
वीर रस
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वीर रस, भारतीय काव्यशास्त्र में, उत्साह नामक स्थायी भाव से उत्पन्न होता है। यह रस युद्ध, साहस, पराक्रम, और वीरता जैसे विषयों पर आधारित होता है। वीर रस में उत्साह, जोश, और वीरता की भावना प्रबल होती है।
परिभाषा: वीर रस वह है जहाँ उत्साह नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से आस्वादित होता है। इसमें वीरता, साहस, और पराक्रम का प्रदर्शन होता है।
उदाहरण:
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
इस कविता में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का वर्णन है, जो वीर रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।