
आधार कार्ड
हालांकि, आप UIDAI की वेबसाइट पर जाकर अपने नजदीकी आधार सेवा केंद्र का पता लगा सकते हैं और अपॉइंटमेंट बुक कर सकते हैं।
- UIDAI की वेबसाइट: https://uidai.gov.in/
- आधार सेवा केंद्र खोजने के लिए: https://appointments.uidai.gov.in/easearch.aspx
ध्यान दें कि कुछ टेलीकॉम ऑपरेटर और बैंक अपने ग्राहकों को आधार अपडेट करने की सुविधा प्रदान कर सकते हैं, लेकिन यह सुविधा सीमित हो सकती है।
- आधार नंबर: यह भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा भारत के निवासियों को जारी किया गया 12-अंकीय विशिष्ट पहचान संख्या है। यह पहचान और पते के प्रमाण के रूप में कार्य करता है। आधार नंबर पूरे भारत में मान्य है।
- ईआईडी (नामांकन आईडी): यह 28 अंकों का नामांकन नंबर है जो आधार के लिए नामांकन करने पर उत्पन्न होता है। इसमें नामांकन की तारीख और समय शामिल होता है। आधार कार्ड प्राप्त होने तक यह आधार नामांकन की स्थिति को ट्रैक करने के लिए उपयोग किया जाता है।
- एसआईडी (सीड आईडी): एसआईडी का मतलब सीड आईडी है। आधार सीडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से आधार नंबर को विभिन्न डेटाबेस जैसे बैंक खाते, राशन कार्ड आदि से जोड़ा जाता है। सीड आईडी एक विशिष्ट पहचानकर्ता हो सकता है जो इस सीडिंग प्रक्रिया के दौरान उपयोग किया जाता है।
अधिक जानकारी के लिए, आप यूआईडीएआई की आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं: https://uidai.gov.in/
1. धार्मिक और कर्मकांडी: लेखक के पिता धार्मिक स्वभाव के थे और नियमित रूप से पूजा-पाठ और कर्मकांड करते थे। वे राम नाम की माला फेरते थे और रामायण का पाठ करते थे।
2. सरल और स्नेही: वे सरल स्वभाव के थे और बच्चों से बहुत स्नेह करते थे। वे बच्चों के साथ खेलते थे, उन्हें कहानियां सुनाते थे और उनका मनोरंजन करते थे।
3. उदार और दयालु: वे उदार और दयालु थे और गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते थे। वे जानवरों के प्रति भी दयालु थे और उन्हें खाना खिलाते थे।
4. मजबूत और साहसी: वे मजबूत और साहसी थे और किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहते थे। वे सांप से भी नहीं डरते थे और उसका मुकाबला करते थे।
5. पितृवत: वे अपने बच्चों के प्रति पितृवत थे और उनकी देखभाल करते थे। वे उन्हें नहलाते थे, उन्हें खाना खिलाते थे और उन्हें सुलाते थे।
1. स्नेही और ममतापूर्ण: लेखक के पिता अपने पुत्र से बहुत स्नेह करते थे। वे उसे अपने साथ सुलाते थे, उसे नहलाते थे, और उसके साथ खेलते थे।
2. धार्मिक: लेखक के पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे नियमित रूप से पूजा-पाठ करते थे और रामायण का पाठ करते थे।
3. सरल और सहज: लेखक के पिता सरल और सहज स्वभाव के थे। वे दिखावे से दूर रहते थे और साधारण जीवन जीते थे।
4. प्रकृति प्रेमी: लेखक के पिता प्रकृति प्रेमी थे। वे सुबह-सुबह गंगा में स्नान करने जाते थे और पेड़-पौधों से लगाव रखते थे।
5. बच्चों के साथ बच्चा बनना: लेखक के पिता अपने बच्चों के साथ बच्चा बनकर खेलते थे। वे उनके साथ कुश्ती लड़ते थे, उन्हें नहलाते थे, और उनके साथ तरह-तरह के खेल खेलते थे।
लखनवी अंदाज पाठ के आधार पर यह कहना कि बिना कथ्य के कहानी लिखना संभव नहीं है, एक व्यंग्य है। इस पाठ में लेखक यशपाल ने उन लेखकों पर व्यंग्य किया है जो बिना किसी ठोस विषय-वस्तु के केवल कल्पना और शब्दों के जाल से कहानी लिखने का प्रयास करते हैं।
लखनवी अंदाज पाठ में, लेखक एक नवाब साहब की कहानी बताते हैं जो ट्रेन में खीरा खाते हैं, लेकिन केवल दिखावे के लिए। वे खीरे को काटते हैं, उस पर नमक-मिर्च लगाते हैं, और फिर उसे सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक देते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि उन्हें खीरा खाने की ज़रूरत न पड़े, लेकिन वे यह भी दिखा सकें कि वे कितने अमीर और सभ्य हैं।
लेखक इस कहानी के माध्यम से उन लेखकों पर व्यंग्य करते हैं जो बिना किसी वास्तविक अनुभव या ज्ञान के केवल कल्पना के आधार पर कहानियां लिखते हैं। वे लेखक जो केवल शब्दों के जाल से पाठकों को भ्रमित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनकी कहानियों में कोई वास्तविक अर्थ या संदेश नहीं होता है।
इसलिए, लखनवी अंदाज पाठ के आधार पर यह कहना कि बिना कथ्य के कहानी लिखना संभव नहीं है, एक व्यंग्य है। यह उन लेखकों पर एक कटाक्ष है जो केवल दिखावे के लिए लिखते हैं और उनकी कहानियों में कोई वास्तविक अर्थ नहीं होता है।
'पर्वत प्रदेश में पावस' कविता सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखी गई है। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश की प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है। पर्वत का रूप-स्वरूप इस प्रकार है:
- विशाल आकार: पर्वत बहुत विशाल और ऊंचे हैं। वे आकाश को छूते हुए प्रतीत होते हैं।
- विविधता: पर्वतों पर अनेक प्रकार के पेड़, पौधे और झरने हैं। यह विविधता पर्वतों को और भी सुंदर बनाती है।
- बादलों से घिरा: वर्षा ऋतु में पर्वत बादलों से घिरे रहते हैं। ऐसा लगता है मानो बादल पर्वतों पर उतर आए हों।
- शांत और गंभीर: पर्वत शांत और गंभीर दिखाई देते हैं। वे अपनी जगह पर स्थिर खड़े रहते हैं और प्रकृति के सौंदर्य का आनंद लेते हैं।
- परिवर्तनशील: वर्षा ऋतु में पर्वतों का रूप बदलता रहता है। कभी वे बादलों से घिरे रहते हैं, तो कभी उन पर धूप चमकती है। यह परिवर्तनशीलता पर्वतों को जीवंत बनाती है।