
छंद
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सोरठा एक अर्धसम मात्रिक छंद है। यह दोहा छंद का उल्टा होता है। इसकी पहचान इस प्रकार है:
- यह दोहे का उल्टा होता है: सोरठा छंद, दोहा छंद से विपरीत होता है। दोहा के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं जबकि सोरठा के पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसी तरह, दोहा के दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं जबकि सोरठा के दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
- मात्राएँ: इसके विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11 मात्राएँ होती हैं और सम चरणों (दूसरे और चौथे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
- तुक: सम चरणों के अंत में तुक (rhyme) मिलती है।
- उदाहरण: जो सुमिरत सिधि होइ, गननायक करिबर बदन। करहु अनुग्रह सोइ, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।
इस उदाहरण में, पहली और तीसरी पंक्ति में 11-11 मात्राएँ हैं, और दूसरी और चौथी पंक्ति में 13-13 मात्राएँ हैं।
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दोहा और रोला छंद मिलकर कुण्डलिया छंद बनता है।
कुण्डलिया एक संयुक्त छंद है जो भारतीय काव्य परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह दो छंदों के मेल से बनता है, जिनमें पहला दोहा और दूसरा रोला होता है।
- दोहा: दोहा छंद के पहले दो चरण कुण्डलिया छंद के पहले दो चरण होते हैं। दोहा अर्धसम मात्रिक छंद है जिसमें 24 मात्राएँ होती हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
- रोला: रोला छंद के बाद के चार चरण कुण्डलिया छंद बनाते हैं। रोला एक सम मात्रिक छंद है जिसमें 24 मात्राएँ होती हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 मात्राओं के बाद यति होती है।
कुण्डलिया छंद की विशेषता यह है कि यह जिस शब्द से शुरू होता है, उसी शब्द से समाप्त भी होता है।
उदाहरण के लिए:
सांईं सेती चित्त लाइ, भज मन गिरधर गोपाल।
बिन हरि कोउ काम ना आइ, मोह माया सब जाल।
मोह माया सब जाल, झूठा बंधन जग का।
अंतकाल पछतायेगा, साथ नाहिं लग का।
कह गिरधर कविराय, सुनो रे मेरे भाई।
सांईं सेती चित्त लाइ, भज मन गिरधर गोपाल।
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दोहा छंद में कुल 24 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरणों (पहले और तीसरे चरण) में 13-13 मात्राएँ होती हैं और सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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