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मेवाड़ चित्र शैली किसे कहते हैं?
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मेवाड़ चित्र शैली, जिसे उदयपुर चित्र शैली के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान की सबसे महत्वपूर्ण चित्र शैलियों में से एक है। यह शैली 17वीं और 18वीं शताब्दी में विकसित हुई और इसका मुख्य केंद्र मेवाड़ क्षेत्र था, जिसमें उदयपुर, नाथद्वारा और देवगढ़ जैसे स्थान शामिल थे।
मेवाड़ चित्र शैली की मुख्य विशेषताएं:
- विषय-वस्तु: इस शैली में धार्मिक ग्रंथ, रामायण, महाभारत, भागवत पुराण, और कृष्ण लीला जैसे विषयों को चित्रित किया गया है। इसके अलावा, रागमाला श्रृंखला, दरबारी दृश्य, शिकार के दृश्य और सामाजिक जीवन के चित्र भी बनाए गए हैं।
- रंग: मेवाड़ शैली में चमकीले और जीवंत रंगों का उपयोग किया गया है, जिनमें लाल, पीले, नीले और हरे रंग प्रमुख हैं।
- आकृति: मानव आकृतियों को कुछ हद तक कठोर और आलंकारिक रूप में दर्शाया गया है, और चेहरे के भावों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- प्रकृति: चित्रों में प्रकृति को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, जिसमें पेड़, पौधे, फूल, और जानवरों को दर्शाया गया है।
- उदाहरण: 'श्रीमद् भागवत', 'गीत गोविंद', और 'रामायण' पर आधारित चित्र इस शैली के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
मेवाड़ चित्र शैली का विकास कई चरणों में हुआ, और इसमें स्थानीय और बाहरी प्रभावों का मिश्रण देखने को मिलता है। यह शैली राजस्थानी चित्रकला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।