आयुर्वेद
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नारी नर्क की तरफ जा रही है
वर्तमान दूषित युग के वातावरण में यूं तो सौंदर्य की दौड़ में आज की नारी प्राचीन भारतीय नारी से तथाकथित रूप में आगे है, मगर सचाई तो यह है कि अब वह आत्मघाती-सौंदर्य की उपासना में बेतहाशा दौड़ रही है।
विविध रसायनिक परफ्यूम, पाउडर, केमिकल से निर्मित लिपस्टिक, बेतरतीब ढंग से की गयी डाइटिंग, नींबू-पानी, योग, लाइट सूप एवं सलाद के अभिनव प्रयोगों से क्या वह नैसर्गिक एवं संतुलित सौंदर्याभिवर्धन करने में समर्थ हो रही है।
नैसर्गिक सौंदर्य प्रसाधनों से निरंतर बढ़ती हुई दूरियों के कारण उसका स्वास्थ्य एवं सौंदर्य दोनों चरमरा रहे हैं। भारतीय परिवेश में हल्दी, चंदन, गुलाब जल, केवड़ा-जल, मेंहदी का महत्त्व नकार पाना कदाचित असंभव ही है।
प्राचीन काल में प्रत्येक नारी अपने घर में दशमूल क्वाथ, अशोक छाल का काढ़ा, शतावर, अश्वगंधा, त्रिफला चूर्ण आदि हमेशा रखती थी और सप्ताह में 2 से 3 बार उपयोग कर 60 साल की आयु तक स्वस्थ्य रहती थी।
स्मरण होगा पूर्व समय में 50 वर्ष की आयु तक की महिलाएं गर्भवती हो जाती थी और 60 से पहले मासिक धर्म या माहवारी नहीं रुकती थी। ये सब खानपान के ज्ञान के कारण संभव था।
आयुर्वेद महर्षि शांगर्धर ने योग रत्नाकर ग्रंथ में सुंदरता वृद्धि के लिए उबटन और कुमकुमादि तेलम की महिमा इस प्रकार बतलायी है
सुंदरता, खूबसूरती की चिन्ता को मिटाएगा यह लेख
प्राचीन भारतीय परिवेश में युवतियां 'उबटन (उद्धर्वन) का महत्त्व भली-भांति जानती थीं, फलस्वरूप वे 'तन्वंगी' हुआ करती थीं।
'उद्धर्तनं कफहरं भेदसः प्रविलायनम्।
स्थिरीकरणमंगानां त्वक्प्रसादकरं परम्॥
अर्थात उबटन कफ को हरता है, मेद (मोटापन) को घटाता है, अंगों को स्थिर (सबल) बनाता है और त्वचा को अत्यंत कांतियुक्त खूबसूरत बनाता है।
आयुर्वेद के हिसाब से महिला 60 साल तक बुद्धि नहीं होती और न ही मेनोपॉज की शिकायत होती है। जाने केसे?
आयुर्वेद के सिद्ध ऋषि-महर्षियों द्वारा हजारों वर्ष पूर्व प्रणीत हमारी स्वदेशी चिकित्सा पद्धति 'आयुर्वेद' के ग्रंथों में भी सौंदर्य प्रसाधनों का यत्र-तत्र उल्लेख मिलता है।
प्राचीन भारत में चेहरे का सौंदर्य बरकरार रखने तथा उत्पन्न हुई विकृतियों को दूर करने के लिए चिकित्सा व्यवस्था भी सुलभ थी।
चेहरे को चमकाने वाले प्राकृतिक घटक द्रव्य
युवतियां चेहरे की झाइयों को दूर करने के लिए सरसों, वच, लोध व सैंधा नमक का लेप तथा सफेद घोड़े के खुर की भस्म, आक का दूध, हल्दी तथा मक्खन का लेप किया करती थी।
मुंहासे मिटाने का घरेलू तरीका
मुंहासों के निवारणार्थ लोध, धनिया, वच, गोरोचन तथा मरिच का लेप प्रचलित था।
प्राचीन भारतीय रूपसियों के सौंदर्य प्रसाधन अनूठे रहे हैं; इस आधार पर उनके अप्रतिम सौंदर्य की कल्पना की जा सकती है।
प्रसंगवश यहां पर यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि हमारे पूर्वजों और महिलाओं को सौंदर्य प्रसाधनों का सांगोपांग महत्त्व ज्ञात था।
पुष्पों, वस्त्रों व रत्नों को धारण करने से जीवाणुओं का संक्रमण न होने का तथ्य आयुर्वेदाचार्य वाग्भट ने प्रतिपादित किया था।
'चंदन' का अंगराग बनाते समय उसमें सुगंध के लिए अन्यान्य द्रव्य भी मिलाये जाते थे ।
आज के सौंदर्य प्रसाधनों के प्रति हमारी ज्ञान-शून्यता जैसी स्थिति, प्राचीन भारतीय परिवेश में नहीं थी। नैसर्गिक प्रसाधनों से लाभ ही लाभ मिलते थे, इतने दुष्प्रभाव भी नहीं होते थे। क्योंकि उस काल में सारी सौंदर्य चिकित्सा मानवता आधारित थी।
झड़ते, टूटते बालों की चिकित्सा
केशवर्धनार्थ गोखरू, तिल के पुष्प एवं घृत का
लेप करने का प्रचलन था।
क्रीड़ा करती युवतियों के श्रंगार
सुंदर दिखने का मोह किसे नहीं है? श्रृंगार के प्रेरक कामदेव की कामवासना के प्रभाव से स्त्री -पुरुष, तो क्या, प्रकृति भी नहीं बच पाती?
वह भी समय-समय पर रंग-बिरंगे पुष्पों से अपना श्रृंगार करती है। श्रृंगार के लिए आवश्यकता होती है, प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य-प्रसाधनों की।
यूं तो आज तरह-तरह के क्रीम-पाउडर, फेस-पेक, लिपस्टिक, गजरे इत्यादि अन्यान्य सौंदर्य प्रसाधक सामग्री से दुनिया का बाजार भरा है।
ऑनलाइन ब्रांडों की भरमार है। लेकिन चेहरा पोतने से महंगी क्रीम लगाने से खूबसूरती नहीं बढ़ने वाली
महिलाओं को अंदरूनी इलाज भी जरूरी हैं। क्योंकि आज सोम रोग यानि पीसीओडी अथवा पीसीओएस, श्वेत, रक्त प्रदर और लिकोरिया जैसे गुप्त रोग से 10 में से 5 महिला जूझ रही हैं।
यह रखें सुंदरता ऊपर से नहीं अंदरूनी अंगों के स्वस्थ्य रहने से आयेगी।
आज मार्केट में उपलब्ध सभी सौंदर्य उत्पाद खतरनाक रसायनिक विधि से निर्मित हो रहे हैं, जो शुरू में, तो सुंदरता का सुरूर चढ़ा देते हैं और बाद में
चेहरा बर्बाद कर हीनभावना ग्रस्त कर देते हैं।
प्राचीन भारत में भी सौंदर्य प्रसाधनों की कोई कमी नहीं थी और हमारा प्राचीन सौंदर्य प्रसाधनों का ज्ञान आज से कहीं अधिक पल्लवित पुष्पित था।
महाकवि कालिदास के 'मेघदूत' में वर्णित सौंदर्य प्रसाधन विशेष उल्लेखनीय हैं। कालिदास काल में स्त्री व पुरुषों का श्रृंगार पुष्पों के बिना पूर्णता प्राप्त नहीं करता था।
स्त्रियां रंग-बिरंगे पुष्पों व पत्तों के दलों, महावर इत्यादि प्रसाधन द्रव्यों का उपयोग किया करती थीं।
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आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है जो लगभग 5,000 साल पुरानी है। 'आयुर्वेद' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: 'आयु' जिसका अर्थ है जीवन और 'वेद' जिसका अर्थ है ज्ञान या विज्ञान। इस प्रकार, आयुर्वेद का अर्थ है "जीवन का विज्ञान"।
आयुर्वेद के सिद्धांत:
- त्रिदोष: आयुर्वेद मानता है कि शरीर तीन मूलभूत ऊर्जाओं या दोषों से बना है: वात, पित्त और कफ। ये दोष शरीर के सभी कार्यों को नियंत्रित करते हैं।
- पंचमहाभूत: आयुर्वेद के अनुसार, ब्रह्मांड और मानव शरीर दोनों पांच तत्वों से बने हैं: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।
- प्रकृति: प्रत्येक व्यक्ति की एक अनूठी प्रकृति होती है, जो जन्म के समय निर्धारित होती है। प्रकृति दोषों के संयोजन से निर्धारित होती है।
आयुर्वेद के उद्देश्य:
- स्वास्थ्य को बनाए रखना
- रोगों को रोकना
- रोगों का इलाज करना
आयुर्वेद के तरीके:
- आहार: आयुर्वेद में आहार का बहुत महत्व है। यह माना जाता है कि सही आहार दोषों को संतुलित रखने और स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है।
- जीवनशैली: आयुर्वेद में स्वस्थ जीवनशैली का पालन करने पर जोर दिया जाता है, जिसमें नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद और तनाव प्रबंधन शामिल है।
- जड़ी-बूटियाँ: आयुर्वेद में विभिन्न जड़ी-बूटियों का उपयोग रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।
- पंचकर्म: पंचकर्म एक डिटॉक्सिफिकेशन थेरेपी है जिसका उपयोग शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए किया जाता है।
आयुर्वेद के लाभ:
- तनाव कम करता है
- रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है
- पाचन में सुधार करता है
- त्वचा को स्वस्थ रखता है
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आयुर्वेद का सबसे अच्छा ब्रांड कौन सा है, जो 5000 साल पुरानी पद्धति के अनुसार दवाएं बनाता है?
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