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आयुर्वेद

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ब्रह्म मुहूर्त में उठने से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से कई फायदे होते हैं। यह मुहूर्त सुबह 4:00 बजे से 6:00 बजे के बीच होता है, जिसे हिन्दू धर्म में बहुत शुभ माना जाता है।

शारीरिक फायदे:

  • ऊर्जा में वृद्धि: ब्रह्म मुहूर्त में वातावरण शांत और शुद्ध होता है, जिससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • बेहतर पाचन: सुबह जल्दी उठने से पाचन क्रिया सुधरती है और पेट संबंधी समस्याएं कम होती हैं।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि: नियमित रूप से ब्रह्म मुहूर्त में उठने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।

मानसिक फायदे:

  • तनाव में कमी: शांत वातावरण में ध्यान और योग करने से तनाव कम होता है और मन शांत रहता है।
  • एकाग्रता में वृद्धि: सुबह के शांत समय में पढ़ाई या काम करने से एकाग्रता बढ़ती है और उत्पादकता में सुधार होता है।
  • सकारात्मक सोच: सुबह जल्दी उठने से मन में सकारात्मक विचार आते हैं और दिन की शुरुआत अच्छी होती है।

आध्यात्मिक फायदे:

  • ध्यान और प्रार्थना के लिए उत्तम समय: ब्रह्म मुहूर्त ध्यान, योग और प्रार्थना के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है, क्योंकि इस समय मन शांत और स्थिर होता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: नियमित रूप से इस समय में आध्यात्मिक अभ्यास करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है।
उत्तर लिखा · 5/5/2025
कर्म · 320
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आंखों के अनेक घरेलू उपायों का उल्लेख आयुर्वेद की प्राचीन पांडुलिपि और ग्रंथों में मिलता है। जिनमें कुछ खास त्रिफला लेकिन है।
सफेद आकौआ मदार के पत्ते का दूध पैर के अंगुंठे में लगाने से रोशनी तेज होती है। सुबह नंगे पांव हरी डूबा में चलना भी श्रेष्ठ रहता है।
आंखों में अंधेरा, धुंधलापन, नेत्र मतिभ्रम की समस्या जीवन को अंधकार की तरफ ले जा सकती है।
आंखों में खराबी के कारण जाने…
भाग्य जगाने के लिए रोज की भागमभाग से आंखों में गन्दगी, कचरा आना स्वाभाविक है।
कम्प्यूटर, मोबाइल, टीवी की स्किन लगातार देखते रहने से नेत्रों में लचिलापन एवं नमी कम होती जाती है।
दूषित वातावरण तथा प्रदूषण के कारण भी आंखों में जलन, खुजली, थकान आदि से आंखों की पुतलियों पर जोर पड़ता है।
आंखों में रूखापन या ड्राइनेस, खुजली, अंधकार की समस्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है।
आजकल वर्क फ्रॉम होम का चलन है। इससे आंखों में अनेक तरह के रोग पनपने लगे हैं।
वर्क फ्रॉम होम और कोरोना के दुष्परिणाम ..विगत कुछ समय से कम्प्यूटर के समक्ष स्क्रीन टाइम में वृद्धि हुई है। इसका सीधा असर नेत्रों पर पड़ रहा है।
आंखों किरकिरापन, खुजली, सूखापन, नयनों या पलकों में सूजन, आंख के नीचे काले निशान आदि तकलीफों से बहुत लोग जूझ रहे हैं। इसमें युवा पीढ़ी ज्यादा परेशान है।
आंखों में खुजली, सूजन या लाल होने पर न करें नजरअंदाज! कोविड19 के लक्षणों में शामिल है….
कोरोना वायरस (Covid 19) शरीर के दूसरे अंगों के साथ-साथ हमारी आंखों को भी प्रभावित कर नुकसान पहुंचा रहा है। यहां तक की यह आंखों के रेटिना तक को भी बुरी तरह हानिकारक है।
करेला और नीम चढ़ा वाली बात जब अधिक चरितार्थ हो जाती है, जब वर्क फ्रॉम होम के लगे युवा आंखों के सूखेपन से परेशानी झेल रहे हैं।
कोरोना वायरस आपके नेत्रों को प्रभावित कर रहा है? ताजा सर्वे में दो तिहाई से अधिक युवाओं ने कोरोना से पीड़ित होने के पश्चात आंखों में खुजली, लाल होना अर्थात रेडनेस, सूजन तथा ड्राइनेस की बात कही।
अगर यह रेटिना पर आक्रमण कर रहा है, तो तुरन्त घरेलू उपाय अपनाएं। एक चौथाई लोगों ने बताया कि मास्क पहनने से समस्या और बढ़ गई।
अमेरिकन ऑप्टोमेट्रिक एसोसिएशन के एक रिसर्च अनुसार सुखी या प्रदूषित वायु भी आंखों पर खराब असर डाल रही है।
वर्क फ्रॉम होम के कारण सिरदर्द आंख लाल होना (कंजंक्टिवाइटिस) शामिल है।
आंखों के लिए उपयोगी 55 आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों और औषधियों द्वारा 17 प्रकार के नेत्ररोगों का इलाज एक ही दवा से करें…

आयुर्वेद के प्राचीन उपनिषद, ग्रन्थ भाष्य में आंखों की रोशनी बढ़ाने वाले कुछ अनुभव ऋषि, मुनि, साध सन्तों के लिखे इस प्रयोगों में कोई हानि भी नहीं है।
जाने -आंखों को सुरक्षित रखने के उपचार…

प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता मतलब (Sensitivity to light) आदि समस्याओं का अन्त, अब 100 प्रतिशत आयुर्वेदिक अवलेह अमृतम आईकी माल्ट/Eyekey Malt से करें।
!- आयुर्वेदिक ग्रन्थ रस-तन्त्र सार,

!!- आयुर्वेद सार संग्रह

!!!- भावप्रकाश निघण्टु

!v- चरक सहिंता

V- द्र्वगुण विज्ञान

आदि ५००० वर्ष पुरानी पुस्तकों में वर्णित ओषधियों के अनुसार आईकी माल्ट निर्मित किया है। इसके उपयोग से घर बैठे ही अपनी आंखों की इलाज कर सकते हैं। ये आंखों की सोलह बीमारियों को जड़ से मिटाकर नेत्रज्योति बढ़ाता है।

आयुर्वेद की प्राचीन

आवलां मुरब्बे के जबरदस्त फायदे…

नेत्ररोग विशेषज्ञों का मानना है कि आंखों की बीमारी से परेशान लोगों को आँवला मुरब्बा या इससे निर्मित उत्पाद जरूर लेना चाहिए। क्योंकि आँवले में विटामिन सी-C पर्याप्त मात्रा में होता है और ये एंटीऑक्सीडेंट ओषधि है, जो सूक्ष्म नेत्र कोशिकाओं एवं नाडियों को क्रियाशील बनाता है।
आईकी माल्ट में मिलाया गया त्रिफला क्वाथ नेत्र ज्योति बढ़ाने के साथ साथ सिरदर्द में राहत देता है।
त्रिफला घृत-लाल आँखें रहना अथवा आंख की सफेद सतह लाल या रक्तमय होना आदि दिक्कतें आई की माल्ट में मिश्रित होने से समस्त नेत्रों के सभी विकार हर लेती हैं।
आंखों के लिए गुलकन्द है- विशेष ओषधि…

भोजन के बाद गुलकन्द का सेवन या गुलकन्द से बनी चीजों का उपयोग खाने के बाद अवश्य करें। गुलकन्द लेने से पित्तदोष सन्तुलित होता है तथा यह कब्ज को पनपने नहीं देता। अमृतम गुलकन्द शरीर के ताप ओर पित्त को सन्तुलित करती है।
नेत्रों को हितकारी दवाएं…

सप्तअमृत लोह, यशद भस्म, वंग भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म आदि रस-रसायनों का इस्तेमाल करें या इन औषधियों से मिश्रित दवाओं का सेवन करें।
बादाम, सूखे मेवे, नारियल गोला इन्हें निश्चित लेवें।
हरड़ हरे, हर नेत्ररोग…

हरड़ मुरब्बा देह के अंग-अंग की अभय बनाता है इसलिए हरड़ को अभया भी कहते हैं।
अभया यानी हरड़ बूटी कब्ज गलाकर पेट साफ करने के साथ-साथ सम्पूर्ण शरीर के मल एवं संक्रमण को पूरी तरह बाहर निकाल देता है। यह आंखों के लिए भी सर्वश्रेष्ठ है।
गाजर मुरब्बा-

नेत्र की सूक्ष्म रक्त नाड़ियों को बल देकर दर्शन शक्ति को घटाने से रोकती हैं।
घरेलू उपचार, खानपान में सुधार, प्राचीन जीवनशैली, पर्याप्त पानी, अच्छी गहरी नींद और आयुर्वेदिक दवाओं से हो सकता है फायदा।
गीले कपड़े की पट्टी आंखों पर लगाये। पलकों को बार-बार झपकाएं। दो घण्टे में 15 मिनिट के लिए स्क्रीन से दूर हट जाए।
आंखों को रसायनिक आई ड्राप से बचाएं।
आंखों में 7 दिन में एक बार फिटकरी का पानी डालें।
EYEKEY माल्ट खाएं… मिटायें आंखों की १६ बीमारियां-

कोरोना वायरस की वजह से कम दिखाई देना, लालिमा आना या लाल आंख एक या दोनों आंखों में हो सकती है इसके अनेक कारण हैं, जिनमें निम्न लक्षण सम्मिलित हैं-
आंखों में सूजन
कम दिखना
माइग्रेन आधाशीशी का दर्द
आंखों में लाली या रेडनेस
नेत्रों में थकान, तनाव
आंखों में सूखापन यानि ड्राइनेस्स
कम या साफ न दिखना
आंखों का आना यानि कंजंक्टिवाइटिस
आंखों में नमी न होना या सूखापन आना
दूर या पास का न दिखना
मोतियाबिंद की समस्या
आँखों में चिड़चिड़ाहट, किरकिरापन
आंखों में खुजली होना
आँखों में दर्द बने रहना
आंखों में निर्वहन
धुंधली दृष्टि
आँखों में बहुत पानी आना
अब दूर तक देखो.…

EYEKEY मॉल्ट की खासियत यह है कि यह आँवला मुरब्बा, हरड़ मुरब्बा, सप्तामृत लौह, गुलकन्द आदि से तैयार किया है। इसका कोई भी दुष्प्रभाव या साइड इफेक्ट [Side Effects] नहीं है। यह पूर्णतः हानिकारक प्रभाव से मुक्त है।
तीन महीने खाएं-रोग मिटायें एवं नेत्रज्योति बढ़ाएं..

Eyekey malt तीन माह तक लगातार लेने से आंखों की चमक, रोशनी में वृद्धि होती है।
आईकी माल्ट पुतलियों को गीला और साफ रखने में मदद करता है।

Eyekey Malt is an ayurvedic medicinal supplement that promotes eye health, ...
अधिकांश लोग नेत्रों की सुरक्षा के लिए रसायनिक आई ड्राप का उपयोग करते हैं। यह केवल बाहरी उपचार है। आंखों के अंदरूनी इलाज के लिए आयुर्वेद में 55 से ज्यादा द्रव्यों का वर्णन है। जैसे-
त्रिफला चूर्ण, त्रिफला मुरब्बा
त्रिफला घृत , ख़श, पुदीना,
तुलसी, गुलाब जल, ब्राह्मी,
जटामांसी, सप्तामृत लोह,
स्वर्णमाक्षिक भस्म, सेव मुरब्बा,
करौंदा मुरब्बा, गुडूची,
दारुहल्दी, गाजर मुरब्बा
त्रिफला काढ़ा, गुलकन्द
लोध्रा, मुलहठी, समुद्रफेन,
पुर्ननवा मूल, शतावरी,
नीम कोपल, अष्टवर्ग,
चोपचीनी, शहद,
स्वर्ण रोप्य भस्म-
स्वर्ण भस्म, ताम्र भस्म, लौह भस्म,
यशद भस्म, प्रवाल शंख, मुक्ति शुक्त,
सिंदूर बीज, फिटकरी भस्म, नोसादर,
कुचला, पिपरमेंट, नीलगिरी तेल, लौंग,
दालचीनी, त्रिकटु चूर्ण, जटामांसी,
कुटकुटातत्वक भस्म, वंग भस्म,
शुध्हा गूगल बच, पीपरामूल, पोदीना सत्व,
पारद भस्म, सज्जिकाक्षर, चन्दन, जीरा,
ख़श ख़श, नागकेशर ओर बहुत कम मात्रा
में बेल मुरब्बा जामुन सिरका।
पेठा, जावित्री, जायफल अनार जूस,
ब्राह्मी, शतावर, विदारीकन्द, अदरक,
मधु, इलायची, नागभस्म, ताम्र भस्म,
स्वर्णमाक्षिक भस्म ,प्रवाल भस्म
आदि 55 से अधिक ओषधियाँ नेत्र
उपरोक्त जड़ी-बूटी आई डिसीज की चिकित्सा में यपयोगी है। अमृतम ने इन सब पर गहन अध्ययन, चिंतन करके आईकी माल्ट बनाया है।
Eyekey Malt में अनेक तरह की जड़ीबूटियों के अलावा, काढ़ा, क्वाथ, रस-भस्म, मेवा, मुरब्बो का उपयोग किया है।
आई की माल्ट के चमत्कारी फायदे

तनाव, धुंधुलापन, आंख आना, आंखों में थकान, पलको में सूजन, आंखों का किरकिरापन, आंख आना, पानी आना, सूजन, जलन, मोतियाबिंद आदि सब समस्याओं से बचाता है।
आई की माल्ट लेने से नयनों की ज्योति तेज होती है। नेत्र रोग के कारण होने वाला आधाशीशी के दर्द से निजात दिलाता है।

आंखों की परेशानी दूर करने के लिए दुनिया में पहली बार खाने का अवलेह/माल्ट का निर्माण किया है। यह गाजर मुरब्बा, त्रिफला, यशद भस्म से निर्मित योग है।
कुछ घरेलू उपाय भी आराम देंगे

प्राचीन काल में नेत्र रोगों से बचने के लिए हमारे पूर्वज इन घरेलू नियम, उपायों को अपनाकर नयनसुख पाते थे। नीचे दिए तरीके कुछ लोग जानते भी होंगे
सुबह उठते ही पानी मुह में भरकर उससे आंखे धोएं।
त्रिफला चूर्ण रात को खाएं। सुबह त्रिफला पावडर से बाल व आंख धोएं।
सौंफ, धागामिश्री, बादाम समभाग मिलाकर सुबह खाली पेट लेवें।
गाजर का जूस 100 ml से ज्यादा न पियें, सर्दियों में गाजरहलुआ खाएं।
बताशे को गर्म कर यानी देशी घी में सेंककर उस पर कालीमिर्च पावडर भुरखकर खाएं खाली पेट 3 से 4 बताशे।
यशद भस्म 100 mg मधु पंचामृत या मख्खन में मिलाकर चाटे।
रोज नंगे पैर प्रातः की धूप में सुबह दुर्बा में 100 कदम उल्टे चलें।
जिस आंख में तकलीफ हो उसके विपरीत पैर के अगूंठे में सुबह 4 से 5 बजे के बीच ब्रह्म महूर्त में स्नान करके सफेद अकौआ का दूध कम मात्रा में पैर के अंगूठे के नाखून पर लगाये।
आंखों के अंदरूनी रोगों को दूर करने के लिए EYEKEY Malt दूध के साथ चार माह तक सेवन करें।
Eyekey Benefits

Eyekey Malt is an ayurvedic nutritional supplement that improves vision and eye health.
With its strong combination of Triphala, Shilajit, and Malkangani, dry eyes can be effectively treated.
These herbs enhance eyesight, balance doshas that impact vision, lessen eye redness brought on by prolonged screen usage, and shield against free radical-related eye issues.
Amalaearth, Myupchar, अमेजन, amrutam, indiamart आदि पर भी ब्लॉग देखें।
पैकिंग-400 ग्राम कीमत-₹ 1299/


उत्तर लिखा · 7/2/2023
कर्म · 1790
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आयुर्वेद में लगभग 11000 जड़ी बूटियां। एक हिसाब से देखा जाए, तो प्रथ्वी पर पाई जाने वाला एक तिनका भी ओषधि है। बस, जानकारी और उपयोग मालूम हों।
अमृतम पत्रिका, ग्वालियर से लिए गए इस लेख में फल, पुष्प और जड़ीबूटियों के बारे में बहुत ही संक्षिप्त रूप में बता रहे हैं।
जल, नीर या पानी भी एक चमत्कारिक ओषधि है।

यह अतिशयोक्ति नहीं है कि जल जिसे पंचतत्त्वों में एक मानते हैं। आयुर्वेद में जल को वरुण देवता मानकर स्तुति की गई है।
आयुर्वेद में कहा गया है कि प्रातः काल सोकर उठते ही एक गिलास शीतल जल यानि सादा पानी पीने वाला सदैव निरोगी रहता है।
सुबह उठते ही गर्म पानी पीना विष के समान है।
सादा जल मस्तिष्क को शीतल रखता है। तनाव मिटाता है और शरीर को सूजन से बचाता है।
पेट का पाचन संस्थान मजबूत तथा आंखों में चमक रहती है। शुद्ध जल मनुष्य का जीवन है, उसके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। ऋग्वेद में मंत्र है
सर्वेषाम् भेषजम अप्सुमे।

जीवनां जीवनम् जीयोजगत् ।

अर्थात हे मनुष्यो! जल प्राणियों का प्राण है। मैंने तुम्हारे लिए सभी औषधियां जल में सुरक्षित रखी हैं।
आपो इद्धां उभेष जोरायो अभीव चातकी।

आपस सर्वस्य भेषजो स्तास्तु कृष्णन्तु भेषजः।।

अर्थात यह जल औषधि है। रोगों का नाश करने वाला, रोगों का शत्रु है। यह तुम्हारे सभी रोग दूर करेगा।
अप्स्वन्तर यमृतमनु (अथर्ववेद)

अर्थात प्रातः सदा जल ग्रहण करें। जल के बारे में अधिक क्या कहना, यह जल तो अमृत है।
शंकराचार्य जी कहते हैं कि भारतवर्ष में तीर्थों में स्नान भी एक चिकित्सा है। जल के महत्व के साथ वहां स्नान का महत्व अनिवार्य रूप से जुड़ा है।
सेवती यानि गुलाब गर्मी से माथा दुखता हो जिसकी दवा है।

गरमी से माथा दूखे तो सेवती का इस तथा अतर यानि इत्र सूंघे, तो बन्द होवे सेवती/गुलाब का गुलकन्द जल के साथ लेवे।

गुलाब को संस्कृत में -- तरुणी, कुब्जक, शतपत्री। मराठी में -- सेवती, कांटे शेवती। गुजराती में–सेवती, मौसमी गुलाव और बंगला में- सेवती, गुलाब कूजा कहते हैं।

मानसिक क्लेश दूर करता है

तनाव, भारीपन, अवसाद या डिप्रेशन मिटाने के लिए गुलाब अर्थात सेवती के फूल 10 ग्राम इलायची एक नग कालीमिरच नग ७, मिसरी एक तोला या१० ग्राम घोटकर पीवे, तो सभी मानसिक विकार दाह, गरमी मिटै माथा की व्याधि मिटे स्थाई आराम होवे।
गुलकंद एक चमच में कालीमिर्च, इलायची, ब्राह्मी चूर्ण, जटामांसी मिलाकर सुबह खाली पेट सादे जल से सेवन करें, तो आधासीसी या माइग्रेन का दर्द मिटता है। एसिडिटी शांत होती है।

बाय यानि वात विकार की गरमी से माथा दूखता होवे, तो चैती (चैत्र मास में खिला) गुलाब का अतर इत्र सूंघे, तो बन्द होवे।

गोपीचन्दन और गुलाब जल ये दोनों माथे पर लगाने से नकसीर बन्द होवे।
गुलाबजल से आंख धोवे यो आंख की गरमी जड़ से मिट जाती है।
मोंगरा, वार्षिकी, मल्लिका, मुदगर के फायदे

मराठी में - मोंगरा, रानमोंगरी, सोरइ मोंगरा। गुजराती- राजमोंगरी, बल्य, चिखलयो। बंगला में- बेलफुल्लगछ, फुलेरगाछ, मल्लिकाभेद।
भरिया फूटा फोड़ा की दवा

भरिया यानि बालतोड, फ्रूटा फोड़ा होवे, तो मोंगरा का पत्ता पीस कर घृत देशी घी में मिलाके गरम करके बांधे आराम होवे।
बवासीर, फिस्टुला का इलाज

मोंगरा के 20 पत्ते, गूगल 10 ग्राम पीसकर टिकिया बनाके, 50 ग्राम देशी घी में डालकर आंच पर चढ़ावे। जब सब जल जावे, तो इसमें मोम 20 ग्राम डालकर मल्हम बनावे। पीछे उसको लगावे आराम होवे।
मोंगरा का अतर इत्र सूंघे तो मगज यानि मस्तिष्क ठंडा तर होवे।
चमेली, तलवों की जलन, दाह गरमी, मुंह में छाले की दवा।

चमेली का पान उबाल के कुल्ला करे आराम होवे मुंह का छाला मिटे।
केसा भी शरीर में दाहा गरमी या माथा की कूलन या तड़कन मिट। मुह में छाला होवे, तो चमेली का फूल तथा अतर सूघें।
चमेली का पान यानि पत्ता 25 नग, काली मिरच नग ७ इलायची नग २ मिसरी 10 ग्राम घोटकर पीवे तो आराम होवे।

दाऊदी पुष्प सूंघने से पीना का रोग दूर होता है।बेवची होवे तो दाऊदी का रस लेवे उसमें अजमोद जलाके मिलावे, घोटकर बेवची के ऊपर लगावे, बेवची जावे दिन ७तथा लगावे तो आराम होवे।

बेर के फायदे

हर माह की मासशिवरात्रि और महाशिवरात्रि को 27 बेर अर्पित करने से पुराने से पुराण बैर यानि दुश्मनी दूर होती है। एक दीपक RAAHUKEY Oil का जलाकर 7 शिवरात्रि तक करें। इससे देह के असाध्य रोग भी मिटेंगे।
बेर को संस्कृत मेंअर्कधु, काल, हस्तकोला, सांबीर कहते हैं।मराठी में बोरोचझड़ा, बोर राम, बोर। गुजराती में मोटी बोरडी, बोरडी। बंगला में वडकुलगाछ, बरुई शियाकुल।
कोलास्थिमज्जा कलकस्तु पीतोवाप्युदकेनच।

अविराद्वि निहंत्येष प्रयोगो भस्मकं नृणाम्॥

अर्थ – बेर की गुठली की मिंगी पानी में पीसकर पीवे तो भस्म रोग का नाश होता है।
बेर के बीज, लौंग और सीताफल के बीज तीनों बराबर लेकर पीसें और लेप बनाकर खोपड़ी में लगाएं, तो लीख, जुएं, रूसी में लगाएं, तो बालों की गंदगी साफ हो जाती है। बाल बढ़ते हैं।

गुलहजारी के फायदे

हिचकी चलती हो, कंठ सुरीला न हो, तो गुलेहजारी फूल और पत्ते का रस निकालकर, इस रस में रुद्राक्ष घिसकर जिव्हा पर दिन में 3 बार लगाएं।

गुलहजारी का फूल, आधा ग्राम हल्दी मिलाकर खाने से मुख दोष, मुंह की बदबू मिट जाती है।
सीताफल के फायदे

सीताफल का संस्कृत नाम आतृष्य है। बंगाली में आता कहते है।
सीताफल का बीज पेट के कीड़े, जुएं, त्वचा के रोग साफ करता है।
चेहरा गंदा हो रहा हो, तो सीताफल के बीज, नीम पत्र, मंजिष्ठा, चिरौंजी का लेप मुल्तानी मिट्टी में मिलाकर लगाकर सुखाएं। 15 दिन में निखार आएगा।

शरीर में कोई पुराना जख्म या घाव हो और उसमें कीड़े पड़ गए हों, तो सीताफल के पत्ते, इलायची के साथ पीसकर बांध देवें।
पित्त दोष की शान्ति था यकृत के कमजोरी में सीताफल हितकारी है। अरहर की दाल एवम खटाई न लेवें।
सीताफल का बीज घिसकर लगाने से गंजापन रुकता है।
बूटी के बल नामक पुरानी पुस्तक में 265 बूटियों का उल्लेख है।



उत्तर लिखा · 23/1/2023
कर्म · 1790
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कुमकुमादी तेल त्वचा के निशान और पिगमेंटेशन को करे खत्म (Diminishes Pigmentation) 



55 जड़ी बूटियों से बना कुमकुमादि तेल है त्वचा के लिए वरदान, इसके क्या हैं फायदे, घर पर कैसे करें तैयार...

कुंकुमादि तेल का फार्मूला आयुर्वेदिक ग्रंथ योग रत्नकार में लिखा मिलता है। इस तेल की खोज और अविष्कार महर्षि अंगारक ने 5000 साल साल पहले किया था।

जर्मनी की dr नैना बजरिया कुमकुमादी तेल के फायदे बता रही हैं। लिंक क्लिक कर वीडियो देखें।

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कुंकुमादि तेल चेहरे की त्वचा को निखार कर सौंदर्य वृद्धि करने में लजबाब है।

असली कुंकुमादि तेल 12 मिलीलीटर का मूल्य 1599/ रुपए के करीब होता है। इसे nykaa, amalaearth, अमेजन की वेवसाइट से मंगवा सकते हैं।

कुंकुमादि तेल केशर, चंदन, मोरबा, मंजिष्ठ, सारिवा, रक्तचंदन, पदमाष्ट, खस, गाय का दूध आदि 55 जड़ी बूटियों के मिश्रण से 30 दिन में तैयार किया जाता है।

कुंकुमादि तेल के बारे में गुगल पर लगभग 400 से ज्यादा आर्टिकल उपलब्ध हैं, जिसे पड़कर इसके फायदे जन सकते हैं।

कुमकुमादी तेल कील, मुंहासे, काले निशान, दाग धब्बे, झुर्रियां, झाइयां, ढीली स्किन आदि स्किन प्रोब्लम दूर कर बुढ़ापे से बचाता है।

रहीस, अमीर लोग कुंकुमादि तेल की पूरे शरीर में मालिश कर हमेशा जवान और तरोताजा बने रहते हैं।

मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, पूना आदि बड़े शहरों में कुंकुमादि तेल की बहुत मांग रहती है।

इसमें केसर का उपयोग होने की वजह से ही इसका नाम कुमकुमादि रखा गया है। क्योंकि संस्कृत में केसर को कुमकुम कहा जाता है।

कुंकुमादि तेल-एक लाजबाब हर्बल सनस्क्रीन सीरम है, जो सर्दी-गर्मी-बरसात तीनों मौसम में त्वचा की रक्षा कर…चेहरे पर निशान, धब्बे, झुर्री नहीं पड़ने देता।

स्किन केयर कुंकुमादि तेल रात सोने से पहले चेहरे पर लगाएं और पाएं कुदरती लाभ!!

कुंकुमादि तेलम बहुत काम और कमाल की सौंदर्य सामग्री, जो आपकी त्वचा को निखारे। इसे त्वचा पर 2/3 बून्द लगाने से चेहरा गोरा होकर चमक-दमक जाएगा।

कुंकुमादि की कहानी और किस्से…सुंदरता हमेशा से लोगों के लिए बहुमूल्य रही है।

आइये जानते हैं क्या होता है कुमकुमादि तेल।।।

क्या होता है कुमकुमादि तेल ( What is Kumkumadi Oil)

कुमकुमादि तेल के क्या हैं बड़े फायदे (What are the benefits of Kumkumadi oil)

1) चमकती त्वचा (Glowing Skin)

2) मुंहासों को करे कम (Reduces Acne)

3) पिगमेंटेशन को करे खत्म (Diminishes Pigmentation)

4) एंटी एजिंग का करे काम (Anti-Aging)

5) ईवन आउट स्किन टोन (Evens Out The Skin Tone)

घर पर बनाए कुमकुमादि तेल (Make Kumkumadi oil at home)

कुमकुमादि तेल बनाने के लिए आवश्यक सामग्री निम्न हैं।

कुमकुमादि तेल बनाने की विधि

खूबसरती दूसरों का ध्यान आकर्षित करने और खूबसूरती पाने के लिए कुंकुमादि तेल एक सरल साधन है। इसीलिए राजा-रहिसों को युवा और सुंदर बनाए रखने हेतु आयुर्वेदाचार्य महर्षि अंगारक ने इसका अविष्कार किया था।

नीचे के वीडियो में कुमकुमादी तेल पकाने और बनाने की विधि बताई जा रही है।

अमृतम कुम-कुमादि तेलम या सीरम सौन्दर्य-समृद्धि के लिए सम्पूर्ण समाधान है।

कुंकुमादि फेस ऑयल या सीरम के बारे में विशेष 27 जानकारियां पहली बार पढेंगे।

कुंकुमादि तेल कुदरती वरदान है। 27 शास्त्रों से जुटाया गया यह ज्ञान आपको मंत्रमुग्ध कर देगा यह ब्लॉग।

कुंकुमादि तेल मात्र 7 से 27 रात चेहरे पर लगाएं, तो 27 चमत्कारी फायदे देखकर हैरान हो जाएंगे।

क्योंकि कुंकुमादि तेल में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-ह्यपरपिगमेंटशन, मॉइस्चराइजर, डेमल्सेण्ट, एंटीबैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-प्रुरितिक, नेचुरल सनस्क्रीन गुण होते हैं।

कुंकुमादि तेल महंगा होने की वजह…चेहरे की सुंदरता, निखार बढ़ाने हेतु इसमें मिलाया गया चन्दन, केशर, अनंतमूल, रक्तचन्दन आदि के मिश्रण की वजह से कुम-कुमादि तेल बहुत महंगा हो जाता है। केशर के बारे में संस्कृत में अनेकों श्लोक लिखे है-

कुंकुमादि तेल चन्दन भी मिला है…

!चन्दनम् चन्द्रति आल्हादयतीति, 'चदि आह्वादे'!

अर्थात- चन्दन तन-मन को आल्हाद प्रदान करता है।

नोट-अन्य ओषधियाँ, पुस्तक चित्र अंत में देखें!!

२७ हजार शब्द मणियों से पिरोया गया यह लेख, देख आप भी लालायित हो उठेंगे-कुंकुमादि तेल के अंग का रंग, चेहरे की भंग त्वचा को तंग कर त्वचा निखारे। स्किन पर लगी जंग (कील-मुहासें) साफ करता है। इसके अतिरिक्त 27 सहयोग और भी हैं- पढेंगे, त दंग रह जाएंगे, इसे सदैव संग रखें…

दमकते-चमकते चेहरे के लिए कुंकुमादि तेल हर रोज रात को अपना चेहरा साफ करने के बाद, इसे चेहरे पर लगाकर और रात भर छोड़ दें। सुबह जब मैं आप अपना चेहरा धोएंगे, तो बहुत ताजा और पोषित महसूस करेंगे।

कुंकुमादि तेलम की निर्माण विधि जानने के लिए वीडियो लिंक क्लिक कर देखें..

केशर युक्त कुमकुमादि तेल त्वचा के लिए बेहद लाभकारी है इसके फायदे और औषधीय गुण जानकर समझ जाएंगे कि यह महंगा क्यों है….

कुंकुमादि तेल झर्रियाँ व बुढापे को रोकता है इसलिए उम्ररोधी यानी एंटीरेजिंग भी कहा जाता है।

केशर पूरे प्रेशर से त्वचा की पूरी गन्दगी बाहर निकालकर, चेहरे के कलेवर को बदल देता है। त्वचा के लिए काफी गुणकारी होता है।

कुंकुमादि में केशर का पर्याप्त समावेश है, जो प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक पदार्थ या यौगिक है, जो त्वचा के जिद्दी जीवाणु को मार डालता है ये स्किन में पैदा होने वाले अज्ञात कृमि-कीटाणुओं को नष्ट कर, इनके विकास को रोकता है।

कुंकुमादि तेल लटकती ढ़ीली त्वचा, झुर्रियां, बुढापे के लक्षण आदि समस्याओं का स्थाई हल है।

सदियों में या किसी भी मौसम में हाइपरपिगमेंटेशन के लिए यह तेल काफी लाभदायी माना गया है। इसके बारे में लेख के अंत में पढ़ें।

कुंकुमादि तेल क्षतिग्रस्त त्वचा तथा रोम-रोम की मरम्मत करने में सहायक है…

त्वचा अस्वस्थ होने से बचाये।

त्वचा को कोमल, मुलायम और ग्लोइंग बनाएं।

जगमगाता गोरापन लाए।

चेहरे की चमक, सुंदरता बढ़ाये।

ऑयल कंट्रोल करे

खोया निखार वापस लाये

दाग-धब्बों, कील-मुहासें जड़ से मिटायें।

झुर्रियां कम कर, स्किन को बेहतर रंगत दे,

खूबसूरती व आत्मविश्वास बढ़ाये।

अमृतम कुंकुमादि तेल एक प्राचीन सौंदर्य उपचार त्वचा को हमेशा जवां और चमकदार बनाए रखता है।

त्वचा की महीन रेखाओं और झुर्रियों को भी कम करता है।

बदसूरती की क्रूरता से छुटकारा पाने के लिए अमृतम कुंकुमादि तेल एक चमत्कारी सौंदर्य उत्पाद है। इसे रात का जादू भी बोलते हैं।

बहुमुल्य अमृतम कुंकुमादि फेस ऑयल रात्रि सोते समय लगाने से सुबह सभी दाग-धब्बे, काले निशान, झुर्रियां दिखाई नहीं देते।

कुंकुमादि तेल त्वचा की अंदरूनी गन्दगी को साफ कर देता है।

अमृतम कुंकुमादि तेल अपने चेहरे पर लगाने के बाद गर्व महसूस करेंगे। 1 से 2 माह में ये इतनी खूबसूरती प्रदान करता है कि वापरने वालों को खुद के निखार पर अहंकार होने लगता है।

कुमकुमादि तेलम आयुर्वेद का एक अद्भुत आयुर्वेदिक हर्बल मिश्रण है, जो फेस स्किन की सुरक्षा और त्वचा की विभिन्न समस्याओं के उपचार के लिए एक जादुई इलाज के रूप में कार्य करता है।

कुंकुमादि तेलम मॉइस्चराइजर के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। विशेषकर संवेदनशील या रूखी/शुष्क परतदार त्वचा के लिए लगभग सभी प्रकार की त्वचा के लिए उपयुक्त है।

कुंकुमादि तेल का निर्माण पौधे, जड़ी-बूटी, फल और दूध का अर्क का एक बेहतरीन मिश्रण, इस तेलम या तेल को स्वस्थ बनाता है।

कुमकुमादि तेल चेहरे पर क्यों लगाते हैं?…उम्रदराज़ त्वचा के लिए वरदान यह आयुर्वेदिक चमत्कारी तेल चेहरे की त्वचा रक्षा तथा सम्पूर्ण रूप से देखभाल कर आपकी स्किन को उज्ज्वलता लाता है और आपके रंग में सुधार कर निखारता है।

कुमकुमादि तैलम में मुख्य घटक-द्रव्यों में शुद्ध केसर, मंजिष्ठा, चन्दन, रक्त चंदन, पदम् काष्ठ आदि कीमती और सुंदरता बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियाँ होती हैं, जो आपको सही सुनहरी चमकती त्वचा और उम्र बढ़ने के संकेतों को कम करती हैं।

कुमकुमादि सीरम के न केवल असंख्य चिकित्सीय लाभ हैं, बल्कि यह एक उत्कृष्ट क्लींजर के रूप में भी कार्य करता है।

हमारे सभी उत्पादों में प्राकृतिक तत्व होते हैं और इसलिए रंग और सुगंध प्रभावशीलता को खोए बिना भिन्न हो सकते हैं।

हमारे उत्पादों का रंग प्राकृतिक अवयवों से है, इसलिए यह समय के साथ थोड़ा बदल सकता है - हालांकि उत्पाद की प्रभावकारिता में कोई फर्क नहीं आता है यानि अपरिवर्तित रहती है।

हमारे उत्पाद हानिकारक रसायनों से मुक्त हैं।

यह भारत की 5000 वर्ष पुरानी चिकित्सा पध्दति के मुताबिक निर्मित है। हमें गर्व है- मेड इन इंडिया होने का।

अमृतम कुंकुमादि तेल पूरी तरह से खरीदने लायक है। नीचे वीडियो की लिंक क्लिक कर देखें कि स्किन के लिए कितना मददगार है-कुंकुमादि तेल

उत्पाद को ठंडी और सूखी जगह पर स्टोर करें।

कुंकुमादि तेलम लगाने का सही तरीका…..

योग रत्नाकर आयुर्वेदिक ग्रन्थानुसार रात को सोने से पहले अपना चेहरा अमृतम फेस वॉश या अमृतम फेस क्लीनअप से साफ कर लें।

अपनी त्वचा को किसी शुद्ध गुलाब जल या किसी टोनर से गीला करें।

अपनी हथेली पर अमृतम कुमकुमदि तैलम की 2-3 बूंदें लें।

धीरे से इसे अपने चेहरे पर फैलाएं, त्वचा पर ऊपर की ओर स्ट्रोक का उपयोग करके धीरे से मालिश करें, ताकि तेल त्वचा में गहराई से समा जाए।

सोने से पहले तेल को लगभग 15-20 मिनट तक हवा में सूखने दें।

उत्पादों की सुगंध प्राकृतिक अवयवों से मिलती है। हम कोई कृत्रिम सुगंध नहीं जोड़ते हैं।

कुंकुमादि तेलम/सीरम 5000 पुरानी खोज…

आयुर्वेद की पुरानी परंपरा और प्राचीनता के तहत-कुंकुमादि तेल के फार्मूले की खोज लाखों-हजारों साल पहले आयुर्वेदिक वैज्ञानिक महर्षि अंगारक ने की थी।

योगरत्नाकर

भावप्रकाश

अर्कप्रकाश,

स्कन्दः पुराण,

ईश्वरोउपनिषद,

आदि दुर्लभ पुस्तकों से पता लगता है कि- इसका उपयोग कोमल, निखरती त्वचा और चेहरे को चमकदार बनाने एवं खूबसूरती के लिए किया जाता रहा है।

राजा-रजवाड़ों, रानी-पटरानी, महारानी की पसन्द और के महंगे शौक–कुंकुमादि फेस ऑयल का उपयोग प्राचीनकाल से होता आ रहा है। यह बहुत बहुमूल्य होने के कारण इसे केवल धनशाली एवं अमीर-रहीस लोग ही इसका इस्तेमाल करते थे।

कुंकुमादि तेल लगातार लगाने से त्वचा के काले धब्बे, काले घेरे, निशान, पिगमेंटेशन तथा चेहरे पर होने वाली अन्य समस्याओं से भी निजात दिलाता है।

क्‍यों होता है पिगमेंटेशन….इस समय दुषित जलवायु, प्रदूषण से पनपती जहरीली आवो-हवा की वजह से पूरे विश्व के युवा स्त्री-पुरुषों को त्‍वचा संबंधी इस समस्‍या का सामना करना पड़ रहा है।

पिगमेंटेशन या हायपरपिगमेंटेशन त्‍वचा की एक सामान्‍य समस्‍या है। जो प्रदूषण और प्रदुषित वातावरण के चलते 10 में से 7 महिला या मर्द चेहरे की स्किन खराब होने के भय से पीड़ित है।

पिगमेंटेशन/हायपरपिगमेंटेशन…में त्‍वचा का कोई-कोई भाग सामान्‍य से गहरा रंग का होकर, त्‍वचा पर दाग-धब्‍बे पड़ने लगते हैं। जिससे सुन्दरता क्षीण हो जाती है। त्वचा में यह समस्या त्‍वचा में मेलानिन का स्‍तर बढ़ने से होती है।

शास्त्रों ने सुझाया, तो बनाया कुंकुमादि तेल….. आयुर्वेदिक फार्माकोपिया ऑफ इंडिया (AFI) के मुताबिक यह चेहरे पर निखार लाने और खूबसूरती बढ़ाने के लिए अत्यंत कारगर बहुमूल्य तेल है।

कुम-कुमादि तेलम का फार्मूला आयुर्वेद के अति प्राचीन ग्रन्थ “योगरत्नाकर” के क्षुद्ररोगाधिकार तथा चरक सहिंता के त्वचा रोगाधिकार और भैषज्य रत्नाकर के “सुन्दरता वृद्धि योग” से लिया गया है। आयुर्वेदिक फार्मूलेशन ऑफ इंडिया भारत सरकार द्वारा मान्य आयुर्वेद की सबसे विश्वसनीय पुस्तक है।

कुंकुमादि तेल में केशर यानि कुमकुम मुख्य घटक है। सैफरॉन से निर्मित कुंकुमादि के फार्मूले का संस्कृत में एक श्लोक लिखा है-

कुंकुम चन्दनं लोध्रं पतंग रक्तचन्दनम् !

कालियकमुशीरं च मजिंष्ठा मधुयष्टिका !!१!!

पत्रकं पद्मकं पद्मकुष्ठं गोरोचनं निशा !

लाक्षा दारूहरिद्रा च गैरिकं नागकेशरम् !!२!!

पलाशकुसुमं चापि प्रियंगगुश्च वटाअंकुरा !

मालती च मधूच्छिष्टम सर्षपा: सुरभिवर्चा !!३!!

अर्थात–केसर-कुमकुम, नागकेशर, चंदन, लोध्रं, पतंग काष्ठ, रक्त चन्दन, लाख (लाक्षा), मंजिष्ठा-अनंतमूल, यष्टिमधु (मुलेठी), दारुहल्दी, उशीर, पद्मक, नील कमल, बरगद (वट वृक्ष), पाकड़/पाखर छाल, कमल केसर, बिल्व (बेलफल का गूदा)अग्निमंथ, श्योनाक, गंभारी, पाटला, वटअंकुर, पलाश, प्रियंगुमंजरी, शालपर्णी पृश्नपर्णी , गोखरू (गोक्षुर) बृहती, कंटकारी या भटकटैया, मालती और शुद्ध मधु-शहद आदि।

5000 वर्ष पुराने आयुर्वेदिक ग्रंथो के अनुसार अमृतम कुंकुमादि तेल में मिलाए गए, 35 से ज्यादा उपरोक्त घटक द्रव का समावेश है, जो त्वचा की क्षतिग्रस्त, सूक्ष्म कोशिकाओं की मरम्मत करने में विशेष उपयोगी हैं–

कुंकुमादि तेल इन महंगी जड़ीबूटियों के काढ़े से 40 से 50 दिन में तैयार होता है। इसके निर्माण की प्रक्रिया बहुत जटिल और श्रमसाध्य है।

कुंकुमादि तेलम/सीरम बनाने की विधि.. उपरोक्त सभी जड़ीबूटियों को जौकुट करके 16 गुने पानी में 24 से 36 घण्टे तक गलकर छोड़ दिया जाता है।

तत्पश्चात 5 से 7 दिनों तक मंद अग्नि पर इसको 1/4 भाग काढ़ा रहने तक उबालते हैं। इसके बाद ठंडा होने पर छानकर काढ़े को 15 के 20 दिन तक मंदी आंच पर तिली आदि तेलों में पकाकर, जैतून, बादाम, मालकांगनी मिलाकर अमृतम कुमकुमादि तेल 45 दिनों में तैयार हो पाता है।

कुमकुमादि तेल की विशेषताऐं…देह में प्रतिजैविक रोगाणुरोधी यौगिकों का व्यापक समूह होता है, जिसका उपयोग कवक और प्रोटोजोआ सहित सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जाने वाले जीवाणुओं के कारण हुए संक्रमण के इलाज के लिए होता है।


कुंकुमादि तेलम/सीरम में

★ एंटीऑक्सीडेंट,

★ एंटी-ह्यपरपिगमेंटशन,

★ मॉइस्चराइजर,

★ डेमल्सेण्ट,

★ एंटीबैक्टीरियल,

★ एंटी-इंफ्लेमेटरी,

★ एंटी-माइक्रोबियल,

★ एंटी-प्रुरितिक,

★ कुदरती व नेचुरल सनस्क्रीन गुण होते हैं।

अमृतम कुमकुमादि तेल पुराने से पुराने कील-मुंहासे, झुर्रियां, दाग-धब्बे, कालापन एवं चेहरे की समस्याओं से पीड़ित स्त्री-पुरुषों के लिए अति उत्तम आयुर्वेदिक ओषधि है।

कुंकुमादि तेल पूर्णतः हानिरहित, बिना साइड इफ़ेक्ट के एक प्राकृतिक त्वचानिखार उपचार है।

कैसे, क्यों चली जाती है-चेहरे की चमक...आयुर्वेद के अनुसार– तन में तनिक सी विटामिन्स की कमी, चेहरे के निखारने, मेकअप या खूबसूरत बनाके लिए सिंथेटिक तथा निम्न दर्जे के उत्पादों का उपयोग, और अधूरी नींद, कब्ज, अपचन, मानसिक अशांति, हार्मोनल चेंजेज आदि अनेक वजहों से चेहरे की त्वचा फीकी पड़ने लगती है।

खाल खत्म हो जाती है, केमिकल्स की क्रूरता से... बिना जांचे-परखे केमिकल युक्त पदार्थ के इस्तेमाल करने के फलस्वरूप धीरे-धीरे फेस पर फुंसियां, कील-मुँहासे, काले धब्बे, झुर्रियां, होने से चेहरा निस्तेज हो जाता है। कम उम्र में आकर्षण कम होकर बुढ़ापे के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।

त्वचा की समस्त समस्याओं से बचने के लिए आयुर्वेद में हानिरहित अनेकों उपाय लिखे हैं। जिसमें कुंकुमादि तेल बहुत ही बहुमूल्य ओषधि है।

अमृतम द्वारा निर्मित कुमकुमादि तेल, जो केशर आदि 35 जड़ीबूटियों के रस तथा काढ़े से निर्मित है। बस इसे सुबह स्नान के पहले या पश्चात और रात सोने से पहले 2 से से 3 बून्द एक माह तक निरन्तर लगाना है।

सभी मौसम में कारगर-कुंकुमादि तेल…अत्यधिक ठंड के मौसम में त्वचा सूखी और बेजान Dry skin हो जाती है या गर्मी के गर्म मौसम का सर्वाधिक खराब असर हमारी त्वचा/स्किन पर होता है। इसकी उचित देखभाल एवं बेहतरीन ट्रीटमेंट के लिए कुंकुमादि तेल सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा है।

कुंकुमादि तेल से मालिश करें, तो शरीर का होगा कायाकल्प… यदि आप अधिक धन व्यय कर सकें, तो एक महीने पूरे शरीर में एक बार में 25 से 30 मि.ली. लगाकर अभ्यंग मालिश कर सकते हैं।

कुंकुमादि तेल की मालिश से लाभ…क्या होंगे-….

इसकी मालिश से त्वचा की सारी सूक्ष्म गन्दगी बाहर निकल जाती है।

कुछ ही दिनों में चेहरे पर खूबसूरती का एहसास आप स्वयं करने लगेंगे।

कुमकुमादि तेल पूर्णतः साइड इफ़ेक्ट रहित हर्बल ऑयल है।

आयुर्वेद टेक्स्टबुक के मुताबिक इसके हजारों साइड बेनिफिट हैं।

कुंकुमादि तेल बुढ़ापे से बचाये-समृद्धि बढ़ाये….बुढ़ापे से बचने के लिए प्रत्येक शुक्रवार को पूरे शरीर की मालिश करने से विशेष भाग्योदय भी होने लगता है।क्योंकि भौतिक सम्पदा के दाता शुक्र ग्रह हैं, जो इस बहुमूल्य तेलम के अभ्यङ्ग से बहुत प्रसन्न होते हैं। यह प्रयोग भी एक बार आजमा कर देखें।

सम्मोहन शक्ति वृद्धिकारक कुंकुमादि तेल… बड़े-बड़े महात्मा, सन्त, अवधूत कुंकुम यानि केशर को घिसे हुए चन्दन में अच्छी तरह फेंटकर इसका लेप का माथे पर त्रिपुण्ड या टीका लगाते हैं, जिससे उनमें विशेष आकर्षण आने लगता है।

शिव रहस्योपनिषद और भविष्यपुराण के तिलक-टीका अध्याय में सम्मोहन विद्या प्राप्ति के कुछ दुर्लभ प्रयोग बताये गये हैं।

अमृतम “कुमकुमादि तेलम” के कुदरती फायदे…

कुंकुमादि तेल के नियमित उपयोग से आंखों की रोशनी भी बढ़ सकती है।

ढ़ीली त्वचा टाइट हो जाती है।

कुंकुमादि तेल में मूल घटक केसर है, जिसका आयुर्वेद शास्त्र, चरक सहिंता, ऋग्वेद आदि में इसके आलौकिक औषधीय गुणों और अद्भुत विशेषताओं का वर्णन किया है। बताया गया है कि-

त्वचा को निखारने के लिए केशर के मुकाबले सृष्टि में अन्य कोई दूसरी ओषधि है ही नहीं।

केशर शरीर के सभी अवयवों, नाड़ियों एवं त्वचा की देखभाल, पोषण, रक्षण तथा सौन्दर्यवर्धन के लिए प्रतिपादित किया गया है।

कुंकुमादि तेल लगाने से त्वचा पर केश के पास में होने वाला कालापन दूर होकर त्वचा सतेज, सुन्दर, खूबसूरत और चमकदार लगती है।

कील-मुँहासे, पिम्पल्स, आंखों के नीचे के काले निशान जड़ से मिटाता है।

आयुर्वेद में इसे अत्यंत उपयोगी माना है। जिनके चेहरे पर बड़े मस्से हों, तिल हो, दाग हों ओंठ अटपटे या मोटे हों इन सब खामियों को कम कर वर्ण को निखारकर और रंग साफ करता है।

कुंकुमादि तेल चेहरे की गौरा बनाने में सहायक है।

कुंकुमादि तेल त्वचा को चमकाता है और निखार लाता है। यह हाइपरपिग्मेंटेशन रंग बदलने में सहायक है।

कुंकुमादि तेल रासायनिक आधारित क्रीम की तुलना में त्वचा के लिए बहुत ही फायदेमद है।

कुंकुमादि तेल आयुर्वेद का एक उत्तम प्रोडक्ट है और इसका हमारे चेहरे पर कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होता है।

कुंकुमादि तेल शुष्क या रूखी त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसे हम मॉइशर के तोर पर भी उपयोग में लाते है।

कुंकुमादि तेल त्वचा से सबंधित सभी रोगो को ख़त्म करता है।

कुंकुमादि तेल चेहरे के ऊपर से काले धब्बे और आखो के नीचे होने वाले काले घेरे को ख़त्म करने का काम करता है।

मुँहासे मिटाने में भी कुंकुमादि तेल का उपयोग किया जाता है।

पित्तदोष एवं संक्रमण नाशक कुंकुमादि तेलम…इस तेल का उपयोग नाक के लिए भी किया जाता है। नाक में इसके ३-४ बून्द डालने पर पित्त को ठीक कर संक्रमण दूर करता है।

कुंकुमादि तेल को त्वचा पर लगाने से उसकी कोशिका निकल जाती है। जिससे चेहरा चमकता है।

इस तेल को चेहरे पर लगाने से झुर्रियां साफ हो जाती है।

कुंकुमादि तेल चेहरे पर मालिश करने से रक्तसंचार यानि ब्लड सर्कुलेशन ठीक हो जाता है।

कुंकुमादि तेल त्वचा में होने वाली सूजन को रोकता है।

कुंकुमादि तेल मस्से मिटाता है।

कुंकुमादि तेल का उपयोग घाव के निशान, चकत्ते को ठीक करने के लिए भी किया जाता है।

कुंकुमादि तेल सदियों से एक बेहतरीन सौंदर्य या ब्यूटी उत्पाद है।

कुंकुमादि तेल के नुकसान/ साइड इफ़ेक्ट…कुंकुमादि तेल का उपयोग करने से त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता। जो लोग ज्यादा रसायनिक/केमिकल युक्त क्रीम का उपयोग करते हैं, उन्हें कुछ समय के लिए चेहरे पर खुजली होना, गाल पर लाल चकत्ते हो सकते हैं। लेकिन धैर्य और विश्वास के साथ लगाते रहें। कुंकुमादि तेलम के इस्तेमाल से आप सदा के लिए खुश रह सकते हैं।

शरीर में रक्त सम्बन्धी दोष हों या खून की खराबी हो, तो स्किन की माल्ट एक महीने जल या दूध से सेवन करें।

आयुर्वेद हमें सेहत सम्बन्धी अनेक तरह की तकलीफों से बचाता है। कुंकुमादि तेल का उपयोग केवल बाहरी यूज़ के लिए किया जाता है।

पैकिंग- 12 मिलीलीटर कांच की बोतल में

मूल्य- ₹ 1599/–






उत्तर लिखा · 15/12/2022
कर्म · 1790
0

आयुर्वेद निश्चित रूप से एक विज्ञान है। इसे विज्ञान इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह प्रकृति के नियमों, सिद्धांतों और अनुभवों पर आधारित है। आयुर्वेद, जिसे "जीवन का विज्ञान" भी कहा जाता है, हजारों वर्षों से स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किया जा रहा है।

यहां कुछ कारण दिए गए हैं कि आयुर्वेद को विज्ञान क्यों माना जाता है:

  • सिद्धांत और अवधारणाएं: आयुर्वेद त्रिदोष (वात, पित्त, कफ), पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) जैसे सिद्धांतों पर आधारित है, जो शरीर और ब्रह्मांड की संरचना और कार्यों को समझाते हैं।
  • निदान और उपचार: आयुर्वेद में रोगों का निदान नाड़ी परीक्षण, शारीरिक परीक्षण और रोगी के इतिहास के माध्यम से किया जाता है। उपचार में आहार, जीवनशैली में बदलाव, जड़ी-बूटियाँ, योग और पंचकर्म (शोधन चिकित्सा) शामिल हैं।
  • अनुभवजन्य साक्ष्य: आयुर्वेद के सिद्धांतों और उपचारों का प्रभाव हजारों वर्षों के अनुभव और अवलोकन पर आधारित है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान: आधुनिक विज्ञान भी आयुर्वेद के कई पहलुओं का समर्थन करता है। जड़ी-बूटियों के औषधीय गुणों और आयुर्वेदिक उपचारों के प्रभाव पर वैज्ञानिक अध्ययन किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, हल्दी में मौजूद करक्यूमिन के सूजन-रोधी गुणों पर कई शोध हुए हैं (स्रोत)।

हालांकि आयुर्वेद आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से अलग है, लेकिन यह एक व्यवस्थित और तर्कसंगत प्रणाली है जो स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक सिद्धांतों का उपयोग करती है।

उत्तर लिखा · 14/3/2025
कर्म · 320
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सभी कम्पनियों के अपने-अपने स्वानुभूत यानी पेटेंट फार्मूले होते हैं। यह कम्पनियों के स्वयं का अनुसन्धान होता है। जिसमें अल्प ही उत्पाद असरदार हैं। आयुर्वेद में कम्पनियां सभी अच्छी हैं।
आपको किस कम्पनी के किस प्रोडक्ट से ज्यादा लाभ हो रहा है। यह महत्वपूर्ण है। अपने धूतपापेश्वर का नाम नहीं लिखा। यह कम्पनी भी के उत्पाद भी अत्यंत लाभकारी हैं।
आयुर्वेद की शिथिलता….दवा के क्षेत्र में खोज, रोज हो, तभी दवाएं कारगर होती हैं। देश में उपरोक्त सभी कम्पनियां 80 से 100 वर्ष पुरानी हैं और इनके फार्मूले भी उसी जमाने के हैं, जब बीमारियां कम ही फैलती थी। उस वक्त लोगों में रोगप्रतिरोधक क्षमता पर्याप्त होती थी। आजकल परिस्थितियों में बदलाव आया है। अब नई खोज, हर रोज जरूरी है।
वर्तमान में कुछ हर्बल ब्रांडों ने अपने तुरन्त असरदायक प्रोडक्ट के कारण दुनिया में अपनी धाक जमाई है।

अमृतम कम्पनी की शुरुआत हालांकि 2006–07 में हुई, परन्तु अपनी अदभुत आयुर्वेदिक औषधियों के कारण पूरी दुनिया में एक विश्वसनीय ब्रांड बन चुका है।
बहुत ही कम समय में सम्पूर्ण भारत के साथ-साथ 45 से भी अधिक देशों में अमृतम हर्बल मेडिसिन निर्यात की जा रही है।
अमृतम द्वारा सभी रोगों हेतु अवलेह अर्थात माल्ट का निर्माण किया है। यह आयुर्वेद की 5000 वर्ष पुरानी चिकित्सा विधि है।

अमृतम के बारे में विशेष जानकारी लेने के लिए amrutam की वेबसाइट देखें।

आयुर्वेद के नियमानुसार देह में त्रिदोष के प्रकोपित होने से अनेक त्वचा रोग पनपने लगते हैं। अतः त्रिदोष की चिकित्सा जरूरी है।

असन्तुलित वात-पित्त-कफ अर्थात त्रिदोषों की जांच स्वयं अपने से करने के लिए यह अंग्रेजी की किताब आयुर्वेदा लाइफ स्टाइल


आपकी बहुत मदद करेगी। इसमें उपाय भी बताएं। अपनी लाइफ स्टाइल बदल कर सदैव स्वस्थ्य रह सकते हैं। केवल ऑनलाइन उपलब्ध है- सर्च करें-amrutam

अमृतम ग्लोबल की वेबसाइट पर सर्च करके आप आयुर्वेद के जाने-माने योग्य स्त्री-पुरुष रोग विशेषज्ञ आदि चिकित्सकों से ऑनलाइन सलाह ले सकते हैं।


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उत्तर लिखा · 25/11/2022
कर्म · 1790
0
नारी नर्क की तरफ जा रही है

वर्तमान दूषित युग के वातावरण में यूं तो सौंदर्य की दौड़ में आज की नारी प्राचीन भारतीय नारी से तथाकथित रूप में आगे है, मगर सचाई तो यह है कि अब वह आत्मघाती-सौंदर्य की उपासना में बेतहाशा दौड़ रही है। 

विविध रसायनिक परफ्यूम, पाउडर, केमिकल से निर्मित लिपस्टिक, बेतरतीब ढंग से की गयी डाइटिंग, नींबू-पानी, योग, लाइट सूप एवं सलाद के अभिनव प्रयोगों से क्या वह नैसर्गिक एवं संतुलित सौंदर्याभिवर्धन करने में समर्थ हो रही है।

नैसर्गिक सौंदर्य प्रसाधनों से निरंतर बढ़ती हुई दूरियों के कारण उसका स्वास्थ्य एवं सौंदर्य दोनों चरमरा रहे हैं। भारतीय परिवेश में हल्दी, चंदन, गुलाब जल, केवड़ा-जल, मेंहदी का महत्त्व नकार पाना कदाचित असंभव ही है।


अगर अंदर और बाहर दोनों ओर से खूबसूरत बना चाहते हैं, तो इस आर्टिकल के अनुसार जीवनशेली अपनाएं।

प्राचीन काल में प्रत्येक नारी अपने घर में दशमूल क्वाथ, अशोक छाल का काढ़ा, शतावर, अश्वगंधा, त्रिफला चूर्ण आदि हमेशा रखती थी और सप्ताह में 2 से 3 बार उपयोग कर 60 साल की आयु तक स्वस्थ्य रहती थी।

स्मरण होगा पूर्व समय में 50 वर्ष की आयु तक की महिलाएं गर्भवती हो जाती थी और 60 से पहले मासिक धर्म या माहवारी नहीं रुकती थी। ये सब खानपान के ज्ञान के कारण संभव था।

आयुर्वेद महर्षि शांगर्धर ने योग रत्नाकर ग्रंथ में सुंदरता वृद्धि के लिए उबटन और कुमकुमादि तेलम की महिमा इस प्रकार बतलायी है
सुंदरता, खूबसूरती की चिन्ता को मिटाएगा यह लेख

प्राचीन भारतीय परिवेश में युवतियां 'उबटन (उद्धर्वन) का महत्त्व भली-भांति जानती थीं, फलस्वरूप वे 'तन्वंगी' हुआ करती थीं।


'उद्धर्तनं कफहरं भेदसः प्रविलायनम्।
 स्थिरीकरणमंगानां त्वक्प्रसादकरं परम्॥

अर्थात उबटन कफ को हरता है, मेद (मोटापन) को घटाता है, अंगों को स्थिर (सबल) बनाता है और त्वचा को अत्यंत कांतियुक्त खूबसूरत बनाता है।


आयुर्वेद के हिसाब से महिला 60 साल तक बुद्धि नहीं होती और न ही मेनोपॉज की शिकायत होती है। जाने केसे?

आयुर्वेद के सिद्ध ऋषि-महर्षियों द्वारा हजारों वर्ष पूर्व प्रणीत हमारी स्वदेशी चिकित्सा पद्धति 'आयुर्वेद' के ग्रंथों में भी सौंदर्य प्रसाधनों का यत्र-तत्र उल्लेख मिलता है। 

प्राचीन भारत में चेहरे का सौंदर्य बरकरार रखने तथा उत्पन्न हुई विकृतियों को दूर करने के लिए चिकित्सा व्यवस्था भी सुलभ थी।

चेहरे को चमकाने वाले प्राकृतिक घटक द्रव्य
 युवतियां चेहरे की झाइयों को दूर करने के लिए सरसों, वच, लोध व सैंधा नमक का लेप तथा सफेद घोड़े के खुर की भस्म, आक का दूध, हल्दी तथा मक्खन का लेप किया करती थी। 

मुंहासे मिटाने का घरेलू तरीका

मुंहासों के निवारणार्थ लोध, धनिया, वच, गोरोचन तथा मरिच का लेप प्रचलित था।

प्राचीन भारतीय रूपसियों के सौंदर्य प्रसाधन अनूठे रहे हैं; इस आधार पर उनके अप्रतिम सौंदर्य की कल्पना की जा सकती है। 

प्रसंगवश यहां पर यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि हमारे पूर्वजों और महिलाओं को सौंदर्य प्रसाधनों का सांगोपांग महत्त्व ज्ञात था।

पुष्पों, वस्त्रों व रत्नों को धारण करने से जीवाणुओं का संक्रमण न होने का तथ्य आयुर्वेदाचार्य वाग्भट ने प्रतिपादित किया था। 

 'चंदन' का अंगराग बनाते समय उसमें सुगंध के लिए अन्यान्य द्रव्य भी मिलाये जाते थे ।

आज के सौंदर्य प्रसाधनों के प्रति हमारी ज्ञान-शून्यता जैसी स्थिति, प्राचीन भारतीय परिवेश में नहीं थी। नैसर्गिक प्रसाधनों से लाभ ही लाभ मिलते थे, इतने दुष्प्रभाव भी नहीं होते थे। क्योंकि उस काल में सारी सौंदर्य चिकित्सा मानवता आधारित थी।

झड़ते, टूटते बालों की चिकित्सा
केशवर्धनार्थ गोखरू, तिल के पुष्प एवं घृत का 
लेप करने का प्रचलन था।

क्रीड़ा करती युवतियों के श्रंगार
सुंदर दिखने का मोह किसे नहीं है? श्रृंगार के प्रेरक कामदेव की कामवासना के प्रभाव से स्त्री -पुरुष, तो क्या, प्रकृति भी नहीं बच पाती? 

वह भी समय-समय पर रंग-बिरंगे पुष्पों से अपना श्रृंगार करती है। श्रृंगार के लिए आवश्यकता होती है, प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य-प्रसाधनों की। 

यूं तो आज तरह-तरह के क्रीम-पाउडर, फेस-पेक, लिपस्टिक, गजरे इत्यादि अन्यान्य सौंदर्य प्रसाधक सामग्री से दुनिया का बाजार भरा है।

ऑनलाइन ब्रांडों की भरमार है। लेकिन चेहरा पोतने से महंगी क्रीम लगाने से खूबसूरती नहीं बढ़ने वाली

महिलाओं को अंदरूनी इलाज भी जरूरी हैं। क्योंकि आज सोम रोग यानि पीसीओडी अथवा पीसीओएस, श्वेत, रक्त प्रदर और लिकोरिया जैसे गुप्त रोग से 10 में से 5 महिला जूझ रही हैं। 

यह रखें सुंदरता ऊपर से नहीं अंदरूनी अंगों के स्वस्थ्य रहने से आयेगी। 

 आज मार्केट में उपलब्ध सभी सौंदर्य उत्पाद खतरनाक रसायनिक विधि से निर्मित हो रहे हैं, जो शुरू में, तो सुंदरता का सुरूर चढ़ा देते हैं और बाद में 

चेहरा बर्बाद कर हीनभावना ग्रस्त कर देते हैं। 

प्राचीन भारत में भी सौंदर्य प्रसाधनों की कोई कमी नहीं थी और हमारा प्राचीन सौंदर्य प्रसाधनों का ज्ञान आज से कहीं अधिक पल्लवित पुष्पित था।

महाकवि कालिदास के 'मेघदूत' में वर्णित सौंदर्य प्रसाधन विशेष उल्लेखनीय हैं। कालिदास काल में स्त्री व पुरुषों का श्रृंगार पुष्पों के बिना पूर्णता प्राप्त नहीं करता था।

 स्त्रियां रंग-बिरंगे पुष्पों व पत्तों के दलों, महावर इत्यादि प्रसाधन द्रव्यों का उपयोग किया करती थीं।


उत्तर लिखा · 26/9/2022
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