दिन विशेष
दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता में क्या कवि हताश और दुखी है?
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दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता में क्या कवि हताश और दुखी है?
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दिन जल्दी-जल्दी ढलता है कविता में कवि की मनोदशा मिली-जुली है।
कुछ पंक्तियों में कवि हताश और दुखी दिखाई देता है, खासकर जब वह सोचता है कि उसके प्रियजन उससे दूर हैं और वह अकेला है:
- "दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! चिड़िया का बच्चा प्रत्याशा में होगा, नीड़ों से झाँक रहा होगा।"
यहाँ कवि को अपने प्रियजनों से बिछड़ने का डर है और वह अकेलापन महसूस करता है।
हालांकि, दूसरी ओर, कविता में एक आशा और उत्साह का भाव भी है। कवि जानता है कि जीवन चलता रहता है और उसे अपनी यात्रा जारी रखनी है:
- "मुझसे मिलने को कौन विकल? मैं होऊँ किसके हित चंचल? यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!"
इन पंक्तियों में कवि जीवन की गतिशीलता को स्वीकार करता है और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होता है।
इसलिए, यह कहना मुश्किल है कि कवि पूरी तरह से हताश और दुखी है। कविता में निराशा और आशा दोनों का मिश्रण है। कवि जीवन की वास्तविकता को स्वीकार करता है और फिर भी आगे बढ़ने की प्रेरणा रखता है।