
व्यवसाय मार्गदर्शन
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कारक:
कारक व्याकरण में वह तत्व है जो संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया और वाक्य के अन्य शब्दों के साथ संबंध बताता है। इसे विभक्ति या परसर्ग भी कहते हैं।
कारक चिन्ह:
कारक चिन्ह वे प्रत्यय हैं जो शब्दों के बाद लगकर उनका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से बताते हैं।
कारक भेद:
- कर्ता कारक: (ने) - क्रिया करने वाला। उदाहरण: राम ने रावण को मारा।
- कर्म कारक: (को) - जिस पर क्रिया का फल पड़े। उदाहरण: राम ने रावण को मारा।
- करण कारक: (से, के द्वारा) - क्रिया का साधन। उदाहरण: राम ने बाण से रावण को मारा।
- संप्रदान कारक: (को, के लिए) - जिसके लिए क्रिया की जाए। उदाहरण: राम ने रावण के लिए बाण मारा।
- अपादान कारक: (से - अलग होने का भाव) - जिससे कोई वस्तु अलग हो। उदाहरण: पेड़ से पत्ते गिरते हैं।
- संबंध कारक: (का, की, के, रा, री, रे) - संबंध बताने वाला। उदाहरण: यह राम की पुस्तक है।
- अधिकरण कारक: (में, पर) - क्रिया का आधार या स्थान। उदाहरण: पुस्तक मेज पर है।
- संबोधन कारक: (हे, अरे, ओ) - किसी को बुलाने या संबोधित करने के लिए। उदाहरण: हे राम!
जीवन निर्माण कमाने के लिए व्यवसाय:
जीवन निर्माण और आजीविका कमाने के लिए कई तरह के व्यवसाय किए जा सकते हैं। यह व्यक्ति की रुचि, कौशल और पूंजी पर निर्भर करता है। कुछ उदाहरण:
- कृषि और पशुपालन
- खुदरा व्यापार (दुकान, ऑनलाइन स्टोर)
- सेवा क्षेत्र (शिक्षण, परामर्श, मरम्मत, आदि)
- हस्तशिल्प और कला
- तकनीकी सेवाएं (वेब डेवलपमेंट, ग्राफिक डिजाइन, आदि)
इन व्यवसायों को शुरू करने के लिए व्यक्ति को अपनी क्षमता और बाजार की मांग का आकलन करना चाहिए।
अधिक जानकारी के लिए, आप इन वेबसाइटों पर जा सकते हैं:
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दिए गए वाक्य में कारक और उसके भेद इस प्रकार हैं:
- धन कमाने के लिए:
- कारक: के लिए (सम्प्रदान कारक)
- भेद: सम्प्रदान कारक (यह बताता है कि क्रिया किसके लिए की जा रही है)
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व्यापार (Trade) का अर्थ है क्रय और विक्रय। दूसरे शब्दों में, एक व्यक्ति (या संस्था) से दूसरे व्यक्ति (या संस्था) को सामानों का स्वामित्व अन्तरण ही व्यापार कहलाता है। स्वामित्व का अन्तरण सामान, सेवा या मुद्रा के बदले किया जाता है। जिस नेटवर्क (संरचना) में व्यापार किया जाता है उसे 'बाजार' कहते हैं।
आरम्भ में व्यापार एक सामान के बदले दूसरा सामान लेकर (वस्तु-विनिमय या बार्टर) किया जाता था। बाद में अधिकांश वस्तुओं के बदले धातुएँ, मूल्यवान धातुएँ, सिक्के, हुण्डी (bill) अथवा पत्र-मुद्रा से हुईँ। आजकल अधिकांश क्रय-विक्रय मुद्रा (मनी) द्वारा होता है। मुद्रा के आविष्कार (तथा बाद में क्रेडिट, पत्र-मुद्रा, अभौतिक मुद्रा आदि) से व्यापार में बहुत सरलता और सुविधा आ गयी।
आरम्भ में व्यापार एक सामान के बदले दूसरा सामान लेकर (वस्तु-विनिमय या बार्टर) किया जाता था। बाद में अधिकांश वस्तुओं के बदले धातुएँ, मूल्यवान धातुएँ, सिक्के, हुण्डी (bill) अथवा पत्र-मुद्रा से हुईँ। आजकल अधिकांश क्रय-विक्रय मुद्रा (मनी) द्वारा होता है। मुद्रा के आविष्कार (तथा बाद में क्रेडिट, पत्र-मुद्रा, अभौतिक मुद्रा आदि) से व्यापार में बहुत सरलता और सुविधा आ गयी।
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विश्व व्यापार संगठन (W.T.O) एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है। इस संगठन की स्थापना जनवरी 1995 ई. में की गई थी। भारत इसका संस्थापक सदस्य रहा है। 2006 तक 149 सदस्य इसमें शामिल थे, शायद यह आंकड़ा अभी भी इतना ही है। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। विश्व व्यापार संगठन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए नियम कानून बनाता है और इसकी रक्षा करता है।
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कुटीर उद्योग सामूहिक रूप से उन उद्योगों को कहते हैं जिनमें उत्पाद एवं सेवाओं का सृजन अपने घर में ही किया जाता है न कि किसी कारखाने में। कुटीर उद्योगों में कुशल कारीगरों द्वारा कम पूंजी एवं अधिक कुशलता से अपने हाथों के माध्यम से अपने घरों में वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।
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कुटीर उद्योग
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कुटीर उद्योग
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व्यापार चक्र (business cycle अर्थवा आर्थिक चक्रअथवा बूम बस्ट चक्र) बाजार अर्थव्यवस्था में एक वर्ष अथवा कुछ माह में उत्पादन, व्यापार और सम्बंधित गतिविधि को सन्दर्भित करने वाला एक शब्द है।[1]
पूँजीवादी व्यवस्था में सदा तेजी या सदा मन्दी नहीं रहती बल्कि तेजी के बाद मन्दी तथा मन्दी के बाद तेजी का क्रम आता रहता है। यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषता है। इसे ही व्यापार चक्र (ट्रेड सायकिल या इकनॉमिक सायकिल) काते हैं। कई देशों (फ्रांस, इंग्लैण्ड, यूएसए) की अर्थव्यवस्था का अध्ययन करने के पश्चात फ्रांसके अर्थशास्त्री क्लीमेण्ट जगलर (Clement Juglar) ने सबसे पहले १८६२ 'व्यापार चक्र' की संकल्पना रखी थी।
प्रमुख आर्थिक सिद्धान्त मुख्यतः ४ प्रकार के चक्रों की बात करते हैं। ये सभी चक्र सदा चलते रहते हैं किन्तु इनके आवर्तन की अवधि अलग-अलग होती है।
किचिन चक्र (Kitchin cycle) -- (3-4 वर्ष);
जगलर चक्र (uglar cycle) -- (8-10 वर्ष);
कजनेट चक्र (Kuznets cycle) -- (15 से 25 वर्ष);
कोन्द्रातिफ चक्र (Kondratieff cycle) -- (40 से 60 वर्ष)
पूँजीवादी व्यवस्था में सदा तेजी या सदा मन्दी नहीं रहती बल्कि तेजी के बाद मन्दी तथा मन्दी के बाद तेजी का क्रम आता रहता है। यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषता है। इसे ही व्यापार चक्र (ट्रेड सायकिल या इकनॉमिक सायकिल) काते हैं। कई देशों (फ्रांस, इंग्लैण्ड, यूएसए) की अर्थव्यवस्था का अध्ययन करने के पश्चात फ्रांसके अर्थशास्त्री क्लीमेण्ट जगलर (Clement Juglar) ने सबसे पहले १८६२ 'व्यापार चक्र' की संकल्पना रखी थी।
प्रमुख आर्थिक सिद्धान्त मुख्यतः ४ प्रकार के चक्रों की बात करते हैं। ये सभी चक्र सदा चलते रहते हैं किन्तु इनके आवर्तन की अवधि अलग-अलग होती है।
किचिन चक्र (Kitchin cycle) -- (3-4 वर्ष);
जगलर चक्र (uglar cycle) -- (8-10 वर्ष);
कजनेट चक्र (Kuznets cycle) -- (15 से 25 वर्ष);
कोन्द्रातिफ चक्र (Kondratieff cycle) -- (40 से 60 वर्ष)