
संभाजी महाराज
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बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ था, जो वर्तमान में नेपाल में स्थित है।
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*_धर्मवीर 'संभाजी महाराज'_*
हिन्दुस्थान में हिंदवी स्वराज की गौरवपूर्ण स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के जयेष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर गढ पर हुआ था. संभाजी राजे भोंसले, छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र व शिवाजी की पहली पत्नी, सईबाई की संतान थे. संभाजी ने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया था और शिवाजी की मां, जीजाबाई ने ही उनकी देखभाल की.
👉 *_पुर्तगालियों ने अत्याचार किया तो…_*
संभाजी ने जिस वक्त सत्ता संभाली उस समय मुगलों के अलावा पुर्तगालियों ने भी लोगों का जीना दुश्वार कर रखा था. उन्होंने पुर्तगालियों पर तब तक हमले करने बंद नहीं किए, जब तक उन्होंने लोगों पर जुल्म करने बंद नहीं किए. उन्होंने हर संभव कोशिश की संभाजी को अपने रास्ते से हटाने की, किन्तु अंतत: उन्हें उनके सामने अपने घुटने टेकने पड़े. इस तरह 1683 आते-आते संभाजी पुर्तगालियों को पराजित करते हुए, लोगों को उनके जुल्मों से राहत दिलाने में सफल रहे.
👉 *_औरंगज़ेब का डटकर किया सामना_*
संभाजी मुगलों के वर्चस्व को खत्म करना चाहते थे, उनके सामने औरंगज़ेब जैसा मुगल शासक था, अपनी कट्टरता के कारण वह लोगों पर किए जाने वाले अत्याचारों की सीमा पार करता जा रहा था. यहां तक कि अपनी प्रजा पर बर्बरता करते हुए इसने हिन्दुओं के सैकड़ों मंदिरों को भी तुड़वाना शुरु कर दिया था. ऐसे में किसी भी कीमत पर उसका मुकाबला जरूरी था.
संभाजी ने इस बात को समझा और औरंगज़ेब के आधिपत्य वाले क्षेत्रों में चढ़ाई शुरु कर दी. देखते ही देखते कुछ ही दिनों में उन्होंने उसकी नाक में दम कर दिया. शिवाजी ने उसके भेजे कई सेनापतियों को मार गिराया था, इसलिए वह हमेशा उनके सामने जाने से डरता रहा. कुल मिलाकर औरंगज़ेब के लिए संभाजी उसके गले की हड्डी बन चुके थे. माना जाता है कि औरंगजेब के सामने संभाजी के इस तरह खड़े रहने के कारण ही बाद में बीजापुर और गोलकुण्डा से मुगलों का शासन समाप्त हुआ.
👉 *_आखिरी सांस तक लड़ते रहे!_*
इसी बीच मुगलों की 5000 सैनिकों वाली विशाल सेना ने उन पर हमला कर दिया. वह भाग सकते थे, लेकिन उन्होंने मुगलों का डटकर मुकाबला करने का रास्ता चुना और अंत तक उनको मारते रहे. हालांकि, वह अपनी हार को टाल नहीं सके और अंतत: अपने साथी कविकलश के साथ बंदी बना लिए गए.
जैसे ही संभाजी को औरंगजेब के सामने पेश किया गया, वह जमकर मुस्कुराया और उन पर यातनाएं शुरु करवा दीं. इस पर भी उसका मन नहीं भरा तो उसने उनकी जुबान काटते हुए आँखें निकाल लेने का आदेश दे दिया था. लेकिन, इतनी यातनाओं के बावजूद संभाजी का साहस नहीं टूटा. वह औरंगजेब के सामने झुके तक नहीं. यह देखकर औरंगजेब बुरी तरह बौखला गया और उसने 31 मार्च 1689 को उनको मौत दे दी.
औरंगजेब ने सोचा था कि संभाजी की मौत के मराठा साम्राज्य ख़त्म हो जाएगा, लेकिन ऐसा हो न सका. संभाजी की मृत्यु के बाद मराठाओं ने एकजुट होकर उसका सामना किया और मराठा सम्राज्य को जीतने का उसका सपना, सपना ही रह गया.
तुलापुर स्थित संभाजी महाराज की समाधि आज भी उनकी जीत और अहंकारी व कपटी औरंगजेब की हार को बयान करती है.

हिन्दुस्थान में हिंदवी स्वराज की गौरवपूर्ण स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के जयेष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर गढ पर हुआ था. संभाजी राजे भोंसले, छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र व शिवाजी की पहली पत्नी, सईबाई की संतान थे. संभाजी ने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया था और शिवाजी की मां, जीजाबाई ने ही उनकी देखभाल की.
👉 *_पुर्तगालियों ने अत्याचार किया तो…_*
संभाजी ने जिस वक्त सत्ता संभाली उस समय मुगलों के अलावा पुर्तगालियों ने भी लोगों का जीना दुश्वार कर रखा था. उन्होंने पुर्तगालियों पर तब तक हमले करने बंद नहीं किए, जब तक उन्होंने लोगों पर जुल्म करने बंद नहीं किए. उन्होंने हर संभव कोशिश की संभाजी को अपने रास्ते से हटाने की, किन्तु अंतत: उन्हें उनके सामने अपने घुटने टेकने पड़े. इस तरह 1683 आते-आते संभाजी पुर्तगालियों को पराजित करते हुए, लोगों को उनके जुल्मों से राहत दिलाने में सफल रहे.
👉 *_औरंगज़ेब का डटकर किया सामना_*
संभाजी मुगलों के वर्चस्व को खत्म करना चाहते थे, उनके सामने औरंगज़ेब जैसा मुगल शासक था, अपनी कट्टरता के कारण वह लोगों पर किए जाने वाले अत्याचारों की सीमा पार करता जा रहा था. यहां तक कि अपनी प्रजा पर बर्बरता करते हुए इसने हिन्दुओं के सैकड़ों मंदिरों को भी तुड़वाना शुरु कर दिया था. ऐसे में किसी भी कीमत पर उसका मुकाबला जरूरी था.
संभाजी ने इस बात को समझा और औरंगज़ेब के आधिपत्य वाले क्षेत्रों में चढ़ाई शुरु कर दी. देखते ही देखते कुछ ही दिनों में उन्होंने उसकी नाक में दम कर दिया. शिवाजी ने उसके भेजे कई सेनापतियों को मार गिराया था, इसलिए वह हमेशा उनके सामने जाने से डरता रहा. कुल मिलाकर औरंगज़ेब के लिए संभाजी उसके गले की हड्डी बन चुके थे. माना जाता है कि औरंगजेब के सामने संभाजी के इस तरह खड़े रहने के कारण ही बाद में बीजापुर और गोलकुण्डा से मुगलों का शासन समाप्त हुआ.
👉 *_आखिरी सांस तक लड़ते रहे!_*
इसी बीच मुगलों की 5000 सैनिकों वाली विशाल सेना ने उन पर हमला कर दिया. वह भाग सकते थे, लेकिन उन्होंने मुगलों का डटकर मुकाबला करने का रास्ता चुना और अंत तक उनको मारते रहे. हालांकि, वह अपनी हार को टाल नहीं सके और अंतत: अपने साथी कविकलश के साथ बंदी बना लिए गए.
जैसे ही संभाजी को औरंगजेब के सामने पेश किया गया, वह जमकर मुस्कुराया और उन पर यातनाएं शुरु करवा दीं. इस पर भी उसका मन नहीं भरा तो उसने उनकी जुबान काटते हुए आँखें निकाल लेने का आदेश दे दिया था. लेकिन, इतनी यातनाओं के बावजूद संभाजी का साहस नहीं टूटा. वह औरंगजेब के सामने झुके तक नहीं. यह देखकर औरंगजेब बुरी तरह बौखला गया और उसने 31 मार्च 1689 को उनको मौत दे दी.
औरंगजेब ने सोचा था कि संभाजी की मौत के मराठा साम्राज्य ख़त्म हो जाएगा, लेकिन ऐसा हो न सका. संभाजी की मृत्यु के बाद मराठाओं ने एकजुट होकर उसका सामना किया और मराठा सम्राज्य को जीतने का उसका सपना, सपना ही रह गया.
तुलापुर स्थित संभाजी महाराज की समाधि आज भी उनकी जीत और अहंकारी व कपटी औरंगजेब की हार को बयान करती है.
