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स्कुल

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बालकों को स्कूल के शिक्षा के साथ साथ धर्म शिक्षा भी देना चाहिए, अर्थात बचपन से ही बच्चों को रामायण, महाभारत, पुराणों के कहानी सुनानी चाहिए और भारत के संस्कारों के भण्डार सभी भाषाओं के जननी संस्कृत भाषा भी बच्चों को सिखानी चाहिए। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी, मातृवत परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत् ऐसे जो अमूल्य संस्कृत श्लोक है वह बच्चों को सिखानी चाहिए और साधु सन्तों के कहानी सुनानी चाहिए। ऐसे करने से बालकें तथा बच्चे सुसंस्कृत होगा।
उत्तर लिखा · 27/10/2020
कर्म · 250
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बोर्डिंग स्कुल में जाने से सब बच्चे इसीलिए डरते है की उन्हें अपने माता-पिता से दूर रहना पडता है...
और वहा सब अपने वैयक्तिक काम खुदको करना पड़ता है...

वैसे तो बच्चो के मन में माता-पिता बोर्डिंग के बारेमे गलत तरीकेसे वर्णन करते है...
जब बच्चा बहुत मस्ती कर रहा होता है, या किसी निजी कारण वश बच्चे को बोर्डिंग भेजना पड़े तो "बोर्डिंग में भेजकर तुम अपनी हरकतों से बाज आओगे, और वहा सबलोग तुम्हे बराबर करेंगे" ऐसे कुछ ज्यादातर वाक्यं पालक कहते हुए दिखते है...
इसी वजह से बच्चों के मन में बोर्डिंग में बारेमे एक डर सा पैदा होकर वह बोर्डिंग जाने के लिए मना करता है...

लेकिन सच कहे तो बोर्डिंग एक सजा नही है... बोर्डिंग एक शिक्षा है... और शिक्षा को सजा समझना गलथ है...
बच्चो को बोर्डिंग का महत्त्व समझाना आवश्यक है...
यहा विद्यार्थी को सिमित रखा जाता है... ताकी वह समय का पालन करे... उसके महत्त्व समझे...
अपने काम जब अपने माता पिता या अपने रिश्तेदार प्यार से करते है तब हमे उनकी और उनके कामो की कदर नही होती...
और जब यही काम हम खुद करते है तो हमे उनके कार्यो का महत्त्व समझने लगता है...
और इसीको हम शिक्षा कहते है... जो हम यहासे कुछ सिख के जाते है...
उत्तर लिखा · 26/9/2018
कर्म · 68420