
प्राचीन इतिहास
- वीरगाथा काल: यह नाम आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने दिया था, क्योंकि इस काल में वीर रस से ओतप्रोत रचनाएँ लिखी गईं।
- सिद्ध-सामंत काल: यह नाम राहुल सांकृत्यायन ने दिया था, क्योंकि इस काल में सिद्धों और सामंतों का प्रभाव था।
- चारण काल: यह नाम जॉर्ज ग्रियर्सन ने दिया था, क्योंकि इस काल में चारण कवियों ने वीरगाथाएँ लिखीं।
- प्रारम्भिक काल: यह नाम मिश्र बंधुओं ने दिया था।
- आदिकाल: यह नाम हजारी प्रसाद द्विवेदी ने दिया था और यह नाम सबसे अधिक मान्य है।
ये सभी नाम आदिकाल की विभिन्न विशेषताओं और प्रवृत्तियों को दर्शाते हैं।
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नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी ईस्वी में गुप्त साम्राज्य के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
स्रोत:
कल्चुरियों की दो मुख्य शाखाएँ थीं और उनकी राजधानियाँ अलग-अलग थीं:
- त्रिपुरी के कल्चुरि: इनकी राजधानी त्रिपुरी थी, जो वर्तमान में मध्य प्रदेश में स्थित तेवर नामक स्थान है।
- रतनपुर के कल्चुरि: इनकी राजधानी रतनपुर थी, जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है।
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महाभारत का युद्ध भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक युद्ध था। यह युद्ध कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। इस युद्ध के कई कारण थे, जिनमें से कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं:
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द्रौपदी का अपमान:
द्रौपदी को जुए में हारने के बाद दुर्योधन ने भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया। इस घटना से पांडवों को गहरा आघात लगा और उन्होंने इसका बदला लेने का संकल्प लिया।विकिपीडिया: द्रौपदी
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युधिष्ठिर का जुआ खेलना:
युधिष्ठिर को जुआ खेलने की बुरी आदत थी, जिसके कारण उन्होंने अपना राज्य, अपनी संपत्ति और अपने भाइयों को दांव पर लगा दिया और हार गए। इस कारण पांडवों को बहुत कष्ट हुआ और उन्हें वनवास जाना पड़ा।लाइव हिन्दुस्तान: जुआ महाभारत युद्ध का मूल
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कौरवों का अन्यायपूर्ण व्यवहार:
कौरवों ने पांडवों के साथ हमेशा अन्यायपूर्ण व्यवहार किया। उन्होंने पांडवों को उनका हक देने से इनकार कर दिया और उन्हें राज्य से बाहर निकालने की साजिश रची। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या करता था और उन्हें हर तरह से नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता था। भक्ति भजन: कौरवों और पांडवों का जन्म
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कृष्ण का शांति प्रस्ताव विफल होना:
भगवान कृष्ण ने युद्ध को टालने के लिए कौरवों के पास शांति प्रस्ताव भेजा, लेकिन दुर्योधन ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। दुर्योधन पांडवों को सुई की नोंक जितनी भी जमीन देने को तैयार नहीं था।
इन सभी कारणों के परिणामस्वरूप महाभारत का युद्ध हुआ, जो भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
अशोक के शिलालेखों में अरमाइक, ग्रीक, ब्राह्यी और खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया है....
अशोक महान कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म को अपनाया था ...
अशोक महान उपगुप्त बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी ...
अशोक के सारनाथ के स्तम्भ पर चार सिंहों का शीर्ष बनाया गया है...
अशोक का विवाह महादेवी राजकुमारी से हुआ था ...
बौद्ध ग्रंथों के ग्रन्थ के अनुसार अशोक अपने निन्यानवे भाइयों का वध कर मगध की गद्दी पर बैठा था ...
तीसरी बौद्ध संगीति अशोक शासनकाल में संपन्न हुआ था ...
सम्राट अशोक का 7वां अभिलेख सबसे लम्बा है ...
आधुनिक इटली के जन्मदाता और इटली का एकीकरण करने वाले मेजिनी उन महान् मानवों में से एक थे, जिन्होंने मानव कल्याण की भावना से ही कार्य किया । साधनों की कमी के बाद भी अपनी अधिकांश शक्ति इटली के उत्थान में लगायी ।
वह सच्चा धार्मिक था, अत: मानव सेवा और देश सेवा को ही सच्ची पूजा समझता था । उसका असाधारण चरित्र मानवीय गुणों से पूर्ण था । वह प्रजातन्त्र तथा राष्ट्रीयता का जबरदस्त समर्थक था । विश्व के भूगोल में इटली की सुदृढ़ स्थिति और उसके सारे वैभव व सम्पन्नता का वास्तविक हकदार मेजिनी ही है ।
2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:
मेजिनी का जन्म इटली के जेनोआ में सन् 1805 को एक सुशिक्षित परिवार में हुआ था । उसके पिता एक डॉक्टर थे और मां धार्मिक संस्कारों वाली महिला थी । बाल्यावस्था से ही मेजिनी के मन में दीन-दुखियों के प्रति दयाभाव था । 6 वर्ष की अवस्था में तो उसने एक-वृद्ध फकीर को गिरिजाघर की सीढियों पर असहाय अवस्था में देखा, तो अपनी मां से उसकी कुछ आर्थिक सहायता हेतु जिद करने लगा । अन्तत: उसकी माता को बालक मेजिनी की जिद के आगे झुकना ही पड़ा ।
स्कूली जीवन में वह गरीब विद्यार्थियों को पुस्तकें, कपड़े आदि देकर उनकी सहायता किया करता था । कॉलेज में पढ़ते समय मेजिनी ने शिष्टाचार का हमेशा ध्यान रखा । मेजिनी ने किसी प्रकार का व्यसन भी नहीं पाल रखा था । अपने डॉक्टर पिता को चीर-फाड़ करते देखकर वह बीमार हो जाता था । उसने डॉक्टरी पढ़ने की बजाय वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की । विद्यार्थी जीवन से ही अपने देश के निरंकुश और स्वेच्छाचारी शासक का व्यवहार देखकर वह क्षुब्द हो उठता था ।
इटली की जनता के सम्मान के साथ-साथ वह इटली को एक एकीकृत राज्य के रूप में देखना चाहता था; क्योंकि उस समय इटली पराधीन होने के साथ टुकड़ों-टुकड़ों में बंटा हुआ था । इसीलिए उसने ”कार्बोनेरी” नामक क्रान्तिकारी संगठन से अपने आपको जोड़ लिया । अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण उसे गिरफतार कर लिया गया । उस समय इटली आन्तरिक फूट का शिकार था ।
देश मे एकता व संगठन का अभाव था । 6 माह का कारावास भुगतने के बाद उसे देश निकाला दे दिया गया और वह वहा से फ्रांस चला आया, जहां उसने ”यंग इटली” नामक समाचार-पत्रिका निकाली । इस पत्र के माध्यम से वह इटली को स्वतन्त्र कराने के साथ-साथ देश के नागरिकों में राष्ट्रीयता का संचार करना चाहता था ।
देशभक्ति की भावना को जागृत करने वाली इस पत्रिका को पढ़कर हजारों नवयुवकों ने देश सेवा का संकल्प लिया । यहां मी पुलिस मैजिनी के पीछे पड़ी थी । वह फ्रांस को छोड़कर स्विटजरलैण्ड आ पहुचा और वहा के सेनाध्यक्ष जनरल रामाविनोकी रो सैनिक सहायता मांगी ।
सहायता का वचन देने वाले सेनाध्यक्ष ने विश्वासघात करते हुए मैजिनी की पूरी योजना का भंडाफोड़ ही कर दिया, जिससे मेजिनी के सारे क्रान्तिकारी गिरफ्तार कर लिये गये, जिसमें मेजिनी का प्रिय साथी जैकब रफैनी भी था । पुलिस ने मेजिनी का पता जानने के लिए उस पर सैकड़ों अत्याचार किये । जैकब ने आत्महत्या कर ली, किन्तु अपना मुंह नहीं खोला ।