Topic icon

भक्ति

0

"मोहन मधु हो जाए भक्ति" एक भक्तिमय अभिव्यक्ति है जो भगवान कृष्ण (मोहन) के प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाती है। इसका अर्थ कई स्तरों पर समझा जा सकता है:

  • मोहन: यहां, मोहन भगवान कृष्ण को संदर्भित करता है, जो अपनी सुंदरता, आकर्षण और दिव्य गुणों के लिए जाने जाते हैं।
  • मधु: मधु का अर्थ है शहद, जो मिठास और आनंद का प्रतीक है।
  • हो जाए भक्ति: इसका अर्थ है भक्ति में डूब जाना या भक्ति का मधुमय हो जाना।

अर्थ:

इस पूरी अभिव्यक्ति का अर्थ है कि भक्त भगवान कृष्ण के प्रेम में इतना डूब जाता है कि उसकी भक्ति शहद की तरह मीठी और आनंदमय हो जाती है। यह भक्ति एक ऐसी अवस्था है जहां भक्त को भगवान के साथ एक गहरा और मधुर संबंध महसूस होता है। यह प्रेम और समर्पण इतना तीव्र होता है कि भक्त को हर चीज में भगवान की उपस्थिति का अनुभव होता है।

दूसरे शब्दों में, "मोहन मधु हो जाए भक्ति" का अर्थ है भगवान कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम से उत्पन्न होने वाली आनंदमय भक्ति की अवस्था।

यह अभिव्यक्ति अक्सर भक्ति संगीत, भजनों और कविताओं में पाई जाती है, जो भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति की गहराई को व्यक्त करती है।

उत्तर लिखा · 20/4/2025
कर्म · 320
9
रैदास की भक्ति दास्य भाव की है...

दास्य भक्ति के अंतर्गत भक्त स्वयं को दास कहता है...
तथा प्रभु को दिन दयालु, भक्त वत्सल्य कहता है...
वे स्वयं पानी और प्रभु को चन्दन मानते है...
वे प्रभु को गरीब निवाजु अर्थात दयालु कहते है...

और यह सब प्रतीत करता है की यह दास्य भक्ति के भाव है...

धन्यवाद...!
उत्तर लिखा · 16/7/2018
कर्म · 68420
0
ज़रूर, मैं इस पंक्ति की सप्रसंग व्याख्या प्रस्तुत करता हूँ:

संदर्भ: यह पंक्ति रामकृष्ण परमहंस के विचारों से प्रेरित है, जो भक्ति और प्रेम की शक्ति पर जोर देते हैं।

प्रसंग: यह पंक्ति उस संदर्भ में कही गई है जब बुद्धि और तर्क की सीमाओं और प्रेम और भक्ति की शक्ति की बात हो रही है।

व्याख्या:

  • "बुद्धि और विचार शक्ति हम लोगों की थोड़ी सहायता कर सकते हैं, वह हमको थोड़ी दूर अग्रसर कर देती है और वहीँ थक जाती है।" इसका अर्थ है कि हमारी बुद्धि और तर्क हमें एक सीमा तक ही मदद कर सकते हैं। वे हमें कुछ हद तक आगे बढ़ा सकते हैं, लेकिन अंततः उनकी सीमाएं होती हैं।

  • "किंतु हृदय के द्वारा ही माँ शक्ति की प्रेरणा होती है, प्रेम असंभव को संभव कर देता है।" इसका अर्थ है कि प्रेम और भक्ति में असीम शक्ति होती है। हृदय, जो प्रेम और करुणा का केंद्र है, हमें माँ शक्ति (दिव्य शक्ति) से जोड़ता है। प्रेम असंभव को भी संभव कर सकता है।

तात्पर्य: यह पंक्ति बुद्धि और तर्क की सीमाओं को स्वीकार करते हुए प्रेम और भक्ति की शक्ति पर जोर देती है। यह हमें अपने हृदय को खोलने और प्रेम के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है, क्योंकि प्रेम में वह शक्ति है जो असंभव को भी संभव कर सकती है।

यह व्याख्या रामकृष्ण परमहंस के शिक्षाओं पर आधारित है, जिन्हें आप विभिन्न स्रोतों में पा सकते हैं, जैसे कि रामकृष्ण मठ और मिशन की वेबसाइट: https://www.ramakrishna.org/

उत्तर लिखा · 12/3/2025
कर्म · 320