भारत में कितने अलंकार हैं और उनके अर्थ बताएं?
भारतीय साहित्य में अलंकारों का महत्वपूर्ण स्थान है। अलंकार, काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व होते हैं। मुख्य रूप से अलंकारों को दो भागों में बांटा गया है: शब्दालंकार और अर्थालंकार।
शब्दालंकार वे अलंकार हैं जिनमें शब्दों के प्रयोग से काव्य में सौंदर्य उत्पन्न होता है।
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अनुप्रास: जब किसी वर्ण या व्यंजन की आवृत्ति बार-बार होती है।
उदाहरण: "चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में।"
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यमक: जब कोई शब्द दो या दो से अधिक बार आए और हर बार उसका अर्थ अलग हो।
उदाहरण: "कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।"
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श्लेष: जब एक शब्द के एक से अधिक अर्थ हों।
उदाहरण: "रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।" (पानी के तीन अर्थ: इज्जत, चमक, जल)
अर्थालंकार वे अलंकार हैं जिनमें अर्थ के माध्यम से काव्य में सौंदर्य उत्पन्न होता है।
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उपमा: जब दो वस्तुओं या व्यक्तियों में समानता दिखाई जाए।
उदाहरण: "मुख चंद्रमा के समान सुंदर है।"
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रूपक: जब दो वस्तुओं में अभिन्नता दिखाई जाए, यानी उपमेय और उपमान को एक रूप मान लिया जाए।
उदाहरण: "चरण कमल बंदौ हरिराई।"
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उत्प्रेक्षा: जब उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाए।
उदाहरण: "सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात। मनहुँ नीलमनि सैल पर, आतप परयो प्रभात।"
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अतिशयोक्ति: जब किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाए।
उदाहरण: "हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग, लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग।"
इनके अतिरिक्त भी कई अन्य अलंकार होते हैं, लेकिन ये मुख्य और प्रसिद्ध हैं।
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