
सफाई
10
Answer link
स्नान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य देह को या फिर किसी भी जीव की देह को तरल पदार्थ में या फिर शुद्ध जल से साफ किया जाता है। मनुष्य के पूरे दिनचर्या में जो भी कीचड़ या फिर गंदगी उसके शरीर पर ठहर जाती है उसे साफ करने का काम ही स्नान कहलाता है। इसे रोज करना सबसे बेहतर माना जाता है। हिंदू धर्म में इसे पवित्रता का स्थान है। क्योंकि स्नान से ना ही देह की शुद्धि होती है, परंतु स्नान करने से मन की भी शुद्धि होती है। स्नान हमारे आत्मा और देह को हमेशा पवित्र रखने का काम करता है। जो कि हमें हमेशा पवित्रता का मार्ग दिखाता है। वैसे तो स्नान हमेशा सुबह कि समय ही करना चाहिए परंतु सुबह और शाम दो समय पर किया हुआ स्नान अति उत्तम माना जाता है। क्योंकि यहां पर दो बार शरीर की शुद्धि होती है और इससे मन हमेशा आनंदित रहता है।
वैसे तो स्नान के बहुत प्रकार हैं जैसे कि सूर्य स्नान इसका अर्थ है रोज सुबह सूर्य के किरणों को अपने शरीर के ऊपर बिछाना। जब जब सूरज की किरने शरीर के ऊपर पड़ती है तो उसे सूर्य स्नान कहा जाता है। बिल्कुल इसी तरह भेाैम स्नान, वायव्य स्नान, मंत्र स्नान, मानसिक स्नान, भस्म में स्नान या फिर अग्निस्नान, वरुण स्नान, दिव्य स्नान इत्यादि है। इन सभी स्नानों को हिंदू धर्म में अपनी-अपनी मान्यता है। और यह सभी स्नान अपने अपने तरीके से पवित्र है।
वैसे तो स्नान के बहुत प्रकार हैं जैसे कि सूर्य स्नान इसका अर्थ है रोज सुबह सूर्य के किरणों को अपने शरीर के ऊपर बिछाना। जब जब सूरज की किरने शरीर के ऊपर पड़ती है तो उसे सूर्य स्नान कहा जाता है। बिल्कुल इसी तरह भेाैम स्नान, वायव्य स्नान, मंत्र स्नान, मानसिक स्नान, भस्म में स्नान या फिर अग्निस्नान, वरुण स्नान, दिव्य स्नान इत्यादि है। इन सभी स्नानों को हिंदू धर्म में अपनी-अपनी मान्यता है। और यह सभी स्नान अपने अपने तरीके से पवित्र है।
- जो व्यक्ति सूर्य स्नान करता है वह हमेशा आरोग्य वान रहता है। क्योंकि सूर्य की सुबह की किरण उससे हमेशा ऊर्जावान बनाए रखते हैं।
- भेाैम स्नान वह स्थान है यहां पर मिट्टी को अपने पूरे शरीर पर लगाना होता है।
- मानसिक स्नान का मतलब होता है अपने आत्म का चिंतन करना या फिर किसी भी मंत्र का एक साथ लगातार उच्चारण करना। यह ज्यादातर योगी जन करते हैं। ध्यान की प्रक्रिया में मानसिक स्नान का ज्यादा महत्व है। क्योंकि मानसिक स्नान के लिए एकाग्रता बहुत ही जरूरी है। मानसिक स्नान से मन पवित्रता भी बढ़ती है।
- वायव्य स्नान में गाय के खुर की धुली को शरीर पर लगाना होता है
- अग्निस्नान में अग्नि की राख को पूरे शरीर में लगाना होता है। ऐसा कहा जाता है कि पहले के जमाने में ऋषि-मुनि या फिर प्रायश्चित के लिए अग्नि स्नान कर लेते थे। जहां पर अग्नि से शरीर को साफ करना पड़ता था। जिससे मनुष्य के सारे पाप धुल जाते थे। अग्नि स्नान के अतुत्तम उदाहरण हमें रामायण और महाभारत में मिलते है। जहां पर सीता माता जी ने और स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अग्नि स्नान करने का दावा किया था।
- मंत्र स्नान और मानसिक स्नान दोनों एक प्रकार की विद्या है जहां पर दोनों में मन का उपयोग करके मन को ही शुद्ध किया जाता है। मंत्र स्नान में हमेशा मंत्रों के उच्चारण होती है।
- इन सब में सबसे अधिक जानने वाला स्नान जल स्नान है जिसे और वरुण स्नान भी कहते हैं। यहां पर व्यक्ति के शरीर को शुद्ध जल से शुद्ध किया जाता है। यह काम हर एक व्यक्ति करता है। जिससे शरीर की पवित्रता और शुद्धि बढ़ती है