य का प्रकाश नहीं मिल पाता है। प्रकाश के अभाव में, प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया रुक जाती है। क्लोरोफिल का उत्पादन भी कम हो जाता है, जिसके कारण पत्तियों का हरा रंग फीका पड़ने लगता है और वे पीली या सफेद हो जाती हैं।
जब कागज को हटा दिया जाता है, तो पत्तियां फिर से सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आती हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया फिर से शुरू हो जाती है और क्लोरोफिल का उत्पादन फिर से होने लगता है। धीरे-धीरे, पत्तियां फिर से अपना हरा रंग प्राप्त कर लेती हैं।
इस प्रयोग से पता चलता है कि प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश आवश्यक है और क्लोरोफिल पत्तियों के हरे रंग के लिए जिम्मेदार है।
विधि का सार:
- निकटतम पड़ोसी बिंदु विश्लेषण में, प्रत्येक बिंदु के लिए उसके सबसे निकटतम पड़ोसी बिंदु की दूरी मापी जाती है।
- इन मापी गई दूरियों का औसत निकाला जाता है।
- यह औसत दूरी वास्तविक वितरण की औसत दूरी होती है।
- इस वास्तविक औसत दूरी की तुलना एक यादृच्छिक वितरण से अपेक्षित औसत दूरी से की जाती है।
- यदि वास्तविक औसत दूरी अपेक्षित दूरी से कम है, तो बिंदुओं का वितरण एकत्रित (clustered) माना जाता है।
- यदि वास्तविक औसत दूरी अपेक्षित दूरी से अधिक है, तो बिंदुओं का वितरण फैला हुआ (dispersed) माना जाता है।
- यदि वास्तविक औसत दूरी अपेक्षित दूरी के समान है, तो बिंदुओं का वितरण यादृच्छिक (random) माना जाता है।
उपयोग:
- भूगोल में, यह विधि शहरों, दुकानों या अन्य सुविधाओं के वितरण का विश्लेषण करने के लिए उपयोग की जा सकती है।
- पारिस्थितिकी में, यह विधि पौधों या जानवरों के वितरण का विश्लेषण करने के लिए उपयोग की जा सकती है।
- अपराध विज्ञान में, यह विधि अपराधों के वितरण का विश्लेषण करने के लिए उपयोग की जा सकती है।
उदाहरण:
मान लीजिए कि आप एक शहर में अपराधों के वितरण का विश्लेषण करना चाहते हैं। आप प्रत्येक अपराध स्थल के लिए उसके सबसे निकटतम अपराध स्थल की दूरी मापते हैं। इन दूरियों का औसत निकालकर, आप वास्तविक औसत दूरी प्राप्त करते हैं। फिर आप इस वास्तविक औसत दूरी की तुलना एक यादृच्छिक वितरण से अपेक्षित औसत दूरी से करते हैं। यदि वास्तविक औसत दूरी अपेक्षित दूरी से कम है, तो इसका मतलब है कि अपराध एक साथ एकत्रित होते हैं, जैसे कि किसी विशेष क्षेत्र में अपराधों की संख्या अधिक है।
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