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वह तोड़ती पत्थर कविता में महिला के संघर्ष का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए?
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सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की कविता 'वह तोड़ती पत्थर' एक श्रमशील महिला के जीवन के संघर्ष का मार्मिक चित्रण है। कविता में, एक महिला को इलाहाबाद के मार्ग पर पत्थर तोड़ते हुए दिखाया गया है।
संघर्ष का चित्रण:
- कठिन परिश्रम: महिला भीषण गर्मी में पत्थर तोड़ रही है, जो उसकी शारीरिक कठिनाई को दर्शाता है।
- शारीरिक शोषण: वह बार-बार हथौड़ा चलाती है, जिससे उसके शरीर पर थकान और दर्द होता है। यह शारीरिक शोषण को उजागर करता है।
- आर्थिक तंगी: महिला गरीब है और उसे जीवन यापन के लिए यह कठिन काम करना पड़ रहा है।
- सामाजिक उपेक्षा: समाज उसकी मेहनत को अनदेखा करता है और उसे सहानुभूति की दृष्टि से नहीं देखता। लोग उसे केवल एक पत्थर तोड़ने वाली के रूप में देखते हैं, न कि एक इंसान के रूप में।
- निराशा और उम्मीद: महिला के चेहरे पर निराशा है, लेकिन फिर भी वह काम करती रहती है। यह उसकी उम्मीद और जीवित रहने की इच्छा को दर्शाता है।
कविता में, निराला जी ने महिला के संघर्ष को एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया है। यह कविता समाज में व्याप्त शोषण और अन्याय के खिलाफ एक आवाज है। यह हमें याद दिलाता है कि हमें उन लोगों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए जो कठिन परिश्रम करते हैं और अपने जीवन के लिए संघर्ष करते हैं।
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