
कुटुंब
- एकात्मिक कुटुंब (Nuclear family): ह्या कुटुंबात आई, वडील आणि त्यांची अविवाहित मुले एकत्र राहतात.
- संयुक्त कुटुंब (Joint family): ह्या कुटुंबात दोन पेक्षा जास्त पिढ्या एकत्र राहतात, ज्यात आजी-आजोबा, आई-वडील, काका-काकू आणि त्यांची मुले यांचा समावेश असतो.
अधिक माहितीसाठी:
मातृमूलक कुटुंब प्रथा एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें परिवार की पहचान और संपत्ति माता के माध्यम से वंशानुगत होती है। इस प्रथा में, माता परिवार की मुखिया होती है और परिवार के महत्वपूर्ण निर्णय लेने में उसकी भूमिका प्रमुख होती है।
मुख्य विशेषताएं:
- वंशानुक्रम: संपत्ति और पद माता से उसकी बेटियों को मिलते हैं।
- परिवार की मुखिया: माता परिवार की मुखिया होती है और उसके निर्णय अंतिम माने जाते हैं।
- सामाजिक पहचान: परिवार की पहचान माता के नाम से होती है।
- विवाह: विवाह के बाद पुरुष पत्नी के घर में रहने आते हैं।
भारत में मातृमूलक कुटुंब प्रथा:
भारत में मातृमूलक कुटुंब प्रथा कुछ समुदायों में पाई जाती है, जैसे कि मेघालय के खासी और गारो समुदाय और केरल के नायर समुदाय।
- खासी और गारो समुदाय (मेघालय): इन समुदायों में, संपत्ति बेटियों को मिलती है और माता परिवार की मुखिया होती है। लाइव हिस्ट्री इंडिया
- नायर समुदाय (केरल): पहले, नायर समुदाय में मातृमूलक प्रथा प्रचलित थी, लेकिन अब यह कम हो गई है। द हिन्दू
मातृमूलक और पितृमूलक कुटुंब प्रथा में अंतर:
मातृमूलक कुटुंब प्रथा पितृमूलक कुटुंब प्रथा से बिलकुल अलग है। पितृमूलक प्रथा में, पिता परिवार का मुखिया होता है और संपत्ति बेटों को मिलती है।
कुटुंब ना विकास चक्र ना मुख्य रूपथी पांच तबका छे:
- स्थापना: आ तबक्का मां युगल एक साथ जीवन शुरू करे छे. तेओनी प्राथमिक चिंताओ संबंध बनाववानी, घरनी स्थापना करवानी अने एक बीजा साथे जीवनशैली समायोजित करवानी छे.
- संतानोत्पत्ति: आ तबक्का नी शुरुआत पहला बालक ना जन्म साथे थाय छे. माता-पिता नवानुभवो अने जवाबदारीओ साथे जूझता होय छे.
- शालेय उमेर ना बालको: आ तबक्का मां बालको शालाए जवा लागे छे अने कुटुंब सामाजिक गतिविधियो मां वधारे सक्रिय थाय छे. माता-पिता बालकोना विकास अने शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करे छे.
- किशोरवय: आ तबक्का मां बालको किशोर थाय छे, तेओ स्वतंत्रता अने पहचान शोधे छे. माता-पिताए संबंधो जાળવવા अने मार्गदर्शन આપવા માટે પડકારોનો સામનો કરવો પડે છે.
- मुक्ति: आ तबक्का मां बालको घर छोडीने स्वतंत्र जीवन जीना शुरू करे छे. माता-पिता नवुं जीवन शुरू करे छे अने तेमनी प्राथमिकताओं बदले छे.
आ चक्र सतत चालतो रहे छे अने प्रत्येक तबक्का ना अपने लक्षણો अने પડકારો होय छे.
विस्तारित रूप से कहा जाये तो, विवाह और कौटुंबिक बातों से संबंधित विवादों में सुलह कराने और उनका शीघ्र निपटारा सुनिश्चित करने की दृष्टी से कुटुंब न्यायालय स्थापित करने का और उससे संबंधित विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम १९८४ में प्रारंभ की गयी है...