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कुटुंब

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शायद आप का कहना है कि पिता कि आप कैसी संतान बनना चाहोगे?..‍.




हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनकी संतान हमेशा उनकी आज्ञा का पालन करें सुयोग्य हो उत्तम हो अपने कार्य अच्छे से करें और वगैरा-वगैरा ।


(परंतु कोई माता-पिता यह नहीं चाहता है कि उनकी संतान उपद्रव करने वाली हो लड़ाई करने वाली हो क्या करने वाले हो झगड़ा करने वाली हो )

अतः हमें अपनी और संसार की भलाई के लिए ...

अपनी और अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करने वाले संतान बननी चाहिए और अच्छे कर्म कर के इस संसार को त्यागना चाहिए ।


क्योंकि भलाई का कार्य कठिन होता हैं ।

इसलिए जहां तक संभव हो अपनी और संसार की भलाई के विषय में कार्य करना चाहिए । 



यह उत्तम संतान कहला आएगी और हमें उत्तम ही बनना है क्योंकि अति उत्तम हानिकारक होता है ।


उत्तर लिखा · 5/3/2022
कर्म · 7690
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ज्या कुटुंबात आई, वडील आणि त्यांची एक किंवा दोन मुले असतात, त्या कुटुंबाला 'एकात्मिक कुटुंब' किंवा 'संयुक्त कुटुंब' म्हणतात.
हे कुटुंब भारतीय समाजातील एक सामान्य प्रकार आहे.
  • एकात्मिक कुटुंब (Nuclear family): ह्या कुटुंबात आई, वडील आणि त्यांची अविवाहित मुले एकत्र राहतात.
  • संयुक्त कुटुंब (Joint family): ह्या कुटुंबात दोन पेक्षा जास्त पिढ्या एकत्र राहतात, ज्यात आजी-आजोबा, आई-वडील, काका-काकू आणि त्यांची मुले यांचा समावेश असतो.

अधिक माहितीसाठी:

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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मातृमूलक कुटुंब प्रथा एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें परिवार की पहचान और संपत्ति माता के माध्यम से वंशानुगत होती है। इस प्रथा में, माता परिवार की मुखिया होती है और परिवार के महत्वपूर्ण निर्णय लेने में उसकी भूमिका प्रमुख होती है।

मुख्य विशेषताएं:

  • वंशानुक्रम: संपत्ति और पद माता से उसकी बेटियों को मिलते हैं।
  • परिवार की मुखिया: माता परिवार की मुखिया होती है और उसके निर्णय अंतिम माने जाते हैं।
  • सामाजिक पहचान: परिवार की पहचान माता के नाम से होती है।
  • विवाह: विवाह के बाद पुरुष पत्नी के घर में रहने आते हैं।

भारत में मातृमूलक कुटुंब प्रथा:

भारत में मातृमूलक कुटुंब प्रथा कुछ समुदायों में पाई जाती है, जैसे कि मेघालय के खासी और गारो समुदाय और केरल के नायर समुदाय।

  • खासी और गारो समुदाय (मेघालय): इन समुदायों में, संपत्ति बेटियों को मिलती है और माता परिवार की मुखिया होती है। लाइव हिस्ट्री इंडिया
  • नायर समुदाय (केरल): पहले, नायर समुदाय में मातृमूलक प्रथा प्रचलित थी, लेकिन अब यह कम हो गई है। द हिन्दू

मातृमूलक और पितृमूलक कुटुंब प्रथा में अंतर:

मातृमूलक कुटुंब प्रथा पितृमूलक कुटुंब प्रथा से बिलकुल अलग है। पितृमूलक प्रथा में, पिता परिवार का मुखिया होता है और संपत्ति बेटों को मिलती है।

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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मला माफ करा, मला तुमच्‍या प्रश्‍नाची जाणीव नाही. कृपया तुमच्‍या प्रश्‍नाची पुनरावृत्‍ती करा.
उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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कुटुंब ना विकास चक्र ना मुख्य रूपथी पांच तबका छे:

  1. स्थापना: आ तबक्का मां युगल एक साथ जीवन शुरू करे छे. तेओनी प्राथमिक चिंताओ संबंध बनाववानी, घरनी स्थापना करवानी अने एक बीजा साथे जीवनशैली समायोजित करवानी छे.
  2. संतानोत्पत्ति: आ तबक्का नी शुरुआत पहला बालक ना जन्म साथे थाय छे. माता-पिता नवानुभवो अने जवाबदारीओ साथे जूझता होय छे.
  3. शालेय उमेर ना बालको: आ तबक्का मां बालको शालाए जवा लागे छे अने कुटुंब सामाजिक गतिविधियो मां वधारे सक्रिय थाय छे. माता-पिता बालकोना विकास अने शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करे छे.
  4. किशोरवय: आ तबक्का मां बालको किशोर थाय छे, तेओ स्वतंत्रता अने पहचान शोधे छे. माता-पिताए संबंधो जાળવવા अने मार्गदर्शन આપવા માટે પડકારોનો સામનો કરવો પડે છે.
  5. मुक्ति: आ तबक्का मां बालको घर छोडीने स्वतंत्र जीवन जीना शुरू करे छे. माता-पिता नवुं जीवन शुरू करे छे अने तेमनी प्राथमिकताओं बदले छे.

आ चक्र सतत चालतो रहे छे अने प्रत्येक तबक्का ना अपने लक्षણો अने પડકારો होय छे.

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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मुझे माफ़ करना, मैं आपकी बात नहीं समझ पा रहा हूँ। क्या आप कृपया इसे दोबारा लिख सकते हैं?
उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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मुख्यतः पारिवारिक विवादों को निपटाने के लिए बनाया गया यह कुटुंब न्यायालय है...
विस्तारित रूप से कहा जाये तो, विवाह और कौटुंबिक बातों से संबंधित विवादों में सुलह कराने और उनका शीघ्र निपटारा सुनिश्चित करने की दृष्टी से कुटुंब न्यायालय स्थापित करने का और उससे संबंधित विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम १९८४ में  प्रारंभ की गयी है...
उत्तर लिखा · 10/9/2018
कर्म · 68420