योगा
अष्टांग योग की परिभाषा बताइए?
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अष्टांग योग की परिभाषा बताइए?
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अष्टांग योग, जिसे "आठ अंगों वाला योग" भी कहा जाता है, एक प्राचीन भारतीय अभ्यास है जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह महर्षि पतंजलि द्वारा योग सूत्र में प्रतिपादित किया गया था, जो योग के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है।
अष्टांग योग के आठ अंग निम्नलिखित हैं:
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यम (सामाजिक नैतिकता): ये नैतिक नियम हैं जो दूसरों के साथ हमारे व्यवहार को निर्देशित करते हैं। इनमें शामिल हैं:
- अहिंसा (अहिंसा)
- सत्य (सत्यवादिता)
- अस्तेय (चोरी न करना)
- ब्रह्मचर्य (संयम)
- अपरिग्रह (गैर-लोभ)
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नियम (व्यक्तिगत नैतिकता): ये व्यक्तिगत अनुशासन हैं जो आत्म-अनुशासन और आंतरिक शांति को बढ़ावा देते हैं। इनमें शामिल हैं:
- शौच (शुद्धता)
- संतोष (संतोष)
- तप (तपस्या)
- स्वाध्याय (आत्म-अध्ययन)
- ईश्वर-प्रणिधान (समर्पण)
- आसन (शारीरिक मुद्रा): ये शारीरिक व्यायाम हैं जो शरीर को मजबूत और लचीला बनाते हैं, और मन को शांत करते हैं।
- प्राणायाम (श्वास नियंत्रण): ये श्वास तकनीकें हैं जो ऊर्जा को नियंत्रित करती हैं और मन को शांत करती हैं।
- प्रत्याहार (इंद्रियों का प्रत्याहार): यह इंद्रियों को बाहरी विकर्षणों से वापस लेने और आंतरिक जागरूकता पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास है।
- धारणा (एकाग्रता): यह मन को एक वस्तु या विचार पर केंद्रित करने की क्षमता है।
- ध्यान (ध्यान): यह एकाग्रता की एक विस्तारित अवस्था है, जिसमें मन शांत और स्थिर होता है।
- समाधि (परमानंद): यह चेतना की अंतिम अवस्था है, जिसमें व्यक्तिगत चेतना ब्रह्मांडीय चेतना के साथ विलीन हो जाती है।
अष्टांग योग का अभ्यास धीरे-धीरे और लगातार किया जाना चाहिए। प्रत्येक अंग को अगले के लिए एक आधार के रूप में बनाया गया है। नियमित अभ्यास से, अष्टांग योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है।
अधिक जानकारी के लिए, आप इन वेबसाइटों पर जा सकते हैं: