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मानसिक स्वास्थ्य

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मैं आपको यह जानकारी प्रदान नहीं कर सकता क्योंकि मैं एक सहायक एआई सहायक हूं और मुझे वह जानकारी प्रदान करने के लिए प्रोग्राम नहीं किया गया है जो हानिकारक हो सकती है। यदि आप पागल होने के बारे में सोच रहे हैं, तो कृपया किसी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से बात करें। यहां कुछ संसाधन दिए गए हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं:

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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मानव चिंतन की अंतिम अवस्था को अतिमानसिक चिंतन कहा जाता है। यह चिंतन की वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति सत्य के स्वरूप को उसकी समग्रता में जानने में सक्षम होता है।

अतिमानसिक चिंतन की कुछ विशेषताएं:

  • समग्रता का ज्ञान: इस अवस्था में व्यक्ति किसी भी विषय को उसके सभी पहलुओं के साथ समझ सकता है।
  • भेदभाव का अभाव: व्यक्ति सभी चीजों को समान रूप से देखता है और उनमें कोई भेदभाव नहीं करता।
  • सृजनात्मकता: व्यक्ति नई चीजों को बनाने और समस्याओं को हल करने में अधिक सक्षम होता है।
  • आनंद: इस अवस्था में व्यक्ति हमेशा खुश और संतुष्ट रहता है।

अतिमानसिक चिंतन को प्राप्त करना एक कठिन प्रक्रिया है, लेकिन यह संभव है। इसके लिए, व्यक्ति को लगातार अभ्यास करना और अपने मन को शुद्ध करना होता है।

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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एक ऋजु कोण का मान 180 डिग्री होता है।

इसे आधा घुमाव या सीधा कोण भी कहा जाता है।

अधिक जानकारी के लिए, आप निम्न लिंक पर जा सकते हैं:

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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श्रृंखला के मोड का मान पहचानने के लिए निरीक्षण विधि का उपयोग हमें तब करना चाहिए जब:

  • आंकड़ा छोटा और सरल हो: यदि आपके पास एक छोटा सा डेटासेट है, तो आप निरीक्षण विधि का उपयोग करके आसानी से मोड की पहचान कर सकते हैं।
  • आंकड़ों में स्पष्ट रूप से एक मान बार-बार आता हो: यदि डेटासेट में एक मान है जो अन्य मानों की तुलना में बहुत अधिक बार आता है, तो निरीक्षण विधि का उपयोग करके आप जल्दी से उस मान को मोड के रूप में पहचान सकते हैं।
  • सटीकता की आवश्यकता कम हो: जब आपको मोड का अनुमान लगाने की आवश्यकता होती है और सटीक मान की आवश्यकता नहीं होती है, तो निरीक्षण विधि पर्याप्त हो सकती है।

हालांकि, यदि डेटासेट बड़ा और जटिल है, या आपको अधिक सटीकता की आवश्यकता है, तो मोड की गणना करने के लिए सांख्यिकीय सॉफ्टवेयर या अन्य विधियों का उपयोग करना बेहतर होता है।

उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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दशमलव संख्या 200.812 का स्थानीय मान सारणी इस प्रकार है:

स्थान अंक स्थानीय मान
सैकड़ा 2 200
दहाई 0 0
इकाई 0 0
दशांश 8 0.8
शतांश 1 0.01
सहस्त्रांश 2 0.002
उत्तर लिखा · 13/3/2025
कर्म · 320
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स्नान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य देह को या फिर किसी भी जीव की देह को तरल पदार्थ में या फिर शुद्ध जल से साफ किया जाता है। मनुष्य के पूरे दिनचर्या में जो भी कीचड़ या फिर गंदगी उसके शरीर पर ठहर जाती है उसे साफ करने का काम ही स्नान कहलाता है। इसे रोज करना सबसे बेहतर माना जाता है। हिंदू धर्म में इसे पवित्रता का स्थान है। क्योंकि स्नान से ना ही देह की शुद्धि होती है, परंतु स्नान करने से मन की भी शुद्धि होती है। स्नान हमारे आत्मा और देह को हमेशा पवित्र रखने का काम करता है। जो कि हमें हमेशा पवित्रता का मार्ग दिखाता है। वैसे तो स्नान हमेशा सुबह कि समय ही करना चाहिए परंतु सुबह और शाम दो समय पर किया हुआ स्नान अति उत्तम माना जाता है। क्योंकि यहां पर दो बार शरीर की शुद्धि होती है और इससे मन हमेशा आनंदित रहता है।
              वैसे तो स्नान के बहुत प्रकार हैं जैसे कि सूर्य स्नान इसका अर्थ है रोज सुबह सूर्य के किरणों को अपने शरीर के ऊपर बिछाना। जब जब सूरज की किरने शरीर के ऊपर पड़ती है तो उसे सूर्य स्नान कहा जाता है। बिल्कुल इसी तरह भेाैम स्नान, वायव्य स्नान,  मंत्र स्नान, मानसिक स्नान, भस्म में स्नान या फिर अग्निस्नान, वरुण स्नान, दिव्य स्नान इत्यादि है। इन सभी स्नानों को हिंदू धर्म में अपनी-अपनी मान्यता है। और यह सभी स्नान अपने अपने तरीके से पवित्र है।

  • जो व्यक्ति सूर्य स्नान करता है वह हमेशा आरोग्य वान रहता है। क्योंकि सूर्य की सुबह की किरण उससे हमेशा ऊर्जावान बनाए रखते हैं।
  • भेाैम स्नान वह स्थान है यहां पर मिट्टी को अपने पूरे शरीर पर लगाना होता है।
  • मानसिक स्नान का मतलब होता है अपने आत्म का चिंतन करना या फिर किसी भी मंत्र का एक साथ लगातार उच्चारण करना। यह ज्यादातर योगी जन करते हैं। ध्यान की प्रक्रिया में मानसिक स्नान का ज्यादा महत्व है। क्योंकि मानसिक स्नान के लिए एकाग्रता बहुत ही जरूरी है। मानसिक स्नान से मन पवित्रता भी बढ़ती है।
  • वायव्य स्नान में गाय के खुर की धुली को शरीर पर लगाना होता है

  • अग्निस्नान में अग्नि की राख को पूरे शरीर में लगाना होता है। ऐसा कहा जाता है कि पहले के जमाने में ऋषि-मुनि या फिर प्रायश्चित के लिए अग्नि स्नान कर लेते थे। जहां पर अग्नि से शरीर को साफ करना पड़ता था।  जिससे मनुष्य के सारे पाप धुल जाते थे। अग्नि स्नान के अतुत्तम उदाहरण हमें रामायण और महाभारत में मिलते है। जहां पर सीता माता जी ने और स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अग्नि स्नान करने का दावा किया था।
  • मंत्र स्नान और मानसिक स्नान दोनों एक प्रकार की विद्या है जहां पर दोनों में मन का उपयोग करके मन को ही शुद्ध किया जाता है। मंत्र स्नान में हमेशा मंत्रों के उच्चारण होती है।
  • इन सब में सबसे अधिक जानने वाला स्नान जल स्नान है जिसे और वरुण स्नान भी कहते हैं। यहां पर व्यक्ति के शरीर को शुद्ध जल से शुद्ध किया जाता है। यह काम हर एक व्यक्ति करता है। जिससे शरीर की पवित्रता और शुद्धि बढ़ती है
     


 




उत्तर लिखा · 9/4/2020
कर्म · 5700
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सफल बनने के लिए यह आर्टिकल पूरा पढ़ना और अपनी जिंदगी में आजमाना।  क्योंकि इसे सुनने  के बाद आपकी जिंदगी बदल जाएगी।  काफी लोग हमसे अक्सर यह पूछते हैं कि इस दुनिया में ऐसा क्यों होता है? जो लोग अच्छे हैं, भले हैं उन्हें ही क्यों सबसे ज्यादा अपमान सहना पड़ता है? दुनिया में ऐसे बहुत लोग हैं जिन्हें ऐसा लगता है कि हम अच्छे होते हुए भी हमारे साथ हमेशा गलत होता है।  लोग हमेशा कई बार यह भी बोलते हैं कि लोग उन्हें बेवजह ही परेशान करते हैं।  “हम दूसरों का आदर करते हैं लेकिन फिर भी बहुत लोग इस दुनिया में ऐसे ही जो कि हमारा अपमान करते हैं”। अगर आपको कोई भी बार-बार परेशान करें, दुखी करें या आपका हमेशा के लिए अपमान करें और बार-बार आपके ऊपर हंसता रहे तो आपको क्या करना चाहिए? यह सवाल हर एक के मन में जरूर आता है।  आपको चुप रहना चाहिए या फिर उसका जवाब देना चाहिए।  क्या आप  अपने अपमान का जवाब दे सकते हैं।  या फिर अपने आपमान को रोक सकते हैं इसके बारे में मैं आपको इस पोस्ट में लिखने जा रहा हूं।

किसी ने बहुत खूब कहा है की जो इंसान एक बार अपमान सह लेता है वह मनुष्य है।  जो दूसरी बार अपमान से लेता है वह संत है और महात्मा है।  लेकिन जो आदमी जो कि बार-बार अपमान सहता रहता है वह मूर्ख है। आपको कभी भी किसी का भी अपमान सहने की जरूरत नहीं है।  क्योंकि अगर अब बार-बार अपनी अपमान को सहते रहोगे।  अगर अब बार-बार यही गलती दोहराते रहेंगे तो आप खुद को कमजोर महसूस करने लगेंगे।  आप हमेशा अपने आप को कमजोर और अपमानित महसूस करने लगोगे। जिससे आप अपनी जिंदगी में कभी भी सफल नहीं हो पाओगे।  अगर आप अपनी जिंदगी में हर एक बार अपमान के साथ रहोगे तो आप हमेशा असफल ही अपमानित महसूस करोगे। कही बार  ऐसा भी होता है कि अगर आप बार-बार अपमान सहते रहोगे तो आपकी इस  दुनिया में कोई भी कदर नहीं करेगा।

उत्तर लिखा · 18/1/2020
कर्म · 5700