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श्रम कानून

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डेमिसाइल एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल किसी व्यक्ति के स्थायी निवास स्थान या घर को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह उस देश, राज्य या क्षेत्र को संदर्भित करता है जिसे कोई व्यक्ति अपना स्थायी घर मानता है और जहाँ वह वापस लौटने का इरादा रखता है, भले ही वह वर्तमान में कहीं और रह रहा हो। डेमिसाइल कानूनी और कर उद्देश्यों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह किसी व्यक्ति के कर दायित्वों, मतदान के अधिकार और अन्य कानूनी मामलों को निर्धारित कर सकता है।

डेमिसाइल स्थापित करने के लिए, किसी व्यक्ति को यह प्रदर्शित करने में सक्षम होना चाहिए कि उसका उस स्थान पर रहने का इरादा है जिसे वह अपना डेमिसाइल मानता है। इसमें उस स्थान पर संपत्ति खरीदना, वहां वोट करने के लिए पंजीकरण करना, या अन्य गतिविधियां शामिल हो सकती हैं जो उस स्थान के साथ संबंध दर्शाती हैं।

डेमिसाइल के बारे में कुछ अतिरिक्त जानकारी:

  • एक व्यक्ति का केवल एक समय में एक ही डेमिसाइल हो सकता है।
  • एक नाबालिग (18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति) का डेमिसाइल आमतौर पर उसके माता-पिता या अभिभावक के समान होता है।
  • एक महिला का डेमिसाइल शादी करने पर अपने पति के डेमिसाइल में नहीं बदलता है।
  • डेमिसाइल को बदलना संभव है, लेकिन इसके लिए यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता होती है कि किसी व्यक्ति का नए स्थान पर रहने का इरादा है।

डेमिसाइल एक जटिल कानूनी अवधारणा हो सकती है, इसलिए यदि आपको अपनी डेमिसाइल स्थिति के बारे में अनिश्चित हैं, तो कानूनी सलाह लेना सबसे अच्छा है।

अधिक जानकारी के लिए आप निम्न वेबसाइट देख सकते हैं:

उत्तर लिखा · 5/8/2025
कर्म · 680
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श्रम सन्नियमन या श्रम कानून (Labour law या employment law) किसी राज्य द्वारा निर्मित उन कानूनों को कहते हैं जो श्रमिक (कार्मिकों), रोजगारप्रदाताओं, ट्रेड यूनियनों तथा सरकार के बीच सम्बन्धों को पारिभाषित करतीं हैं।

औद्योगिक सन्नियम का आशय उस विधान से है जो औद्योगिक संस्थानों, उनमें कार्यरत श्रमिकों एवं उद्योगपतियों पर लागू होता है। इसे हम दो भागों में बांट सकते हैंः-

उद्योग एवं श्रम सम्बन्धी विधान (Legislation pertaining to Factory and Labour), तथासामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधान (Legislation pertaining to Social Security)

उद्योग तथा श्रम सम्बन्धी विधान में से वे सब अधिनियम आते हैं जो कारखाने तथा श्रमिकों के काम की दशाओं का नियमन (रेगुलेशन) करते हैं तथा कारखानों के मालिकों और श्रमिकों के दायित्व का उल्लेख करते हैं। कारखाना अधिनियम, 1948, औद्योगिक संघर्ष अधिनियम, 1947, भारतीय श्रम संघ अधिनियम, 1926, भृति-भुगतान अधिनियम, 1936, श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923इत्यादि उद्योग तथा श्रम सम्बन्धी विधान की श्रेणी में आते हैं।

सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधान के अन्तर्गत वे समस्त अधिनियम आते हैं जो श्रमिकों के लिए विभिन्न सामाजिक लाभों- बीमारी, प्रसूति, रोजगार सम्बन्धी आघात, प्रॉविडेण्ट फण्ड, न्यूनतम मजदूरी इत्यादि-की व्यवस्था करते हैं। इस श्रेणी में कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948, कर्मचारी प्रॉविडेण्ट फण्ड अधिनियम, 1952, न्यूनतम भृत्ति अधिनियम, 1948, कोयला, खान श्रमिक कल्याण कोष अधिनियम, 1947, भारतीय गोदी श्रमिक अधिनियम, 1934, खदान अधिनियम, 1952 तथा मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 इत्यादि प्रमुख हैं। भारत में वर्तमान में 128 श्रम तथा औद्योगिक विधान लागू हैं।

वास्तव में श्रम विधान सामाजिक विधान का ही एक अंग है। श्रमिक समाज के विशिष्ट समूह होते हैं। इस कारण श्रमिकों के लिये बनाये गये विधान, सामाजिक विधान की एक अलग श्रेणी में आते हैं। औद्योगगीकरण के प्रसार, मजदूरी अर्जकों के स्थायी वर्ग में वृद्धि, विभिन्न देशों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में श्रमिकों के बढ़ते हुये महत्व तथा उनकी प्रस्थिति में सुधार, श्रम संघों के विकास, श्रमिकों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता, संघों श्रमिकों के बीच शिक्षा के प्रसार, प्रबन्धकों और नियोजकों के परमाधिकारों में ह्रास तथा कई अन्य कारणों से श्रम विधान की व्यापकता बढ़ती गई है। श्रम विधानों की व्यापकता और उनके बढ़ते हुये महत्व को ध्यान में रखते हुये उन्हें एक अलग श्रेणी में रखना उपयुक्त समझा जाता है।

सिद्धान्तः श्रम विधान में व्यक्तियों या उनके समूहों को श्रमिक या उनके समूह के रूप में देखा जाता है।आधुनिक श्रम विधान के कुछ महत्वपूर्ण विषय है - मजदूरी की मात्रा, मजदूरी का भुगतान, मजदूरी से कटौतियां, कार्य के घंटे, विश्राम अंतराल, साप्ताहिक अवकाश, सवेतन छुट्टी, कार्य की भौतिक दशायें, श्रम संघ, सामूहिक सौदेबाजी, हड़ताल, स्थायी आदेश, नियोजन की शर्ते, बोनस, कर्मकार क्षतिपूर्ति, प्रसूति हितलाभ एवं कल्याण निधि आदि है।
उत्तर लिखा · 17/7/2018
कर्म · 1750
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*_जॉब करने वाले जरूर पढ़ें ये खबर_*

*_Labour day Special_*

कानून के मुताबिक एक तय टाइम लिमिट में सैलरी से लेकर पीएफ देना तक जरूरी है. ऐसा नहीं होने पर आप संबंधित कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं.

 *_सैलरी न मिले तो क्या करें_*

> सबसे पहले ऐसे लॉयर जो इस तरह के मामले देखता हो, उनके जरिए इम्प्लॉयर को लीगल नोटिस भेज सकते हैं.

> फिर भी कंपनी सैलरी नहीं दे रही तो पुलिस में इसकी शिकायत कर सकते हैं.

> ऐसा होन पर आप लेबर कमिशनर को इसकी शिकायत कर सकते हैं.

> यदि कमिशनर ऑफिस से भी आपकी समस्या का समाधान नहीं होता तो आप कोर्ट जा सकते हैं. कोर्ट में आप इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट, 1947 के सेक्शन 33 (C) के तहत केस कर सकते हैं.

🏛 *_कैसे क्लेम कर सकते हैं_*

> यदि इम्प्लॉयर की तरफ से सैलरी रोकी गई है तो इम्प्लॉई खुद या अथॉराइज्ड पर्सन के जरिए मनी के लिए क्लेम कर सकता है.

> यदि इम्प्लॉई की डेथ हो जाती है तो उसके लीगल वारिस लेबर कोर्ट में जा सकते हैं.

> यदि कोर्ट संतुष्ट होता है तो कंपनी को तय अमाउंट देने के लिए निर्देशित कर सकता है.

⚖ *_इम्प्लॉई कम्पनसेशन एक्ट होता है लागू_*

> इम्प्लॉई कम्पनसेशन एक्ट के तहत अब मजदूर से लेकर क्लर्क तक आते हैं. यदि कंपनी बिना किसी कारण से छंटनी करती है तो इम्प्लॉई लेबर कोर्ट में शिकायत कर सकते हैं.

> ग्रेजुएटी नहीं मिल रही तो एडिशनल लेबर कमिशनर के ऑफिस में इसकी शिकायत कर सकते हैं. वहीं अगर दिया पीएफ रोका जा रहा है तो पीएफ कमिशनर को इसकी शिकायत करनी होगी.

> यदि किसी इम्प्लॉई का पद क्लर्क से ज्यादा लेवल का है तो वो सिविल कोर्ट और हाईकोर्ट में केस कर सकता है.

उत्तर लिखा · 27/6/2018
कर्म · 42125