
कृषि
- न्यूनतम मूल्य: ₹ 1,500 प्रति क्विंटल
- अधिकतम मूल्य: ₹ 1,600 प्रति क्विंटल
- औसत मूल्य: ₹ 1,550 प्रति क्विंटल
अगर आप मिट्टी से भरे गमले में 3-4 भीगे हुए चने (बीज) मिट्टी के थोड़ा अंदर डालकर, उसे छत पर या बालकनी में रखकर प्रत्येक दिन थोड़ा-थोड़ा पानी देते हैं, तो 10 दिनों तक आप निम्नलिखित परिवर्तन देख सकते हैं:
- दिन 1-2: चने के बीज मिट्टी के अंदर नमी सोखेंगे और फूलना शुरू हो जाएंगे।
- दिन 3-4: बीज अंकुरित होना शुरू हो जाएगा, और छोटी सी जड़ मिट्टी में नीचे की ओर बढ़ने लगेगी।
- दिन 5-6: एक छोटा सा अंकुर मिट्टी की सतह से ऊपर निकल आएगा। यह अंकुर सफेद या हल्के हरे रंग का होगा।
- दिन 7-8: अंकुर बढ़ना शुरू हो जाएगा और उसमें छोटे-छोटे पत्ते निकलने लगेंगे।
- दिन 9-10: पौधा थोड़ा और बड़ा हो जाएगा, और उसमें कुछ और पत्ते निकल आएंगे। अब यह छोटा सा चने का पौधा बन जाएगा।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह अवलोकन एक सामान्य अनुमान है और वास्तविक परिवर्तन कुछ कारकों पर निर्भर कर सकते हैं, जैसे कि:
- तापमान: चने के बीज को अंकुरित होने के लिए उचित तापमान (लगभग 20-30 डिग्री सेल्सियस) की आवश्यकता होती है।
- नमी: मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए, लेकिन यह ज़्यादा गीली भी नहीं होनी चाहिए।
- प्रकाश: पौधे को बढ़ने के लिए पर्याप्त प्रकाश की आवश्यकता होती है।
यदि आपके गमले में चने के पौधे में कोई परिवर्तन नहीं होता है, तो यह हो सकता है कि बीज खराब हो गए हों, या फिर उन्हें अंकुरित होने के लिए उचित परिस्थितियाँ नहीं मिल रही हों।
हाँ, मिट्टी से भरे गमले में 3-4 भीगे हुए चने लगाए जा सकते हैं। चने लगाने की प्रक्रिया इस प्रकार है:
- चने का चुनाव: स्वस्थ और बिना टूटे हुए चने चुनें।
- भिगोना: चनों को रात भर पानी में भिगो दें। इससे अंकुरण में मदद मिलेगी।
- गमला तैयार करना: गमले में अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी भरें। मिट्टी में खाद भी मिला सकते हैं।
- बुवाई: गमले में लगभग 1-2 इंच गहरे छेद करें और प्रत्येक छेद में 3-4 भीगे हुए चने डालें।
- मिट्टी से ढकना: चनों को मिट्टी से ढक दें और धीरे से पानी डालें।
- देखभाल: मिट्टी को नम रखें, लेकिन ज्यादा पानी न डालें। कुछ दिनों में अंकुरण शुरू हो जाएगा।
ध्यान दें कि चनों को पर्याप्त धूप मिलनी चाहिए। यदि आप गमले को घर के अंदर रख रहे हैं, तो उसे ऐसी जगह पर रखें जहाँ अच्छी धूप आती हो।
अधिक जानकारी के लिए आप निम्न लिंक देख सकते हैं:
- खेत: बीज मिट्टी के अंदर डाले जाते हैं। मिट्टी सूखी दिखती है।
- गमला: बीज मिट्टी के अंदर डाले जाते हैं। मिट्टी नम दिखती है क्योंकि पानी दिया गया है।
- खेत: कोई बदलाव नहीं दिखता है।
- गमला: मिट्टी नम दिखती है।
- खेत: कोई बदलाव नहीं दिखता है।
- गमला: छोटे अंकुर मिट्टी से बाहर निकलने लगते हैं।
- खेत: कोई बदलाव नहीं दिखता है।
- गमला: अंकुर थोड़े बड़े हो जाते हैं और उनमें छोटी पत्तियां निकलने लगती हैं।
- खेत: कुछ अंकुर मिट्टी से बाहर निकलने लगते हैं।
- गमला: पौधे थोड़े और बड़े हो जाते हैं और उनमें और पत्तियां निकलने लगती हैं।
- खेत: अंकुर थोड़े बड़े हो जाते हैं।
- गमला: पौधे और बड़े हो जाते हैं और उनमें और पत्तियां निकलने लगती हैं।
- खेत: पौधे थोड़े और बड़े हो जाते हैं और उनमें छोटी पत्तियां निकलने लगती हैं।
- गमला: पौधे और बड़े हो जाते हैं और घने हो जाते हैं।
- खेत: पौधे थोड़े और बड़े हो जाते हैं और उनमें और पत्तियां निकलने लगती हैं।
- गमला: पौधे और बड़े हो जाते हैं और उनमें फूल निकलने लगते हैं।
- खेत: पौधे और बड़े हो जाते हैं और घने हो जाते हैं।
- गमला: पौधों में और फूल आते हैं।
- खेत: पौधे और बड़े हो जाते हैं और उनमें फूल निकलने लगते हैं।
- गमला: कुछ फूलों में फल लगने लगते हैं।
- रासायनिक उर्वरक: ये उर्वरक रासायनिक रूप से निर्मित होते हैं और इनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम (NPK) जैसे आवश्यक पोषक तत्व होते हैं। भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ सामान्य रासायनिक उर्वरक हैं यूरिया, डीएपी (डायमोनियम फॉस्फेट) और एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश)।
- जैविक खाद: ये खाद प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं, जैसे कि गोबर की खाद, खाद, और वर्मीकम्पोस्ट। जैविक खाद मिट्टी की उर्वरता में सुधार करने और पौधों को पोषक तत्व प्रदान करने में मदद करते हैं।
- कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार: https://agricoop.nic.in/
- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI): https://www.iari.res.in/
तेल बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली कुछ मुख्य चीज़ें:
- सरसों: सरसों के बीज से सरसों का तेल निकाला जाता है। यह तेल भारत में खाना बनाने में खूब इस्तेमाल होता है।
- मूंगफली: मूंगफली के दानों से मूंगफली का तेल बनता है। यह भी खाना बनाने और मालिश के लिए इस्तेमाल होता है।
- सोयाबीन: सोयाबीन से सोयाबीन का तेल निकाला जाता है, जो कि दुनिया में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाले तेलों में से एक है।
- सूरजमुखी: सूरजमुखी के बीज से सूरजमुखी का तेल बनता है। यह तेल हल्का होता है और स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है।
- नारियल: नारियल से नारियल का तेल बनता है। यह तेल दक्षिण भारत में खाना बनाने और बालों में लगाने के लिए इस्तेमाल होता है।
- जैतून: जैतून के फल से जैतून का तेल बनता है। यह तेल स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है और सलाद और खाना बनाने में इस्तेमाल होता है।
- अलसी: अलसी के बीज से अलसी का तेल बनता है। यह तेल ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर होता है और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है।
- कपास: कपास के बीज से कपास का तेल बनता है।
- मक्का: मक्के से मक्के का तेल भी बनाया जाता है।
तेल बनाने की प्रक्रिया:
तेल बनाने की प्रक्रिया में आम तौर पर निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
- बीज/फल की तैयारी: सबसे पहले, जिस चीज़ से तेल निकालना है, उसे साफ किया जाता है और तैयार किया जाता है। जैसे कि बीजों को धोना और सुखाना।
- पेराई: फिर बीजों या फलों को पेरा जाता है। पेराई के लिए कोल्हू या आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है।
- तेल निकालना: पेराई के बाद तेल निकाला जाता है। यह प्रक्रिया दो तरह से हो सकती है:
- कोल्ड प्रेसिंग: इसमें कम तापमान पर तेल निकाला जाता है, जिससे तेल के पोषक तत्व बने रहते हैं।
- हॉट प्रेसिंग: इसमें ज़्यादा तापमान पर तेल निकाला जाता है, जिससे ज़्यादा तेल निकलता है, लेकिन कुछ पोषक तत्व नष्ट हो सकते हैं।
- तेल का शुद्धिकरण: निकाले गए तेल को शुद्ध किया जाता है ताकि उसमें मौजूद अशुद्धियाँ निकल जाएँ।
- पैकेजिंग: अंत में, शुद्ध किए गए तेल को बोतलों या डिब्बों में पैक किया जाता है।
चूँकि मैं एक AI हूँ, इसलिए मेरे लिए तेल की दुकान पर जाना संभव नहीं है। लेकिन ऊपर दी गई जानकारी आपको तेल और उसे बनाने की प्रक्रिया के बारे में समझने में मदद करेगी।
अधिक जानकारी के लिए आप निम्न लिंक पर जा सकते हैं:
- इमिडाक्लोप्रिड (Imidacloprid): यह एक सिस्टमिक कीटनाशक है, जो माहू जैसे चूसने वाले कीटों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है। यह बाजार में confidor नाम से भी उपलब्ध है।
- पाइमेट्रोज़ीन (Pymetrozine): यह भी माहू के नियंत्रण के लिए एक अच्छी दवा है।
- डायनेटोफ्यूरन (Dinotefuran): यह एक शक्तिशाली कीटनाशक है जो माहू, जैसिड्स, थ्रिप्स और व्हाइटफ्लाइज जैसे कीटों को मारने में सहायक है।
- एसीटामिप्रिड (Acetamiprid) यह कपास और सब्जियों में लगने वाले माहू जैसे चूसने वाले कीटों को नियंत्रित करता है।
- बीपीएमस (BPMC): धान की बालियां निकलने के बाद माहू का अटैक होने पर इस दवाई का प्रयोग करना अच्छा होता है।
- दवाई का छिड़काव शाम के समय करें, क्योंकि माहू रात में अधिक सक्रिय होते हैं।
- छिड़काव करते समय, खेत के चारों तरफ एक स्प्रेयर से दवाई का छिड़काव करें ताकि कीट भाग न सकें।
- हमेशा कृषि अधिकारी की सलाह से दवाई का चयन करें। किसान कॉल सेंटर का नंबर 1800 180 1551 है।