
जैन धर्म
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महावीर स्वामी, जिन्हें वर्धमान महावीर के नाम से भी जाना जाता है, जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनका जीवन त्याग, तपस्या और अहिंसा के आदर्शों का प्रतीक है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
- महावीर स्वामी का जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व (विवादित) में बिहार के कुंडलपुर नामक स्थान पर हुआ था।
- उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था, जो लिच्छवी वंश की राजकुमारी थीं।
- बचपन में उनका नाम वर्धमान था, जिसका अर्थ है "बढ़ने वाला"।
त्याग और तपस्या:
- 30 वर्ष की आयु में, महावीर ने सांसारिक जीवन त्याग दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े।
- उन्होंने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की, जिसके दौरान उन्होंने अत्यधिक कष्ट सहे और अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की।
ज्ञान प्राप्ति और उपदेश:
- 42 वर्ष की आयु में, महावीर को जृम्भिकाग्राम के पास एक साल वृक्ष के नीचे कैवल्य ज्ञान (सर्वोच्च ज्ञान) प्राप्त हुआ।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद, वे 'महावीर' कहलाए, जिसका अर्थ है 'महान वीर'।
- उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया, जिसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयम) और अपरिग्रह (गैर-आसक्ति) शामिल हैं।
निर्वाण:
- 72 वर्ष की आयु में, महावीर स्वामी ने बिहार के पावापुरी नामक स्थान पर निर्वाण प्राप्त किया।
महावीर स्वामी के उपदेशों का महत्व:
- महावीर स्वामी के उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और लोगों को शांति, अहिंसा और सद्भाव का मार्ग दिखाते हैं।
- जैन धर्म भारत की समृद्ध आध्यात्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
अधिक जानकारी के लिए, आप इन वेबसाइटों पर जा सकते हैं:
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सोनीजी की नसिया का उपनाम अजमेर जैन मंदिर (Ajmer Jain Temple) है। यह प्रसिद्ध दिगंबर जैन मंदिर राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित है।
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जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'।
जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है।
जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है।