भगवान

जब तक भगवान का असली रूप नहीं पता चलेगा, इसे अंधविश्वास ही माना जाएगा?

1 उत्तर
1 answers

जब तक भगवान का असली रूप नहीं पता चलेगा, इसे अंधविश्वास ही माना जाएगा?

0

यह एक जटिल प्रश्न है और इसका कोई एक निश्चित उत्तर नहीं है। अलग-अलग लोगों और दार्शनिक विचारधाराओं के इस पर अलग-अलग मत हो सकते हैं।

यहाँ कुछ संभावित दृष्टिकोण दिए गए हैं:

  • हाँ, जब तक भगवान का "असली रूप" ज्ञात नहीं होता, तब तक यह अंधविश्वास है:
    • कुछ लोगों का मानना है कि जब तक किसी चीज को अनुभवजन्य रूप से सिद्ध नहीं किया जा सकता, तब तक उस पर विश्वास करना अंधविश्वास है। यदि भगवान के अस्तित्व या स्वरूप को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं किया जा सकता, तो भगवान में विश्वास को अंधविश्वास माना जा सकता है।
    • कुछ धार्मिक ग्रंथों में भगवान के स्वरूप के बारे में विवरण दिए गए हैं। जब तक कोई व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से भगवान का अनुभव नहीं करता और उन विवरणों को सत्यापित नहीं करता, तब तक उस पर विश्वास करना अंधविश्वास माना जा सकता है।
  • नहीं, भगवान में विश्वास अंधविश्वास नहीं है:
    • अंधविश्वास अक्सर तर्कहीन भय या मान्यताओं पर आधारित होता है। भगवान में विश्वास अक्सर गहन चिंतन, आध्यात्मिक अनुभव और नैतिक मूल्यों पर आधारित होता है।
    • धर्म और आध्यात्मिकता अक्सर लोगों को अर्थ, उद्देश्य और समुदाय प्रदान करते हैं। भले ही भगवान का "असली रूप" ज्ञात न हो, फिर भी विश्वास लोगों के जीवन में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है।
    • कुछ दार्शनिकों का तर्क है कि कुछ चीजें हैं जो विज्ञान से परे हैं और जिन्हें केवल विश्वास के माध्यम से समझा जा सकता है।

अंततः, यह व्यक्तिगत निर्णय है कि भगवान में विश्वास को अंधविश्वास माना जाए या नहीं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप "असली रूप" को कैसे परिभाषित करते हैं और आप विश्वास और तर्क के बीच संबंध को कैसे देखते हैं।

इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए, आप निम्न स्रोतों को देख सकते हैं:

उत्तर लिखा · 21/3/2025
कर्म · 520

Related Questions

जब किसी को सही तरीके से नहीं मालूम है कि भगवान का असली रूप क्या है तो इसे अंधविश्वास ही न कहा जाएगा?
आज के युग में बस एक अंधविश्वास है कि भगवान है, परंतु किसी को सही तरीके से नहीं मालूम है कि वाकई में भगवान है। अगर मालूम होता तो उनके असली रूप का कभी ज्ञान होता?
भगवान लीलाएं करते थे और महाभारत में द्रोपदी के साथ थे, अर्जुन और अन्य लोगों से वो मिले थे, गोपियों के साथ खेले थे, इससे सिद्ध होता है कि श्री कृष्ण सुंदर थे?
जैसा कि आप कह रहे हैं कि भगवान का असली रूप प्रकट हो जाता तो भक्ति भाव कम हो जाता, लेकिन ऐसा भी तो हो सकता है कि उनका असली रूप जानने के बाद लोगों का उनके प्रति और भाव, विश्वास, भक्ति बढ़ जाता और लोगों को यह भी विश्वास हो जाता कि भगवान सही में हैं?
मेरे अनुसार महर्षि वेदव्यास को श्री कृष्ण के असली रूप को दर्शाना चाहिए था, ताकि लोग उनके असली रूप को जान सकते कि भगवान का असली रूप क्या है और उन्हें यह विश्वास हो जाता कि हां, भगवान हैं?
यदि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण थे, तो क्या द्वापर युग के लोगों ने भगवान श्री कृष्ण के असली रूप को देखा होगा? क्या उन्होंने उनके असली स्वरूप को दर्शाया होगा? अगर दर्शाया है, तो उनका असली रूप क्या है? और अगर नहीं दर्शाया है, तो क्यों नहीं दर्शाया, जबकि उन्होंने तो उनका असली रूप देखा होगा?
मेरा कहने का मतलब है कि हमारा जो सनातन धर्म है, यह भगवान के बारे में मिथ्या बोलता है कि भगवान है? अगर भगवान होते तो उनका असली रूप भी होता?