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मैं नीर भरी दुख की बदली कविता में कवयित्री अपना क्या परिचय बताती हैं?
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महादेवी वर्मा की कविता "मैं नीर भरी दुख की बदली" में कवयित्री स्वयं को नीर (पानी) से भरी हुई दुख की बदली बताती हैं। वह अपने जीवन के दुखों को बादलों में भरे पानी की तरह मानती हैं। जिस प्रकार बादल आकाश में छा जाते हैं और उनमें जल भरा होता है, उसी प्रकार कवयित्री के हृदय में भी दुख भरे हुए हैं।
कविता में, वह अपने परिचय को इस प्रकार व्यक्त करती हैं:
- नीर भरी दुख की बदली: वह अपने आप को दुख से भरी हुई बदली कहती हैं, जो आकाश में घुमड़ रही है।
- स्पंदन में चिर निस्पंद बसा: उनके हृदय में हमेशा एक कंपन (spandan) रहता है, लेकिन उसमें एक चिरस्थायी शांति (nispand) भी बसी हुई है।
- आँखों में आलोक उतरता: उनकी आँखों में एक विशेष प्रकार की चमक है, जो उनके आंतरिक प्रकाश को दर्शाती है।
- रोने में राग अमर: उनके रोने में भी एक शाश्वत संगीत (raag) है, जो उनके दुखों को सुंदरता में बदल देता है।
इस प्रकार, कवयित्री इस कविता में अपने आप को दुख और वेदना से भरी हुई, लेकिन साथ ही आशा और सौंदर्य से परिपूर्ण बताती हैं।
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