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आयुष्य

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भारत में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने का मुख्य कारण युवाओं को राजनीतिक प्रक्रिया में अधिक भागीदारी देना था। 1988 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में संविधान में 61वां संशोधन किया गया, जिसके तहत यह परिवर्तन हुआ।

प्रमुख कारण:

  • युवाओं को सशक्तिकरण: यह माना गया कि 18 वर्ष की आयु के युवा देश के प्रति अधिक जागरूक और जिम्मेदार होते हैं, और उन्हें अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अधिकार होना चाहिए।
  • राजनीतिक जागरूकता: शिक्षा और सूचना के प्रसार के साथ, युवाओं में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी थी, और वे देश के भविष्य को आकार देने में सक्षम थे।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानदंड: कई देशों में मतदान की आयु 18 वर्ष थी, और भारत में भी इसे अपनाने का दबाव था।

इस परिवर्तन से युवाओं को लोकतंत्र में सीधे भाग लेने का अवसर मिला, और यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

स्रोत:

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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अकबर 13 वर्ष की आयु में शासक बना।

उसका जन्म 15 अक्टूबर, 1542 को हुआ था और 14 फरवरी, 1556 को वह मुगल साम्राज्य का बादशाह बना।

उस समय, बैरम खान ने संरक्षक के रूप में कार्य किया था।

स्रोत:

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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यहां पशुओं की आयु ज्ञात करने के कुछ तरीके दिए गए हैं:

पशुओं की आयु ज्ञात करने के विभिन्न तरीके हैं:

  • दाँतों से: यह सबसे आम तरीका है। पशुओं के दाँतों की संख्या, आकार और घिसावट के आधार पर उनकी आयु का अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, घोड़ों में, उनके दाँतों पर छल्ले की संख्या से उनकी आयु का पता लगाया जा सकता है। [1]
  • खुरों से: कुछ पशुओं में, खुरों पर छल्ले की संख्या से भी उनकी आयु का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • सींगों से: कुछ पशुओं में, सींगों पर छल्ले की संख्या से उनकी आयु का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • शारीरिक विकास से: पशुओं के शारीरिक विकास, जैसे कि उनके आकार, वजन और मांसपेशियों के विकास से भी उनकी आयु का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • रिकॉर्ड से: यदि पशु का जन्म रिकॉर्ड रखा गया है, तो उसकी आयु सीधे तौर पर ज्ञात की जा सकती है।

इन तरीकों का उपयोग करके, पशुओं की आयु का अनुमान लगाया जा सकता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये केवल अनुमान हैं और पशु की वास्तविक आयु थोड़ी भिन्न हो सकती है।

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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आयुष योजना भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक स्वास्थ्य योजना है, जिसका उद्देश्य आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (AYUSH) जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा देना है।

इस योजना के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:

  • आयुष चिकित्सा प्रणालियों का विकास: आयुष चिकित्सा प्रणालियों की शिक्षा, अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना।
  • स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार: आयुष चिकित्सा प्रणालियों को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एकीकृत करना ताकि लोगों को बेहतर और समग्र स्वास्थ्य सेवाएँ मिल सकें।
  • दवाओं की उपलब्धता: आयुष दवाओं की गुणवत्ता और उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • जागरूकता बढ़ाना: लोगों को आयुष चिकित्सा प्रणालियों के बारे में जागरूक करना और उन्हें इनका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना।

अधिक जानकारी के लिए, आप निम्नलिखित लिंक पर जा सकते हैं:

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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मान लिया लड़के की वर्तमान आयु=x
पिता की वर्तमान आयु =y
प्रश्न से
क्योंकि लड़के की आयु पिता के आयु से एक तिहाई है, इसलिए
3x=y - - -(1)
फिर 12 वर्ष बाद लड़के की आयु पिता की आयु से आधी हो जाती है, इसलिए
y+12=2(x+12) - - - -(2)
अब आगे का हल नीचे है-


उत्तर लिखा · 5/3/2019
कर्म · 23425
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इस संसार में मनुष्य को जो कुछ करना है उसे चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-
*धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष।*

धर्म’

‘धर्म’ का तात्पर्य है धारण करना। मनुष्य मनन एवं विचार पूर्वक जिन सत्कर्मों का करना अपना कर्तव्य समझता है उनकी पूर्ति के लिये जीवन पर्यन्त प्रयत्नशील रहना धर्म कहलाता है। मनुष्य जिस समाज, देश एवं राष्ट्र में जन्म लेता है उस समाज, अथवा देश की सेवा करना, उसकी सर्वांगीण उन्नति में योग देना, उसकी मान-मर्यादा के लिये जीवन को बलिवेदी पर चढ़ा देना भी मनुष्य का सच्चा धर्म है।

समाज एवं राष्ट्र की सामयिक मनोदशा का अध्ययन करके तद्नुकूल आचरण करना युग-धर्म कहलाता है। पर ऐसा आचरण स्थाई नहीं होता, कुछ काल के लिये होता है। जिन परिस्थितियों को देखकर युग धर्म अपनाया जाता है, वह परिस्थितियाँ जब टल जायं तो उसमें परिवर्तन कर लेना उचित है।

अर्थ

आज सम्पूर्ण विश्व अर्थ के पीछे बुरी तरह पागल हो रहा है। साधारण मनुष्य ही नहीं बल्कि अपने को पूर्ण त्यागी अथवा जनता के सेवक कहने वाले भी अर्थ के दास देखने में आते हैं। वर्तमान युग में अर्थ की ऐसी मान्यता देखने में आ रही है कि किसी कवि का यह कहना सत्य ही जान पड़ता है- “संपूर्ण गुण धन में ही समाये हुए है।” आज समस्त संसार में जो अशान्ति का वातावरण फैला हुआ है और मनुष्य भले-बुरे का विचार त्यागकर स्वार्थ-साधन में लिप्त है उसका कारण यही धन की लालसा है।

हिन्दू संस्कृति के अनुसार ब्रह्मचर्य आश्रम को समाप्त कर जब मनुष्य गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है तो उसे सुखमय बनाने के लिये अर्थ की आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि शेष तीन आश्रम इसी गृहस्थ आश्रम के भरोसे रहते हैं और नित्यप्रति पंचयज्ञों का करना भी गृहस्थ का कर्तव्य माना जाता है, इसलिये गृहस्थ को आवश्यक अर्थ की अभिलाषा करना और उसका संग्रह करना बुरा नहीं कहा जा सकता। पर यह धन भी अन्याय अथवा अत्याचार द्वारा उपार्जित न हो, तभी वह समाज के लिये कल्याणकारी होता है।

काम

‘काम’ का अर्थ है कामना युक्त। काम का उदय मन में होता है। इसीलिये काम को ‘मनसिज’ भी कहते हैं। ‘काम’ के मुख्यतः दो भेद हैं। एक वासनाजन्य काम और दूसरा भगवत् प्रेम। वासना-जन्य काम की पूर्ति विवाहित जीवन में होती है और भगवत् प्रेम की पूर्ति ईश्वरोपासना में। पुरुष में पुरुषत्व होता है और नारी में नारीत्व। इन्हीं के द्वारा सृष्टि को स्थिर रखने के कार्य में वे योग दे सकते हैं। पर उनका यह कार्य तभी तक धर्मानुकूल मनाया जायगा जब तक वह मर्यादा के भीतर हो। असंयमित ‘काम’ को व्यभिचार की संज्ञा दी जाती है। इस बात का ध्यान पुरुष और स्त्री दोनों को ही रखना आवश्यक है। वे जितने ही संयम और आत्मिक सहयोग की भावना में गृहस्थ-जीवन का निर्वाह करेंगे उतने ही अनुपात में दाम्पत्य-प्रेम का आनन्द प्राप्त कर सकेंगे। गृहस्थ-जीवन का सुचारु रूप से निर्वाह करने से ही मनुष्य भगवद् भक्ति की ओर अग्रसर हो सकता है और एक समय ऐसा आता है कि वह घर के बन्धन को त्यागकर ईश्वर प्राप्ति में ही संलग्न हो जाता है।

मोक्ष

सभी प्राणी दुख को दूर करने और सुख प्राप्त करने का प्रयत्न करते रहते हैं। और सुख भी ऐसा जिसका कभी नाश न हो। किन्तु दुख का अत्यन्त अभाव किस प्रकार हो यह एक बड़ी जटिल समस्या है। कारण दुख का अत्यन्ताभाव किसी साँसारिक वस्तु या सफलता से नहीं हो सकता। संसार के बड़े से बड़े धनी और चक्रवर्ती सम्राट को भी अनेक प्रकार की चिंताएं देखने में आती हैं और तरह-तरह के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कष्ट भी सहन करने पड़ते हैं। तब शाश्वत सुख कैसे प्राप्त किया जा सकता है? इसके लिये त्याग और तपस्या की आवश्यकता होती है। यम-नियम का पालन, सत्यानुमोदित कर्मों का आचरण, प्राणिमात्र को आत्मवत् मानना, सेवा-व्रत का धारण करना, सब प्रकार के दुर्व्यसनों का त्याग आदि ऐसे दैवी गुण हैं जिन पर चलकर मनुष्य मोक्ष-मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।

हमारे पूर्वज ऋषि महर्षियों ने विशेष मननपूर्वक इन चार सूत्रों का आविष्कार किया था। किसी भी मनुष्य के भीतर जितनी भी अभिलाषायें या मनोभावनायें हो सकती हैं उन्हें इन्हीं चार विभागों में बाँटा जा सकता है। इन्हीं चारों तत्वों को अपनाकर मनुष्य अपने जीवन को पूर्ण सफल बना सकता है। खेद है कि आजकल के मनुष्य केवल दो तत्वों अर्थ और काम को अपना कर वह भी बड़े गलत तरीके से सम्पूर्ण मनोरथों के सिद्ध होने की आशा किया करते हैं। धर्म एवं मोक्ष के प्रति अब किसी में आस्था नहीं रह गई है। अर्थ को प्रथम स्थान मिलने से ही मनुष्य, मनुष्य का शोषण करने लग गया है। और काम की दृष्टि से उसका आचरण पशुओं से घोर निकृष्ट समझा जाने लायक बन गया है। इसलिए जब हमारे बन्धुगण धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थों पर उनके सच्चे रूप से आचरण करेंगे तभी वे कल्याण की आशा कर सकते हैं।

संकलित महती प्राप्त
उत्तर लिखा · 23/10/2018
कर्म · 68420
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अगर किस्मत में कुछ पहले से ही लिखा होता... तो यदि मानव अपने बल पर कुछ करेगा ही नही...
(उसे पता है... मेरी किस्मत अच्छी है... मुझे सबकुछ मिलने वाला है... तो में क्यों परिश्रम करू... क्यों बाहर जाऊ.. बैठकर अपने आप ही आने वाला है ना...) यह एक उदाहरण है...! जो किस्मत के नाम पर गलत उद्देश्य पहुचँता है...
किस्मत हम अपने हाँथो से लिखते है...
पौधे फूल, खेती ऐसी ही नही उगती... जब प्रकृती बारिश बरसाता है तभी हराभरा, खिलखिला हो जाता है...
और हम सब तो मनुष्य है...
जीवन में कुछ अच्छा प्राप्त करने के लिए हमारे पास ध्येय होना चाहिए... विश्वास होना चाहिए... उसपर अंमल करने के लिए हमारे पास दृढ़ता होनी चाहिए...
जीवन में सबकुछ किस्मत से नही मिलता...
जीवन में सबकुछ प्यार, मेहनत, लगान, प्रामाणिक व्यक्ति बनकर मिलता है...
उत्तर लिखा · 22/7/2018
कर्म · 68420