
कविता
'आज युद्ध जर्जर जगजीवन का भावार्थ पवित्र करने का' पंक्ति का अर्थ है कि आज युद्ध से तबाह हुए संसार में जीवन के अर्थ को शुद्ध और पवित्र करने का समय है। इसका तात्पर्य है कि हमें युद्ध और हिंसा से दूर रहकर, प्रेम, शांति और सद्भाव के मूल्यों को अपनाकर जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।
यह पंक्ति हमें यह भी याद दिलाती है कि युद्ध केवल विनाश और पीड़ा लाता है। इससे न केवल भौतिक नुकसान होता है, बल्कि मानवीय मूल्यों का भी ह्रास होता है। इसलिए, हमें युद्ध को रोकने और शांति स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।
यह पंक्ति हमें व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती है। व्यक्तिगत स्तर पर, हमें अपने विचारों और कार्यों में प्रेम, करुणा और क्षमा को शामिल करना चाहिए। सामाजिक स्तर पर, हमें अन्याय, असमानता और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
कुल मिलाकर, यह पंक्ति हमें युद्ध से तबाह हुए संसार में जीवन के अर्थ को फिर से खोजने और उसे पवित्र बनाने का आह्वान करती है।
पुष्प की अभिलाषा कविता में पुष्प निम्नलिखित अभिलाषाएँ व्यक्त करता है:
- माली द्वारा तोड़े जाने पर वह किसी प्रेमी की माला में नहीं गुँथना चाहता।
- वह किसी सुंदरी के बालों में नहीं सजता चाहता।
- वह देशभक्तों के पथ पर बिछाया जाना चाहता है, ताकि वह देश के लिए बलिदान होने वाले वीरों के चरणों को स्पर्श कर सके।
पुष्प का उद्देश्य त्याग और बलिदान की भावना को दर्शाता है। वह अपने व्यक्तिगत सुखों की बजाय देश के लिए समर्पित होना चाहता है।
अधिक जानकारी के लिए, आप इस कविता को यहाँ पढ़ सकते हैं: पुष्प की अभिलाषा
- कबीरदास:
कबीरदास 15वीं सदी के एक महान कवि और संत थे। उनकी रचनाएँ मुख्य रूप से दोहों और पदों के रूप में हैं, जिनमें उन्होंने सामाजिक बुराइयों पर प्रहार किया और भक्ति, प्रेम और ज्ञान का मार्ग दिखाया।
प्रमुख रचनाएँ:
- बीजक (उनके सभी रचनाओं का संग्रह)
- साखी
- सबद
- रमैनी
- सूरदास:
सूरदास भक्ति काल के प्रमुख कवियों में से एक थे, जो कृष्ण भक्ति के लिए जाने जाते हैं। वे अंधे थे, लेकिन उनकी रचनाओं में कृष्ण के बाल रूप और लीलाओं का सुंदर वर्णन मिलता है।
प्रमुख रचनाएँ:
- सूरसागर
- सूरसारावली
- साहित्य लहरी
- तुलसीदास:
तुलसीदास 16वीं सदी के एक महान कवि थे, जिन्होंने राम भक्ति को जन-जन तक पहुंचाया। वे अपनी रचना रामचरितमानस के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं।
प्रमुख रचनाएँ:
- रामचरितमानस
- विनय पत्रिका
- दोहावली
- कवितावली
- हनुमान चालीसा
- भारतेन्दु हरिश्चंद्र:
भारतेन्दु हरिश्चंद्र आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक माने जाते हैं। उन्होंने नाटक, कविता, और निबंध के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रमुख रचनाएँ:
- भारत दुर्दशा
- अंधेर नगरी
- प्रेम माधुरी
- प्रेम तरंग
- मैथिलीशरण गुप्त:
मैथिलीशरण गुप्त 20वीं सदी के एक प्रमुख कवि थे, जिन्होंने राष्ट्रीय चेतना और भारतीय संस्कृति को अपनी रचनाओं में दर्शाया।
प्रमुख रचनाएँ:
- साकेत
- भारत-भारती
- यशोधरा
- पंचवटी
यह सूची उत्तर प्रदेश के कुछ प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं की एक झलक है। इन कवियों ने हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
छायावादी युग हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग है। इसका समय 1918 से 1936 तक माना जाता है।
इस युग के दो प्रमुख कवि निम्नलिखित हैं:
- जयशंकर प्रसाद: कामायनी उनकी प्रसिद्ध रचना है।
- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला': राम की शक्ति पूजा उनकी महत्वपूर्ण रचना है।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की कविता 'वह तोड़ती पत्थर' एक श्रमशील महिला के जीवन के संघर्ष का मार्मिक चित्रण है। कविता में, एक महिला को इलाहाबाद के मार्ग पर पत्थर तोड़ते हुए दिखाया गया है।
संघर्ष का चित्रण:
- कठिन परिश्रम: महिला भीषण गर्मी में पत्थर तोड़ रही है, जो उसकी शारीरिक कठिनाई को दर्शाता है।
- शारीरिक शोषण: वह बार-बार हथौड़ा चलाती है, जिससे उसके शरीर पर थकान और दर्द होता है। यह शारीरिक शोषण को उजागर करता है।
- आर्थिक तंगी: महिला गरीब है और उसे जीवन यापन के लिए यह कठिन काम करना पड़ रहा है।
- सामाजिक उपेक्षा: समाज उसकी मेहनत को अनदेखा करता है और उसे सहानुभूति की दृष्टि से नहीं देखता। लोग उसे केवल एक पत्थर तोड़ने वाली के रूप में देखते हैं, न कि एक इंसान के रूप में।
- निराशा और उम्मीद: महिला के चेहरे पर निराशा है, लेकिन फिर भी वह काम करती रहती है। यह उसकी उम्मीद और जीवित रहने की इच्छा को दर्शाता है।
कविता में, निराला जी ने महिला के संघर्ष को एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया है। यह कविता समाज में व्याप्त शोषण और अन्याय के खिलाफ एक आवाज है। यह हमें याद दिलाता है कि हमें उन लोगों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए जो कठिन परिश्रम करते हैं और अपने जीवन के लिए संघर्ष करते हैं।
अधिक जानकारी के लिए, आप निम्न लिंक देख सकते हैं:
महादेवी वर्मा की कविता "मैं नीर भरी दुख की बदली" में कवयित्री स्वयं को नीर (पानी) से भरी हुई दुख की बदली बताती हैं। वह अपने जीवन के दुखों को बादलों में भरे पानी की तरह मानती हैं। जिस प्रकार बादल आकाश में छा जाते हैं और उनमें जल भरा होता है, उसी प्रकार कवयित्री के हृदय में भी दुख भरे हुए हैं।
कविता में, वह अपने परिचय को इस प्रकार व्यक्त करती हैं:
- नीर भरी दुख की बदली: वह अपने आप को दुख से भरी हुई बदली कहती हैं, जो आकाश में घुमड़ रही है।
- स्पंदन में चिर निस्पंद बसा: उनके हृदय में हमेशा एक कंपन (spandan) रहता है, लेकिन उसमें एक चिरस्थायी शांति (nispand) भी बसी हुई है।
- आँखों में आलोक उतरता: उनकी आँखों में एक विशेष प्रकार की चमक है, जो उनके आंतरिक प्रकाश को दर्शाती है।
- रोने में राग अमर: उनके रोने में भी एक शाश्वत संगीत (raag) है, जो उनके दुखों को सुंदरता में बदल देता है।
इस प्रकार, कवयित्री इस कविता में अपने आप को दुख और वेदना से भरी हुई, लेकिन साथ ही आशा और सौंदर्य से परिपूर्ण बताती हैं।
अधिक जानकारी के लिए, आप निम्न लिंक देख सकते हैं:
पद्माकर रीतिकाल के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे और उन्होंने अपनी रचनाओं में वसंत ऋतु का बहुत ही सुंदर और मनोहारी वर्णन किया है। उनकी कविताओं में वसंत ऋतु का चित्रण प्रकृति के सौंदर्य, प्रेम और उल्लास के प्रतीक के रूप में किया गया है।
पद्माकर के वसंत वर्णन की कुछ मुख्य बातें:
- प्रकृति का सौंदर्य: पद्माकर ने वसंत ऋतु में प्रकृति के सौंदर्य का बहुत ही सूक्ष्म और आकर्षक वर्णन किया है। उन्होंने फूलों के खिलने, पेड़ों पर नए पत्ते आने, पक्षियों के चहचहाने और भौंरों के गुंजारने जैसे दृश्यों को अपनी कविताओं में जीवंत कर दिया है।
- प्रेम और उल्लास का प्रतीक: वसंत ऋतु को प्रेम और उल्लास का प्रतीक माना जाता है, और पद्माकर ने अपनी कविताओं में इस भावना को बखूबी व्यक्त किया है। उन्होंने वसंत ऋतु को नायक-नायिका के मिलन और प्रेम के इजहार के अवसर के रूप में चित्रित किया है।
- रंगों का प्रयोग: पद्माकर ने अपनी कविताओं में रंगों का बहुत ही सुंदर और प्रभावी प्रयोग किया है। उन्होंने फूलों के विभिन्न रंगों, जैसे लाल, पीला, नीला और हरा, का वर्णन करके वसंत ऋतु के सौंदर्य को और भी बढ़ा दिया है।
-
उदाहरण: पद्माकर की एक कविता में वसंत ऋतु का वर्णन इस प्रकार है:
"देखो तो कैसी छाई है बहार,
फूलों से लदी है डाल डाल।
भौंरों का गुंजन है कान में,
कोयल की कूक से मन है बेहाल।"
पद्माकर की कविताओं में वसंत ऋतु का वर्णन बहुत ही सजीव और आकर्षक है, जो पाठकों को प्रकृति के सौंदर्य और प्रेम के आनंद में डुबो देता है।