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महादेव के गले में नाग क्यों है?
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समुद्रमंथन के दौरान समुद्र से हलाहल याने की जहर बाहर आया था। समुद्र मंथन से बाहर पड़ी हर एक चीज को या तो फिर देव लेते थे या फिर दानव। जब जहर आया तब देवों की बारी थी। तो देवो ने अपनी ओर से कौन जहर पिएगा ऐसा प्रश्न उपस्थित किया, जहर पीना इसका मतलब मौत था। इसलिए कोई भी देव जहर पीने के लिए तैयार नहीं था। और हमें पता ही है की महादेव यानी कि भगवान शिवजी कितने भोले हैं, उन्होंने झट से कह दिया कि मैं जहर पी लूंगा उसके बाद महादेव ने जहर पी लिया लेकिन इसका परिणाम उसके उनके शरीर पर होने लगा। उन्होंने जो जहर पिया वह अपने कंठ तक ही रोक लिया जिसके कारण वह उनके शरीर के अंदर ना जा सके। लेकिन उसका दाह बहुत होने लगा था और उसे शांत करने के लिए महादेव के गले में कुछ तो रखना था और स्वाभाविक है कि जो साप होता है वह बहुत ही ठंडा होता है। और उसके कारण शिव जी के गले का दाह कम हुआ।
और इसी कारण शिवजी के गले में नाग होता है।
और इसी कारण शिवजी के गले में नाग होता है।
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क्योंकि समुद्र मंथन के समय भोलेनाथ के साथ नागों ने भी विष पिया था। इसलिए वे भोलेनाथ के साथ रहते हैं।
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महादेव के गले में नाग होने के कई प्रतीकात्मक अर्थ हैं, जो इस प्रकार हैं:
- अनंत काल का प्रतीक: नाग अनंत काल और निरंतरता का प्रतिनिधित्व करते हैं। महादेव, जो समय और मृत्यु से परे हैं, इसलिए नाग को धारण करते हैं जो समय के चक्र को दर्शाता है।
- ऊर्जा का नियंत्रण: नाग ऊर्जा (कुंडलिनी शक्ति) का भी प्रतीक हैं। महादेव नाग को अपने गले में धारण करके यह दर्शाते हैं कि उन्होंने अपनी ऊर्जा को नियंत्रित कर लिया है और वे अपनी शक्ति के स्वामी हैं।
- सुरक्षा का प्रतीक: नाग को सुरक्षा और रक्षा का प्रतीक भी माना जाता है। महादेव अपने भक्तों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नाग को धारण करते हैं।
- विनाश और सृजन का संतुलन: नाग विनाश और सृजन दोनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। महादेव, जो विनाश और सृजन के देवता हैं, नाग को धारण करके यह दर्शाते हैं कि वे दोनों शक्तियों को संतुलित रखते हैं।
- वासुकी नाग की कथा: एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय वासुकी नाग ने रस्सी का काम किया था। महादेव ने वासुकी नाग के इस त्याग और समर्पण से प्रसन्न होकर उन्हें अपने गले में धारण कर लिया।
इन प्रतीकात्मक अर्थों के अलावा, महादेव के गले में नाग उनकी दिव्यता और शक्ति का भी प्रतीक है।
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