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राजा राम मोहन राय का जीवन परिचय देते हुए उनके सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों को समझाइए?
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राजा राम मोहन राय: जीवन परिचय और सुधार
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
- जन्म: 22 मई, 1772, राधानगर, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (वर्तमान पश्चिम बंगाल, भारत)
- मृत्यु: 27 सितंबर, 1833, ब्रिस्टल, इंग्लैंड
- शिक्षा: उन्होंने फारसी, अरबी, संस्कृत, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं का अध्ययन किया। उन्होंने हिन्दू, इस्लाम और ईसाई धर्मों के बारे में भी ज्ञान प्राप्त किया।
सामाजिक सुधार
- सती प्रथा का विरोध: राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ़ एक सशक्त आंदोलन चलाया। उन्होंने तर्क दिया कि यह प्रथा हिन्दू धर्म ग्रंथों में अनिवार्य नहीं है। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिंक ने सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया पर लेख
- बाल विवाह का विरोध: उन्होंने बाल विवाह का भी विरोध किया और महिलाओं के लिए शिक्षा और संपत्ति के अधिकार की वकालत की।
- जातिवाद का विरोध: राजा राम मोहन राय ने जातिवाद और अस्पृश्यता के खिलाफ़ भी आवाज उठाई। उन्होंने सभी मनुष्यों की समानता में विश्वास किया।
धार्मिक सुधार
- एकेश्वरवाद का समर्थन: राजा राम मोहन राय एकेश्वरवाद (ईश्वर एक है) के समर्थक थे। उन्होंने मूर्ति पूजा और अंधविश्वासों का विरोध किया।
- ब्रह्म समाज की स्थापना: 1828 में, उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य हिन्दू धर्म को शुद्ध करना और एकेश्वरवाद का प्रचार करना था। ब्रिटानिका पर ब्रह्म समाज की जानकारी
राजनीतिक सुधार
- प्रेस की स्वतंत्रता: राजा राम मोहन राय ने प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया और सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अधिकार मांगा।
- प्रशासनिक सुधार: उन्होंने भारतीय प्रशासन में सुधारों की वकालत की और भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त करने की मांग की।
- ब्रिटिश सरकार से अपील: उन्होंने ब्रिटिश सरकार से भारत में शिक्षा, न्याय और व्यापार के क्षेत्र में सुधार करने की अपील की।
महत्व
- राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत के जनक के रूप में जाना जाता है।
- उन्होंने भारतीय समाज और धर्म में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उनके विचारों ने भारतीय राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।