
पारिस्थितिकी
- जैविक घटक में सभी जीवित चीजें शामिल हैं, जैसे कि पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव (bacteria, fungi) आदि।
- ये घटक एक-दूसरे के साथ और पर्यावरण के साथ परस्पर क्रिया करते हैं।
- उदाहरण:
- उत्पादक (Producers): पौधे जो प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से अपना भोजन बनाते हैं।
- उपभोक्ता (Consumers): जानवर जो पौधों या अन्य जानवरों को खाते हैं।
- अपघटक (Decomposers): बैक्टीरिया और कवक जो मृत जीवों को विघटित करते हैं।
- अजैविक घटक में निर्जीव चीजें शामिल हैं, जैसे कि तापमान, प्रकाश, पानी, मिट्टी, हवा, और खनिज।
- ये घटक जैविक घटकों के जीवन और विकास को प्रभावित करते हैं।
- उदाहरण:
- तापमान: जीवों की वृद्धि और विकास को प्रभावित करता है।
- प्रकाश: प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक।
- पानी: जीवन के लिए आवश्यक।
- मिट्टी: पौधों के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती है।
- जैव विविधता की अवधारणा: जैव विविधता का अर्थ है पृथ्वी पर जीवन की विविधता। इसमें पौधों, जानवरों, सूक्ष्मजीवों और पारिस्थितिक तंत्रों की विविधता शामिल है।
- जैव विविधता के प्रकार:
- आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity): एक ही प्रजाति के भीतर जीन में विविधता।
- प्रजाति विविधता (Species Diversity): एक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों की संख्या।
- पारिस्थितिकी तंत्र विविधता (Ecosystem Diversity): विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र, जैसे वन, घास के मैदान, और झीलें।
- जैव विविधता का महत्व:
- पारिस्थितिक तंत्र को स्थिर रखने में मदद करता है।
- हमें भोजन, दवाएं और अन्य महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करता है।
- पर्यटन और मनोरंजन के अवसर प्रदान करता है।
- जैव विविधता के संरक्षण के उपाय:
- वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना।
- लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए कार्यक्रम चलाना।
- पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देना।
- जैव भूरासायनिक चक्र वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा रासायनिक तत्व और यौगिक जीवित जीवों और पर्यावरण के बीच चलते हैं।
- ये चक्र पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक हैं, क्योंकि वे पोषक तत्वों को पुनर्चक्रित करते हैं।
- कुछ महत्वपूर्ण जैव भूरासायनिक चक्र हैं:
- जल चक्र (Water cycle): पानी का वाष्पीकरण, संघनन और वर्षा।
- कार्बन चक्र (Carbon cycle): कार्बन का पौधों, जानवरों और वातावरण के बीच आदान-प्रदान।
- नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen cycle): नाइट्रोजन का मिट्टी, पौधों और वातावरण के बीच आदान-प्रदान।
- एक पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होता है, यानी यह एक दिशा में बहता है।
- ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत सूर्य है।
- पौधे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से सूर्य की ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं।
- यह ऊर्जा फिर खाद्य श्रृंखला के माध्यम से अन्य जीवों तक जाती है।
- प्रत्येक स्तर पर, कुछ ऊर्जा गर्मी के रूप में खो जाती है। इसलिए, पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह धीरे-धीरे कम होता जाता है।
पर्यावरण का अर्थ: पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: "परि" (चारों ओर) और "आवरण" (घेरना)। इस प्रकार, पर्यावरण का अर्थ है वह सब कुछ जो हमारे चारों ओर है और हमें प्रभावित करता है।
पर्यावरण की परिभाषा: पर्यावरण को उन सभी भौतिक, रासायनिक और जैविक कारकों के مجموعे के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो किसी जीव या पारिस्थितिक समुदाय को घेरते हैं और उसे प्रभावित करते हैं।
पर्यावरण के घटक: पर्यावरण के दो मुख्य घटक होते हैं:
- जैविक घटक: इसमें सभी जीवित चीजें शामिल हैं, जैसे कि पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव आदि।
- अजैविक घटक: इसमें सभी निर्जीव चीजें शामिल हैं, जैसे कि हवा, पानी, मिट्टी, धूप, तापमान आदि।
जैव विविधता की अवधारणा: जैव विविधता का अर्थ है पृथ्वी पर जीवन की विविधता। इसमें पौधों, जानवरों, सूक्ष्मजीवों और पारिस्थितिक तंत्रों की विविधता शामिल है।
जैव विविधता के प्रकार: जैव विविधता को तीन मुख्य प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:
- आनुवंशिक विविधता: एक ही प्रजाति के जीवों के बीच आनुवंशिक अंतर।
- प्रजाति विविधता: एक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों की संख्या।
- पारिस्थितिक तंत्र विविधता: विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्रों की उपस्थिति।
जैव विविधता के संरक्षण के उपाय:
- प्राकृतिक आवासों का संरक्षण।
- लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण।
- प्रदूषण कम करना।
- वन्यजीव अपराधों को रोकना।
- स्थायी कृषि को बढ़ावा देना।
एक पारिस्थितिक तंत्र में, ऊर्जा का प्रवाह सूर्य से शुरू होता है। पौधे सूर्य के प्रकाश का उपयोग प्रकाश संश्लेषण नामक प्रक्रिया के माध्यम से भोजन बनाने के लिए करते हैं। फिर, शाकाहारी जानवर पौधों को खाते हैं, और मांसाहारी जानवर शाकाहारी जानवरों को खाते हैं। इस प्रकार, ऊर्जा एक स्तर से दूसरे स्तर तक प्रवाहित होती है। ऊर्जा के इस प्रवाह को ऊर्जा पिरामिड के रूप में दर्शाया जा सकता है, जिसमें प्रत्येक स्तर पिछले स्तर की तुलना में कम ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होता है, जिसका अर्थ है कि ऊर्जा एक बार जब एक स्तर से दूसरे स्तर पर चली जाती है, तो वह वापस नहीं आ सकती है। ऊर्जा का कुछ भाग प्रत्येक स्तर पर गर्मी के रूप में खो जाता है।
उत्पादक (Producers): सूर्य से ऊर्जा को प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ग्रहण करते हैं। पौधे, शैवाल और कुछ बैक्टीरिया सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को ग्लूकोज में बदलते हैं। यह ग्लूकोज रासायनिक ऊर्जा के रूप में संग्रहीत होता है।
उपभोक्ता (Consumers): उत्पादकों से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाहारी) पौधों को खाते हैं, द्वितीयक उपभोक्ता (मांसाहारी) शाकाहारियों को खाते हैं, और तृतीयक उपभोक्ता द्वितीयक उपभोक्ताओं को खाते हैं। प्रत्येक स्तर पर, ऊर्जा का एक हिस्सा गर्मी के रूप में खो जाता है।
अपघटक (Decomposers): मृत जीवों और कार्बनिक पदार्थों से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। बैक्टीरिया और कवक जैसे अपघटक मृत पौधों और जानवरों को सरल पदार्थों में तोड़ते हैं, जो मिट्टी में वापस चले जाते हैं और उत्पादकों द्वारा उपयोग किए जाते हैं।
ऊर्जा प्रवाह के प्रत्येक स्तर पर, ऊर्जा का लगभग 90% गर्मी के रूप में खो जाता है, जिसे जीव अपने जीवन कार्यों के लिए उपयोग करते हैं। केवल 10% ऊर्जा अगले स्तर तक पहुंचती है। इसलिए, पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एक पिरामिड के आकार का होता है, जिसमें उत्पादकों के पास सबसे अधिक ऊर्जा होती है और शीर्ष उपभोक्ताओं के पास सबसे कम।
अधिक जानकारी के लिए, आप निम्नलिखित स्रोतों को देख सकते हैं:
प्रकृति भाव, जिसे कभी-कभी 'प्रकृतिवाद' भी कहा जाता है, एक साहित्यिक और कलात्मक आंदोलन था जो 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के शुरुआत में उभरा। यह यथार्थवाद से प्रभावित था, लेकिन इसने वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सामाजिक निर्धारणवाद पर अधिक जोर दिया।
उद्भव:
- यथार्थवाद से प्रेरणा: प्रकृति भाव का जन्म यथार्थवाद की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ, जिसने वास्तविकता को सटीक रूप से चित्रित करने का प्रयास किया। हालांकि, प्रकृतिवादियों ने वैज्ञानिक सिद्धांतों और सामाजिक परिस्थितियों के प्रभाव को भी शामिल किया।
- वैज्ञानिक प्रभाव: चार्ल्स डार्विन के विकास के सिद्धांत और हिप्पोलीट टेने के सामाजिक निर्धारणवाद जैसे वैज्ञानिक विचारों ने प्रकृतिवादियों को प्रभावित किया। उन्होंने माना कि मनुष्य अपने पर्यावरण और आनुवंशिकता से गहराई से प्रभावित होते हैं।
- औद्योगिक क्रांति और सामाजिक परिवर्तन: औद्योगिक क्रांति और शहरीकरण के कारण होने वाले सामाजिक परिवर्तनों ने भी प्रकृतिवादियों को प्रेरित किया। उन्होंने गरीबी, असमानता और सामाजिक अन्याय को उजागर करने की कोशिश की।
विकास:
- फ्रांस में उदय: प्रकृति भाव का पहला महत्वपूर्ण केंद्र फ्रांस था, जहाँ एमिल ज़ोला जैसे लेखकों ने इसे लोकप्रिय बनाया। ज़ोला ने अपने उपन्यासों में वैज्ञानिक अवलोकन और सामाजिक विश्लेषण का उपयोग किया।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रसार: प्रकृति भाव जल्द ही यूरोप और अमेरिका में फैल गया। गुस्ताव फ्लोबेयर, हेनरी जेम्स और स्टीफन क्रेन जैसे लेखकों ने भी प्रकृतिवादी विषयों का पता लगाया।
- विषय और शैली: प्रकृतिवादी लेखकों ने अक्सर गरीबी, अपराध, हिंसा और यौन उत्पीड़न जैसे विषयों को संबोधित किया। उन्होंने अपने पात्रों को सामाजिक और आर्थिक ताकतों के शिकार के रूप में चित्रित किया, जिनके पास बहुत कम विकल्प होते हैं। उनकी शैली में अक्सर विस्तृत विवरण, वैज्ञानिक अवलोकन और निराशावादी दृष्टिकोण शामिल होते थे।
- कला और अन्य माध्यमों में: प्रकृति भाव केवल साहित्य तक ही सीमित नहीं था, बल्कि कला, रंगमंच और फिल्म जैसे अन्य माध्यमों में भी फैल गया।
प्रकृति भाव के कुछ प्रमुख लेखक और कृतियाँ:
- एमिल ज़ोला (उदाहरण के लिए, "थेरेस राक्विन", "नाना")
- गुस्ताव फ्लोबेयर ("मैडम बोवरी")
- हेनरी जेम्स ("द अमेरिकन")
- स्टीफन क्रेन ("द रेड बैज ऑफ करेज")
अधिक जानकारी के लिए, आप निम्न स्रोतों की जांच कर सकते हैं: