धर्म जैन धर्म

जैन धर्म के बारे में जानकारी मिलेगी क्या?

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जैन धर्म के बारे में जानकारी मिलेगी क्या?

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जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'।
जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है।
उत्तर लिखा · 11/6/2018
कर्म · 7230
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ज़रूर, जैन धर्म के बारे में जानकारी इस प्रकार है:

परिचय:

जैन धर्म भारत का एक प्राचीन धर्म है। यह धर्म अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (इंद्रियों पर नियंत्रण), और अपरिग्रह (गैर-आसक्ति) के सिद्धांतों पर आधारित है। जैन धर्म का मानना है कि प्रत्येक जीव में एक आत्मा होती है, और सभी आत्माएं समान हैं। जैन धर्म का लक्ष्य जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना है, जिसे मोक्ष कहा जाता है। ब्रिटानिका - जैन धर्म

जैन धर्म के सिद्धांत:
  • अहिंसा: जैन धर्म में अहिंसा का बहुत महत्व है। जैन धर्म का मानना है कि किसी भी जीव को कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए, चाहे वह मनुष्य हो, जानवर हो, या पौधा हो।
  • सत्य: जैन धर्म में सत्य का भी बहुत महत्व है। जैन धर्म का मानना है कि हमेशा सच बोलना चाहिए, और कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
  • अस्तेय: जैन धर्म में अस्तेय का अर्थ है चोरी न करना। जैन धर्म का मानना है कि किसी भी वस्तु को बिना अनुमति के नहीं लेना चाहिए।
  • ब्रह्मचर्य: जैन धर्म में ब्रह्मचर्य का अर्थ है इंद्रियों पर नियंत्रण। जैन धर्म का मानना है कि इंद्रियों को वश में रखना चाहिए, और वासनाओं से दूर रहना चाहिए।
  • अपरिग्रह: जैन धर्म में अपरिग्रह का अर्थ है गैर-आसक्ति। जैन धर्म का मानना है कि किसी भी वस्तु से आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।
पीबीएस - जैन धर्म
जैन धर्म के तीर्थंकर:

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थंकर वे व्यक्ति होते हैं जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है, और जो दूसरों को मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ थे, और अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी थे। लर्न रिलिजंस - जैन धर्म के तीर्थंकर

जैन धर्म के ग्रंथ:

जैन धर्म के ग्रंथों को आगम कहा जाता है। आगम में जैन धर्म के सिद्धांत, नियम, और प्रथाएं शामिल हैं। आगम को दो भागों में विभाजित किया गया है: श्वेतांबर आगम और दिगंबर आगम। ऑक्सफोर्ड बिब्लियोग्राफीज़ - जैन साहित्य

जैन धर्म के संप्रदाय:

जैन धर्म दो मुख्य संप्रदायों में विभाजित है: श्वेतांबर और दिगंबर। श्वेतांबर संप्रदाय के लोग सफेद कपड़े पहनते हैं, जबकि दिगंबर संप्रदाय के लोग कपड़े नहीं पहनते हैं।

उत्तर लिखा · 12/3/2025
कर्म · 320

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