
भौतिक विज्ञान
परिभाषा: बल आघूर्ण एक घूर्णी बल है जो किसी वस्तु को एक अक्ष के चारों ओर घुमाने की प्रवृत्ति उत्पन्न करता है। जब एक दंड चुंबक को एक समान चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो उस पर एक बल आघूर्ण लगता है जो उसे क्षेत्र की दिशा में संरेखित करने की कोशिश करता है।
व्यंजक की व्युत्पत्ति:
- मान लीजिए कि एक दंड चुंबक जिसकी लंबाई 2l और ध्रुव सामर्थ्य m है, एक समान चुंबकीय क्षेत्र B में क्षेत्र की दिशा से θ कोण पर रखा गया है।
- चुंबक के उत्तरी ध्रुव पर लगने वाला बल = mB (क्षेत्र की दिशा में)।
- चुंबक के दक्षिणी ध्रुव पर लगने वाला बल = mB (क्षेत्र की विपरीत दिशा में)।
- चूंकि बल बराबर और विपरीत हैं, इसलिए वे एक बलयुग्म बनाते हैं।
- बलयुग्म का आघूर्ण, जिसे बल आघूर्ण भी कहा जाता है, को बल और बलयुग्म की भुजा के लंबवत दूरी के गुणनफल के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- इसलिए, बल आघूर्ण, τ = mB x 2l sinθ = MB sinθ, जहाँ M = m x 2l चुंबकीय आघूर्ण है।
अतः, चुंबकीय क्षेत्र में रखे गए दंड चुंबक पर लगने वाले बल आघूर्ण का व्यंजक τ = MB sinθ है।
विशेष स्थितियाँ:
- यदि θ = 0°, तो τ = 0. इसका मतलब है कि जब चुंबक को चुंबकीय क्षेत्र के समानांतर रखा जाता है, तो उस पर कोई बल आघूर्ण नहीं लगता है।
- यदि θ = 90°, तो τ = MB. इसका मतलब है कि जब चुंबक को चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत रखा जाता है, तो उस पर अधिकतम बल आघूर्ण लगता है।
यह व्यंजक भौतिकी और इंजीनियरिंग के विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी है, जैसे कि विद्युत मोटर, जनरेटर और चुंबकीय कम्पास का डिजाइन।
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चुंबकीय क्षेत्र में रखे दंड चुंबक पर लगने वाला बल आघूर्ण, एक बल युग्म द्वारा दिया जाता है। इस बल आघूर्ण के लिए व्यंजक निम्नलिखित है:
मान लीजिए कि एक दंड चुंबक जिसकी लंबाई 2l है और ध्रुव प्रबलता m है, एक समान चुंबकीय क्षेत्र B में इस प्रकार रखा गया है कि चुंबक की अक्ष क्षेत्र की दिशा से कोण θ बनाती है।
चुंबक के उत्तरी ध्रुव पर लगने वाला बल, F = mB (क्षेत्र की दिशा में)
चुंबक के दक्षिणी ध्रुव पर लगने वाला बल, F = mB (क्षेत्र की विपरीत दिशा में)
चूंकि बल समान और विपरीत हैं, इसलिए वे एक बल युग्म बनाते हैं।
बल युग्म का आघूर्ण (टॉर्क),
τ = बल × बलों के बीच लंबवत दूरी
τ = mB × 2l sinθ
τ = (m × 2l) B sinθ
हम जानते हैं कि चुंबकीय आघूर्ण, M = m × 2l
इसलिए, τ = MB sinθ
सदिश रूप में,
τ = M × B
यह चुंबकीय क्षेत्र में रखे दंड चुंबक पर लगने वाले बल आघूर्ण के लिए व्यंजक है।
विशेष स्थितियाँ:
- जब θ = 0°, तो sinθ = 0, इसलिए τ = 0. इसका मतलब है कि जब चुंबक को चुंबकीय क्षेत्र के समानांतर रखा जाता है, तो उस पर कोई बल आघूर्ण नहीं लगता है।
- जब θ = 90°, तो sinθ = 1, इसलिए τ = MB. इसका मतलब है कि जब चुंबक को चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत रखा जाता है, तो उस पर अधिकतम बल आघूर्ण लगता है।
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चुंबक शीलता को μ (म्यू) से दर्शाया जाता है। इसे हेनरी प्रति मीटर (H/m) में मापा जाता है।
- उच्च चुंबक शीलता वाले पदार्थ आसानी से चुंबकीय क्षेत्र में चुंबकीय हो जाते हैं। उदाहरण: लोहा, निकल, कोबाल्ट
- कम चुंबक शीलता वाले पदार्थ मुश्किल से चुंबकीय क्षेत्र में चुंबकीय होते हैं। उदाहरण: तांबा, एल्यूमीनियम, हवा
चुंबक शीलता का उपयोग ट्रांसफार्मर, मोटर और इंडक्टर जैसे विद्युत उपकरणों के डिजाइन में किया जाता है।
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इसे गणितीय रूप से इस प्रकार व्यक्त किया जाता है:
जहाँ:
- B चुंबकीय फ्लक्स घनत्व है।
- H चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता है।
विभिन्न पदार्थों की चुंबकशीलता अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए, लौहचुंबकीय पदार्थों (जैसे लोहा) की चुंबकशीलता बहुत अधिक होती है, जबकि गैर-चुंबकीय पदार्थों (जैसे वायु) की चुंबकशीलता बहुत कम होती है।
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प्रतिरोध किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करने का गुण है। इसे ओम (Ω) में मापा जाता है।
प्रतिरोध के कारण:
- सामग्री की प्रकृति: अलग-अलग सामग्रियों में अलग-अलग मात्रा में मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं, जो विद्युत धारा के प्रवाह के लिए उपलब्ध होते हैं। जिन सामग्रियों में कम मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं, वे अधिक प्रतिरोध प्रदान करते हैं।
- लंबाई: किसी चालक की लंबाई जितनी अधिक होगी, प्रतिरोध उतना ही अधिक होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि इलेक्ट्रॉनों को लंबी दूरी तय करनी होती है, जिससे टकराव की संभावना बढ़ जाती है।
- अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल: किसी चालक का अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल जितना अधिक होगा, प्रतिरोध उतना ही कम होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के लिए अधिक जगह होती है।
- तापमान: अधिकांश सामग्रियों में, तापमान बढ़ने पर प्रतिरोध बढ़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमाणु अधिक कंपन करते हैं, जिससे इलेक्ट्रॉनों के लिए प्रवाह करना कठिन हो जाता है।
प्रतिरोध का उपयोग:
- विद्युत परिपथों में धारा को नियंत्रित करने के लिए
- विद्युत ऊर्जा को ऊष्मा में बदलने के लिए (जैसे हीटर में)
- वोल्टेज को विभाजित करने के लिए
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विद्युत परिपथ में प्रतिरोध एक विद्युत घटक है जो विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है। इसे ओम (Ω) में मापा जाता है। प्रतिरोध जितना अधिक होगा, धारा का प्रवाह उतना ही कम होगा।
प्रतिरोध का उपयोग विद्युत परिपथों में कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:
- धारा को सीमित करना
- वोल्टेज को विभाजित करना
- ऊर्जा को गर्मी में परिवर्तित करना
प्रतिरोध कई अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- तार्किक प्रतिरोध: ये प्रतिरोध कार्बन फिल्म या धातु फिल्म से बने होते हैं।
- वायरवाउंड प्रतिरोध: ये प्रतिरोध तार के एक तार से बने होते हैं।
- चर प्रतिरोध: इन प्रतिरोधों को एक घुंडी या स्लाइडर का उपयोग करके समायोजित किया जा सकता है।
यहाँ प्रतिरोध के बारे में कुछ अतिरिक्त जानकारी दी गई है:
- प्रतिरोध तापमान के साथ बदल सकता है।
- कुछ प्रतिरोधों में ध्रुवीयता होती है, जिसका अर्थ है कि उन्हें केवल एक दिशा में सर्किट में जोड़ा जा सकता है।
- प्रतिरोधों को श्रृंखला या समानांतर में जोड़ा जा सकता है।
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी उपयोगी है!
ऊर्जा का SI मात्रक जूल (Joule) है।
उदाहरण के लिए:- एक बैटरी में रासायनिक ऊर्जा होती है, जो एक बल्ब को जलाने के लिए विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
- एक ऊँचाई पर रखी हुई वस्तु में स्थितिज ऊर्जा होती है, जो गिरने पर गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।