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Veer rush ki parobasha?
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वीर रस, भारतीय साहित्य में नौ रसों में से एक है। यह उत्साह और वीरता की भावना को दर्शाता है। इस रस का स्थायी भाव 'उत्साह' है। जब उत्साह नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के साथ मिल जाता है, तब वीर रस की उत्पत्ति होती है।
वीर रस के अवयव:
- स्थायी भाव: उत्साह
- विभाव:
- आलंबन विभाव: शत्रु, विरोधी
- उद्दीपन विभाव: शत्रु की ललकार, युद्ध के नगाड़े
- अनुभाव: रोमांच, गर्वोक्ति, अस्त्र-शस्त्र चलाना
- संचारी भाव: हर्ष, आवेग, स्मृति, उत्सुकता
उदाहरण:
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
इस कविता में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का वर्णन है, जो वीर रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।