
कहानी और उपन्यास
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कहानी एवं उपन्यास का उद्भव एवं विकास
कहानी:
- उद्भव: आधुनिक हिंदी कहानी का उद्भव 20वीं शताब्दी के आरम्भ में माना जाता है। इसे भारतेंदु युग के बाद विकसित हुई।
- विकास: प्रारंभिक कहानियों में सामाजिक सुधार और नैतिकता पर बल दिया गया था। प्रेमचंद युग (1920-1936) में कहानियों में यथार्थवाद और सामाजिक चेतना का समावेश हुआ। इसके बाद, नई कहानी, अकहानी, और समकालीन कहानी जैसे आंदोलनों ने कहानी के स्वरूप और विषयवस्तु में नए प्रयोग किए।
उपन्यास:
- उद्भव: हिंदी उपन्यास का उद्भव भी 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। 'परीक्षा गुरु' (लाला श्रीनिवास दास) को हिंदी का पहला उपन्यास माना जाता है।
- विकास: प्रेमचंद युग में उपन्यासों ने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाया। 'गोदान' (प्रेमचंद) इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। स्वतंत्रता के बाद, उपन्यासों में आधुनिकता, व्यक्तिवाद, और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पर जोर दिया गया।
सामान्य प्रवृत्तियां:
- यथार्थवाद: कहानियों और उपन्यासों में समाज के यथार्थ चित्रण पर बल दिया गया।
- सामाजिक चेतना: रचनाओं में सामाजिक समस्याओं और मुद्दों को उठाया गया।
- मनोवैज्ञानिक विश्लेषण: पात्रों के आंतरिक जीवन और भावनाओं का विश्लेषण किया गया।
- प्रयोगशीलता: नए कथा-शैलियों और तकनीकों का प्रयोग किया गया।
प्रमुख कथाकार:
- प्रेमचंद
- जयशंकर प्रसाद
- यशपाल
- अज्ञेय
- कृष्णा सोबती
प्रमुख उपन्यासकार:
- प्रेमचंद
- शरद चंद्र चट्टोपाध्याय
- हजारी प्रसाद द्विवेदी
- फणीश्वरनाथ रेणु
- मन्नू भंडारी
निबंध एवं नाटक का उद्भव एवं विकास
निबंध:
- उद्भव: हिंदी निबंध का उद्भव भारतेंदु युग में हुआ। भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी निबंध का जनक माना जाता है।
- विकास: द्विवेदी युग में निबंधों में विचारात्मकता और ज्ञान पर बल दिया गया। शुक्ल युग में निबंधों में गंभीर चिंतन और साहित्यिक विश्लेषण का समावेश हुआ। स्वतंत्रता के बाद, निबंधों में सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक मुद्दों पर विचार किया गया।
नाटक:
- उद्भव: हिंदी नाटक का उद्भव भी भारतेंदु युग में हुआ। 'भारत दुर्दशा' (भारतेंदु हरिश्चंद्र) हिंदी का पहला आधुनिक नाटक माना जाता है।
- विकास: प्रारंभिक नाटकों में राष्ट्रीयता और सामाजिक सुधार पर बल दिया गया। प्रसाद युग में नाटकों में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विषयों को उठाया गया। स्वतंत्रता के बाद, नाटकों में आधुनिकता, व्यक्तिवाद, और सामाजिक यथार्थवाद पर जोर दिया गया।
सामान्य प्रवृत्तियां:
- राष्ट्रीयता: नाटकों और निबंधों में राष्ट्रीय भावना और देशभक्ति पर बल दिया गया।
- सामाजिक सुधार: रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों का विरोध किया गया।
- विचारात्मकता: निबंधों में गंभीर चिंतन और मनन पर जोर दिया गया।
- प्रयोगशीलता: नए नाट्य-शैलियों और तकनीकों का प्रयोग किया गया।
प्रमुख नाटककार:
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
- जयशंकर प्रसाद
- मोहन राकेश
- भीष्म साहनी
- हबीब तनवीर
प्रमुख निबंधकार:
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
- महावीर प्रसाद द्विवेदी
- रामचंद्र शुक्ल
- हजारी प्रसाद द्विवेदी
- विद्यानिवास मिश्र